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विदेश में हुई हैं आपके इन देसी पकवानों की खोज,

SANTOSI TANDI
3 Jun 2023 6:55 AM GMT
विदेश में हुई हैं आपके इन देसी पकवानों की खोज,
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विदेश में हुई हैं आपके
भारत को अपने खानपान की विविधता और विशेषता के लिए जाना जाता हैं। अगर बॉलीवुड और क्रिकेट के अलावा पूरी दुनिया भारत की किसी चीज़ मिसाल देती है तो वो है यहाँ का खाना। यहां आपको एक से बढ़कर एक जायके का स्वाद लेने को मिल जाएगा। भारतीय थाली इतनी विविधता से भरी है कि ये बताना मुश्किल है कौन सी चीज़ कहां से आई। देश के कुछ व्यंजन तो ऐसे हैं जिनका नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के कुछ देसी पकवान ऐसे हैं जो भारत नहीं बल्कि विदेशों की उपज हैं। आज हम आपको यहां कुछ ऐसी डिशेज के बारे में बताने जा रहे हैं जो हमारे दैनिक जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी हैं लेकिन वे विदेशों से आए हैं। आइये जानते हैं इनके बारे में...
राजमा
जिस राजमा को उत्तर भारतीय घरों में बेहद पसंद किया जाता है वो दरअसल भारत का है ही नहीं। राजमा तो शुरुआती तौर भारत में कहीं उगाई भी नहीं जाती थी, ये भारत में आई पुर्तगालियों के साथ। यहाँ तक की राजमा को भिगो कर, उबाल कर और फिर मसालों के साथ बनाने की पाक विधी की मैक्सिको से आती है। लेकिन हाँ अपने देसी मसालों के तड़के के साथ हमने राजमा को एक अलग ही स्वाद दे दिया है।
समोसा
जेब में पैसे कम हो और दोस्तों को ट्रीट देनी हो। ऐसी सिचुएशन में सबसे पहले जिस चीज़ का ख़्याल आता है, उसमें समोसा ज़रूर होता है। यह भारतीय लोगों से कुछ इस तरह से जुड़ गया कि लोग अब इसे भारतीय ही मानते हैं। जबकि समोसा कभी भारत का था ही नहीं। यह भारत में मध्य पूर्व के व्यापारियों द्वारा 13वीं और 14वीं शताब्दी के बीच प्रचलन में आया। ग़ज़ब की बात तो ये है कि सदियों लंबी अपनी यात्रा के बाद भी इसका स्वाद लोगों की ज़ुबां पर बना हुआ है। समय-समय पर इसके साथ कई तरह के प्रयोग होते रहते हैं।
जलेबी
जलेबी के इतिहास के बारे में बात करें तो यह मध्य पूर्व में बनाई गई थी। इसे मूल रूप से 'जलाबिया' (अरबी) या 'जालिबिया' (फारसी) नाम दिया गया था। भारत में आने के बाद यह जलेबी हो गया और फिर इसी से प्रेरित होकर इमरती बनी थी जो मुगल किचन में पहली बार बनी। जलेबी के साथ रबड़ी का कॉम्बिनेशन आज देशभर में खूब पसंद किया जाता है।
गुलाब जामुन
हम जिस गुलाब जामुन को जानते हैं, वो है तली हुई खोये की गेंद जिसे चाशनी में भिगोते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे कभी भी इस तरह से बनाया ही नहीं जाना था? गुलाब जामुन के प्रमुख भारतीय मिठाई बनने से पहले फारसी लोग इसे शुद्ध शहद में भिगो कर खाते थे जिसका स्वाद बिल्कुल अलग होता था। लुकामत अल कदी (गुलाब जामुन का मूल नाम) के भारत पहुँचने तक इसमें काफी बदलाव आया और यह वह मिठाई बन गया जिसे देखकर लोग खुद पर काबू नहीं रख पाते।
दाल चावल
मैगी के अलावा दाल-चावल ही तो है, जो पलक झपकते ही बनकर तैयार हो जाता है। इसे दाल-भात जैसे दूसरे क्षेत्रीय नामों से भी जाना जाता है। आपको यह एक सरल और भारतीय डिश लग सकती है। मगर यह भारतीय है नहीं है। यह वास्तव में नेपाली मूल का है। उत्तर भारत के रास्ते यह भारत आया और यहां के पूरे क्षेत्र में फैल गया। यकीनन अगली बार जब आपसे कोई कहेगा कि दाल-चावल देशी और इंडियन है। तो आप उसको करेक्ट कर पाएंगें।
बिरयानी
यह तो आपने बिल्कुल नहीं सोचा होगा कि बिरयानी विदेशी हो सकती है। मगर यह बिल्कुल सच है!कोलकाता, हैदराबाद और लखनऊ की बिरयानी भले ही प्रसिद्ध हो लेकिन इस डिश की उत्पत्ति भी फारस में हुई। फारसी में इसे बिरियन कहा जाता था, जिसका अर्थ खाना पकाने से पहले तला हुआ होता है।
चिकन टिक्का मसाला
माना जाता है कि उत्तर भारत की इस पसंदीदा डिश का इजात तब हुआ जब ग्लासगो में एक शेफ ने एक ग्राहक को खुश करने के लिए चिकन करी में टमाटर का सूप मिलाया। ये नई डिश इतनी मशहूर हुई कि स्कॉटलैंड से फैलते हुए भारत आ पहुँची। तो अगली बार जब आप चिकन टिक्का मसाला खा रहे हो, इसका इजात करने वाले को शुक्रिया कहना मत भूलिएगा!
चिकन डिशेज के साथ ज्यादातर तंदूरी नान पसंद की जाती है। इसे भी कई लोग भारतीय समझते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि नान भी सबसे पहले फारसियों ने बनाई थी। उन्हीं के साथ यह भारत तक पहुंची और भारतीयों के दिल में और पेट में इसने जगह बना ली।
चाय
चाहे आप चाय के दीवानें हो या नहीं, लेकिन भारत में आप इसे अनदेखा तो नहीं कर सकते। यह भारत में सबसे ज़्यादा उगाए जाने वाले और उपभोग किए जाने वाले चीज़ों में से एक है लेकिन इस चाय की शुरुआत चीन में हुई थी। चीनी लोग चाय को एक औषधीय ड्रिंक की तरह से इस्तेमाल करते थे। फिर अंग्रेज़ों ने इसे भारत लाने का फैसला किया। अंग्रेजों ने उत्तर-पूर्व भारत में लोगों को चाय की खेती की कला भी सिखाई और तब से चाय भारत का की रूह सी बन गई है।
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