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अरुणाचल प्रदेश में नए स्मारकों की पहचान, संरक्षण की योजना
राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण की टीम 14 -18 जून तक अरुणाचल प्रदेश में विशेष कर तिब्बत-चीन क्षेत्र के सीमा के समीपवर्ती इलाकों का दौरा कर ऐसे स्मारकों की पहचान करेगी, जिन्हें संरक्षित स्मारकों की केंद्रीय सूची में शामिल किया जा सकता है।
संस्कृति मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार यह टीम इस काम के संबंध में अन्य लोगों के साथ स्थानीय जनजातियों के प्रमुख लोगों से भी मिलेगी। टीम उन जगहों पर आस्था के प्राचीन स्थलों का पता लगाएगी, जो किवदंतियों व मौखिक इतिहास के माध्यम से अरुणाचल प्रदेश को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ते हैं। इस टीम में प्राधिकरण के अध्यक्ष तरुण विजय के अलावा सदस्य हेमराज कामदारंद और प्रोफेसर कैलाश राव भी शामिल होंगे।
तरुण विजय ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में रहते हुए रुक्मणी की सांस्कृतिक विरासत को रोमांचक और ज्ञानवर्धक तरीके से मजबूत करने के लिए अरुणाचल प्रदेश से गुजरात के पोरबंदर की वार्षिक यात्रा की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा कि विरासत के संरक्षण और नए स्मारकों को राष्ट्रीय पुरातात्विक स्थलों की केंद्रीय संरक्षित सूची में शामिल करने के मामले में अरुणाचल प्रदेश पीछे रह गया है।स्थानीय धार्मिक मान्यताएं और उनके स्मारकों, मूर्त व अमूर्त विरासत उन्हें गुजरात के पश्चिमी तट और भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ती हैं, जोअपेक्षाकृत अज्ञात हैं और जिन्हें मान्यता नहीं मिली हैं। बयान में कहा गया है कि प्राधिकरण की टीम गांव के वृद्धजनों और विभिन्न जनजातियों के नेताओं से मुलाकात करेगी। इन लोगों में प्रत्येक के पास भारत की मुख्य भूमि के साथ प्राचीन स्मारकों के जरिए धर्म और सांस्कृतिक जुड़ाव के बारे में आकर्षक कहानियां हैं।
इसके आधार पर संस्कृति मंत्री और प्रधानमंत्री को एक रिपोर्ट सौंपी जाएगी, जिसमें संरक्षित स्मारकों की केंद्रीय सूची में नए स्थलों को जोड़े जाने और सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों की पहचान करने का सुझाव दिया जाएगा, जो आजादी का अमृत महोत्सव के संदर्भ में राष्ट्रीय एकता को मजबूत करते हैं। तरुण विजय ने कहा कि परशुराम कुंड, भीष्मकनगर, भालुकपोंग और त्वांग जैसे पुरातात्विक महत्व के कुछ स्थानीय स्थल हैं, जो अरुणाचल प्रदेश को गुजरात, गोवा, केरल और यादव समुदाय से जोड़ते हैं।