असम

काश्तकारों की मांग के अनुरूप उन्हें स्थानीय अदरक बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है उद्यान विभाग

Ritisha Jaiswal
24 Feb 2022 10:12 AM GMT
काश्तकारों की मांग के अनुरूप उन्हें स्थानीय अदरक बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है उद्यान विभाग
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उद्यान विभाग अदरक बीज को लेकर उत्पादकों के मन की बात नहीं सुन पा रहा है।

उद्यान विभाग अदरक बीज को लेकर उत्पादकों के मन की बात नहीं सुन पा रहा है। अच्छे उत्पादन के लिए काश्तकारों में स्थानीय बीज की डिमांड है, लेकिन विभाग लोकल फॉर वोकल के बजाए उत्पादकों को असम व अन्य राज्यों से आयात बीज थोप रहा है। जिससे लोकल बीज को प्राथमिकता देने वाले जिले के अधिकतर काश्तकारों को बीज पर मिलने वाली सब्सिडी के लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है। साथ ही काश्तकारों का कहना है कि बाहरी राज्यों के बीज पर कीड़ा भी जल्द लगता है।

जिले के आगराखाल, कुंजणी, धमांस्यूं, दोगी पट्टी, क्वीली,कुमाल्डा,मरोड़ा और कीर्तिनगर क्षेत्र में नकदी फसल अदरक की अच्छी खासी पैदावार होती है। अकेले आगराखाल क्षेत्र में ही प्रतिवर्ष सात से आठ करोड़ रुपये के अदरक का व्यापार होता है। अब मार्च-अप्रैल से अदरक की बुआई शुरू होती है, लेकिन उद्यान विभाग काश्तकारों की मांग के अनुरूप उन्हें स्थानीय अदरक बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। जिससे उत्पादक खासे निराश हैं। अदरक उत्पादक पुष्कर सिंह रावत, प्रवीन रमोला और मदन चंद रमोला कहते हैं, कि स्थानीय बीज की बुआई करने से अच्छा उत्पादन मिलता है, लेकिन उद्यान विभाग दूसरे राज्यों से आयात जो अदरक का बीज देता है, उसमें अक्सर बीमारी लगती है, जिससे उत्पादन भी कम होता है। यही वजह है, कि क्षेत्र के अधिकतर उत्पादक स्थानीय बीज को ही प्राथमिकता देते हैं, जिससे उन्हें बीज पर सरकार से मिलने वाली 50 फीसदी सब्सिडी नहीं मिल पाती है। आगराखाल के काश्तकार व व्यापारी सुरेंद्र कंडारी का कहना है कि उद्यान विभाग को काश्तकारों की डिमांड के अनुरूप बीज देना चाहिए, जिससे अच्छी उपज से उन्हें मुनाफा हो सके। लेकिन वर्षों से मांग करने के बाद भी स्थानीय बीज खरीद को मान्यता नहीं दी जा रही है, जिससे लोगों को बगैर सब्सिडी का 100 से 110 रुपये प्रति किलो स्थानीय बीज खरीदना पड़ता है।
कलस्टर आधार पर नहीं होती है नुकसान की भरपाई
अदरक की फसल का बीमा कराने पर भी काश्तकारों को नुकसान का मुआवजा नहीं मिल पाता है। विभाग नुकसान का आंकलन कलस्टर के आधार पर करता है, जबकि एक ही क्षेत्र में कहीं ज्यादा तो कहीं कम नुकसान होता है। कलस्टर के आधार पर कम ज्यादा नुकसान होने पर भी एक तरह का ही मुआवजा दिया जाता है। इससे काश्तकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। यही नहीं विभागीय आंकड़ों के मुताबिक टिहरी जिले में ही वर्ष 2019-20 में 1490 हेक्टेयर पर करीब 14872 मीट्रिक टन अदरक उत्पादन किया गया। जिससे स्पष्ट है, कि अदरक उत्पादन से सैकड़ों काश्तकार जुड़े हुए हैं, बावजूद अदरक का समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया गया है।
स्थानीय अदरक बीज खरीदने के कोई निर्देश नहीं हैं। जिले से 800 क्विंटल की डिमांड मिली है। अप्रैल तक आवंटित कर दिया जाएगा। स्थानीय बीज को लेकर फेडरेशन गठन पर विचार किया जा रहा था, लेकिन वह बात आगे नहीं बढ़ पाई। बीज संरक्षण के लिए कोल्ड स्टोर भी जरूरी है।



Ritisha Jaiswal

Ritisha Jaiswal

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