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मद्रास रेजीमेंट की बुनियाद इंडियन आर्मी के वजूद में आने से पहले ही पड़ गई थी
अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) डॉ. बी डी मिश्रा ने मद्रास रेजीमेंट की 18वीं बटालियन के सैनिकों से अनुशासन कायम रखने, कठिन अभ्यास करने और आम नागरिकों के साथ मित्रवत संबंध बनाने का अनुरोध किया. राज्यपाल ने भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध की याद में नयी दिल्ली स्थित बटालियन की इकाई में 'सैनिक सम्मेलन'' को संबोधित करते हुए कहा कि सभी सैन्य अभियानों में सफलता की कुंजी दृढ़ विश्वास है .
एक आधिकारिक आदेश में कहा गया कि बटालियन को 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के सिंध प्रांत स्थित थार रेगिस्तान में मुश्किल अभियान के लिए सम्मानित किया गया. डॉ. मिश्रा ने उन दिनों को याद किया, जब 17 दिसंबर, 1961 को वह युवा अधिकारी के तौर पर बटालियन में शामिल हुए थे. उन्होंने कहा, 'भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजीमेंट मद्रास रेजीमेंट ने औपनिवेशक काल में और आजादी के बाद कई अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई है. 'थंबियों' को उनके पराक्रम, बलिदान और कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है. '' इस रेजीमेंट के जवानों को आम तौर पर थंबी कहा जाता है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की आजादी का युद्ध भारत के सैन्य इतिहास में स्वर्णिम अध्याय है.
मद्रास रेजीमेंट की बुनियाद कब पड़ी
मद्रास रेजीमेंट की बुनियाद इंडियन आर्मी के वजूद में आने से पहले ही पड़ गई थी. हालांकि यह बात और है कि उस समय इसका नाम कुछ और था और यह सेना के अधीन नहीं आती थी.सबसे पहले जब मद्रास रेजिमेंट वजूद में आई तो इसका नाम 'मद्रास यूरोपियन रेजिमेंट' रखा गया.आपको जानकर हैरानी होगी कि इस रेजिमेंट की नींव ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने रखी थी. कहा जाता है कि उस दौर में जब ब्रिटिशर्स इंडिया आये थे तब उन्हें इस बात का ख़तरा था कि अन्य देश के लोग भी इंडिया में आकर इस पर राज करने का सपना न देखने लगें. इसलिए उन्होंने अपनी ज़रुरत के हिसाब से बटालियन तैयार करना शुरु कर दी थी.
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ऑफिसर मेजर स्ट्रिंगर लॉरेंस को भारत में सेना बनाने का काम दिया गया था. वह उस समय मद्रास में थे इसलिए उन्होंने वहीं पर भारत की पहली रेजिमेंट बनाने का फैसला किया.इन्होंने ही मद्रास रेजमेंट के बीज बोये थे. शुरुआत में इसमें ब्रिटिश और भारतीय दोनों ही देशों के सैनिक थे. जहां ब्रिटिश सैनिकों को अफसर का दर्जा दिया जाता था, वहीं दूसरी ओर भारतीय सैनिकों को हवलदार का पद दिया जाता था. यहीं से शुरू हुआ भारत की पहली रेजिमेंट का सफ़र.
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