नई दिल्ली। मिशन 2024 के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने तैयारियां करना शुरू कर दी है। इसी बीच रायपुर में कांग्रेस महाधिवेशन भी शुरू होने जा रहा है जहां लोकसभा चुनाव के लिए संभावित गठबंधन पर चर्चा करेगी, हालांकि महाधिवेशन से हपले प्रवर्तन निदेशालय की कॉग्रेस नेताओं के यहां छापे की कार्रवाई से आग में घी डालने जैसा काम किया है।
बता दें कि अगले वर्ष यानि 2024 में आम चुनाव होने वाले हैं। इसी को लेकर सभी दल अपनी-अपनी पकड़ मजबूत करने में लग गए हैं। यहां तक कि महागठबंधन की सुगबुहाट होने लगी है। कांग्रेस भी यही चाहती है कि मोदी रथ को रोकने के लिए गठबंधन जरूरी है। कांग्रेस पार्टी का मानना है कि उसके बगैर कोई विपक्षी गठबंधन सफल नहीं हो सकता। ऐसे में पार्टी महाधिवेशन में गठबंधन की रुपरेखा तैयार कर समान विचारधारा वाली पार्टियों को साथ लेने की कोशिश कर सकती है। लेकिन, विपक्षी एकता बहुत आसान नहीं है।
पार्टी का कहना है कि वह वर्ष 2004 से 2014 तक यूपीए सरकार (UPA government) का नेतृत्व कर चुकी है। इस वक्त भी केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में गठबंधन हैं। ऐसे में कांग्रेस को समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन पर कोई ऐतराज नहीं है। रायपुर महाधिवेशन में पार्टी गठबंधन पर चर्चा के लिए समिति का भी गठन कर सकती है।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में जीत की दहलीज तक पहुंचने के लिए कांग्रेस की नजर तेलंगाना और पश्चिम बंगाल पर है। पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि इन प्रदेशों में सत्तारूढ़ दल से सीधा टकराव है। पर वह लोकसभा में रणनीतिक गठबंधन की संभावनाओं से भी इनकार नहीं कर रहे हैं। क्योंकि, गठबंधन कांग्रेस के साथ इन राज्यों में सत्तारुढ़ दलों को भी लाभ मिलेगा।
पार्टी के एक नेता के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के लिए अपने दम पर सत्ता तक पहुंचना लगभग नामुमकिन है। ऐसे में पार्टी को बिहार और तमिलनाडु की तरह तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन करने में कोई मुश्किल नहीं है। क्योंकि, लेफ्ट पार्टियों और कांग्रेस के ज्यादातर वोट भाजपा की तरफ खिसक चुका है। तृणमूल का वोट प्रतिशत भी कम हो रहा है।
ऐसे में तृणमूल और कांग्रेस साथ आते हैं, तो दोनों पार्टियां मिलकर करीब 50 फीसदी वोट के आंकडे़ तक पहुंच जाते हैं। लोकसभा चुनाव में यह दोनों पार्टियों के लिए मददगार साबित होगा। इसी तरह तेलंगाना में भी भारतीय राष्ट्र समिति को भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है। दोनों पार्टियां साथ मिलती हैं, तो वोट प्रतिशत का आंकड़ा जीत के लिए काफी है।
इन सब दलीलों के बावजूद कांग्रेस के लिए पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में गठबंधन आसान नहीं है। क्योंकि, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद विपक्षी एकता की अगुआई करना चाहते हैं। इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी भी समर्थन कर सकते हैं।
समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party)
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की जनसभा और विपक्षी एकता की कोशिशों में एकजुटता जता चुके हैं। सपा ने वर्ष 2004 के चुनाव में अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन किया था। पार्टी के 37 सांसद लोकसभा में पहुंचे थे। पर 2009 में 23 और 2014 मे पांच सांसद चुने गए। इस वक्त सपा के सिर्फ तीन सांसद हैं।
तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress)
तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन 2014 चुनाव में किया था। पार्टी ने 42 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी। पर वर्ष 2019 के चुनाव में पार्टी 22 सीट हासिल कर पाई। वहीं भाजपा को 18 और कांग्रेस को सिर्फ दो सीट मिली। लेफ्ट पार्टियां अपना खाता तक नहीं खोल पाई। ऐसे में गठबंधन से दोनों को लाभ मिल सकता है।
भारतीय राष्ट्र समिति (Indian National Committee)
भारतीय राष्ट्र समिति के अध्यक्ष और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी ने अपना बेहतरीन प्रदर्शन 2014 में किया था। उस वक्त आंध्र प्रदेश में बीआरएस को 11 सीट मिली थी। जबकि तेलंगाना के गठन के बाद हुए 2019 के चुनाव में पार्टी 9 सीट जीत पाई। ऐसे में कांग्रेस और बीआरएस दोनों को गठबंधन में ज्यादा सीट मिल सकती हैं।
वाईएसआर कांग्रेस (YSR Congress)
वाईएसआर कांग्रेस ने अपना बेहतरीन प्रदर्शन तेलंगाना के अलग होने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में किया। पार्टी को इन चुनाव में 22 सीट मिली। जबकि 2014 में संयुक्त आंध्र प्रदेश में हुए चुनाव में 9 सीट मिली थी। ऐसे में 2024 के चुनाव के लिए वाईएसआर कांग्रेस के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं है। वह अपना प्रदर्शन दोहरा सकती है।
आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party)
आम आदमी पार्टी को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में चार सीट मिली थी। जबकि वर्ष 2019 के चुनाव में पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई। भगवंत मान के पंजाब के मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव में पार्टी हार गई। इस वक्त लोकसभा में ‘आप’ को कोई सांसद नहीं है। ‘आप’ भी भारतीय राष्ट्रीय समिति की विपक्षी एकता की कोशिशों में शामिल है।
कांग्रेस (Congress)
कांग्रेस को वर्ष 2009 के चुनाव में 28.55 फीसदी वोट मिले थे। वर्ष 2014 के चुनाव में यह घटकर 19.52 प्रतिशत रह गए। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को 19.70 फीसदी वोट मिले। हालांकि, 2019 में कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले आठ सीट ज्यादा मिली। ऐसे में गठबंधन से वोट प्रतिशत के साथ सीट भी बढ़ सकती हैं।