असम
असम : इस महारानी के दहेज आई थी भारत में चाय और ऐसे पहुंची असम
Shiddhant Shriwas
5 Jun 2022 11:41 AM GMT
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चाय की एक जर्नी। आपको जानकर हैरानी होगी कि उस जमाने में चाय काफी बेशकीमती चीज मानी जाती थी।
जनता से रिश्ता | चाय एक ऐसा तरल पदार्थ जो भारत की सुबह करती है। यानी की भारतीय लोगों की सुबह चाय के बिना नहीं होती है। लेकिन क्या जानते हैं कि आखिरी ये चाय आई कहां से हैं। आज हम आपको बताते हैं चाय की एक जर्नी। आपको जानकर हैरानी होगी कि उस जमाने में चाय काफी बेशकीमती चीज मानी जाती थी।
इस की कीमत इससे पता लगा सकते हैं कि इंग्लैंड की महारानी कैथरीन ऑफ ब्रिगेंजा अपने साथ दहेज में चाय के चीन से आयातित डिब्बे लेकर आई थीं। कहा जाता है कि उसके बाद से ही चाय इंग्लैंड में लोकप्रिय हुई। चाय के सफर की कई कहानियां हैं और हर कहानी दिलचस्प है। भारत के असम प्रांत के चाय बागानों में कैसे चाय के पौधे की मौजूदगी का पता चला और पहली बार असम की चाय कैसे इंग्लैंड पहुंची, इन्हीं सब रोचक किस्सों को अपने में समेटे हुए है 'अ सिप इन टाइम' नाम की किताब।
इस किताब में सर पर्सिवल ग्रिफिथ की किताब 'द हिस्ट्री ऑफ द इंडियन टी इंडस्ट्री' के हवाले से लिखा गया है कि रॉबर्ट ब्रूस एक साहसी कारोबारी था जो कारोबार के सिलसिले में ऊपरी असम तक जा पहुंचा। वहां वह ईस्ट इंडिया कंपनी की अनुमति से एक स्थानीय प्रमुख पुरंधर सिंह का एजेंट बन गया।
कंपनी ऊपरी असम पर नियंत्रण हासिल करने के संघर्ष में पुरंधर सिंह का साथ दे रही थी। यहीं पर 1823 में रॉबर्ट ब्रूस को असम में चाय की मौजूदगी का पता चला और उसने चाय का एक पौधा और उसके कुछ बीज हासिल करने के लिए सिंगफो कबीले के प्रमुख के साथ एक समझौता किया।
इसके बाद चार्ल्स एलेक्जेंडर महत्वपूर्ण शख्सियत बनकर उभरे और कई साल तक असम में रहे और स्थानीय लोगों की चाय प्रसंस्करण विधियों के विशेषज्ञ बन गए। उन्होंने असम में चाय बगान तैयार करने के लिए कमर कस ली लेकिन घने जंगलों, खतरनाक जीव जंतुओं और तकनीकी सहायता न होने से यह काम इतना आसान नहीं था। ब्रूस ने कुछ चीनी नागरिकों के साथ काम किया था जिन्हें कमेटी चाय बागान लगाने के लिए लेकर आई थी।
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