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पुरुषों के मुकाबले महिलाएं दिल की बीमारियों से ज़्यादा पीड़ित, जानें एक्सपर्ट्स इस बारे में
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| दिल हमारे शरीर का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसकी सेहत का ख़्याल रखने के प्रति हम सभी को जागरूक रहने की ज़रूरत है। कुछ समय से कम उम्र के लोगों में भी दिल के दौरे या कार्डियक अरेस्ट से मौत के मामले बढ़े हैं। यही वजह है कि दिल के स्वास्थ्य के प्रति लोगों को सतर्क करने के लिए हर साल 29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस (World Heart Day 2021) मनाया जाता है। कोरोना महामारी के दौरान दिल के मरीज़ों में भी बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा ख़राब लाइफस्टाइल यानी ग़लत खानपान की आदतें और व्यायाम की कमी से भी दिल से जुड़ी बीमारियां बढ़ रही हैं। साथ ही कई रिसर्च में देखा गया कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं दिल की बीमारियों से ज़्यादा पीड़ित होती हैं। आइए जानें एक्सपर्ट्स इस बारे में क्या कहते हैं।
दिल के दौरे से 1/4 मौतें भारत में
पारस हॉस्पिटल, पंचकुला के कार्डिएक साइंस, चेयरमैन डॉ. हरिंदर के. बाली ने कहा, "विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में स्ट्रोक और इस्केमिक हार्ट बीमारी से होने वाली 1/4 मौतें भारत में होती हैं, जिनमें से ज़्यादातर मामलों में शिकार युवा होते हैं। हृदय रोग भारतीयों को उनके पश्चिमी समकक्षों की तुलना में एक दशक पहले प्रभावित करते हैं और हर साल लगभग 30 लाख लोग स्ट्रोक और दिल के दौरे से मर जाते हैं। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जिन लोगों को दिल का दौरा पड़ता है उनमें से चालीस प्रतिशत 55 वर्ष से कम उम्र के होते हैं। युवा वयस्कों में धूम्रपान की बढ़ती आदत, नींद की कमी, डायबिटीज़, बहुत ज़्यादा तनाव, शराब के ज़्यादा सेवन से दिल की समस्याएं हो सकती हैं। नशीली दवाओं के दुरुपयोग, असुरक्षित और अनावश्यक सप्लीमेंट का सेवन, बहुत ज्यादा एक्सरसाइज़ और स्लिमिंग दवाइयां खाने से भी दिल की बीमारियां होती हैं। पिछले 26 सालों में भारत में दिल की बीमारी से होने वाली मौतों की घटनाओं में 34% की वृद्धि हुई है। इसलिए इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए और देश में हार्ट की बीमारी के बोझ को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का समय आ गया है।"
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज़्यादा हो रही शिकार
जिंदल नेचर क्योर इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु के सीएमओ डॉ. जी प्रकाश ने युवाओें में बढ़ती दिल की समस्या के बारे में कहा, "ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज़ के अनुसार भारत में सभी मौतों में से लगभग एक चौथाई (24.8 प्रतिशत) मौत कार्डियोवैस्कुलर (सीवीडी) के कारण होती हैं। इसके अलावा हार्ट की बीमारी से पीड़ित महिलाओं के स्वास्थ्य में बढ़ोतरी ख़तरा बना हुआ है क्योंकि सीवीडी के कारण पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाएं सालाना अपनी जान गवांती हैं। सीवीडी आमतौर पर कम शारीरिक गतिविधि, धूम्रपान, शराब के उपयोग और कम फल और सब्ज़ी के सेवन से होती हैं। प्रीवेंटिव केयर पर ध्यान देने से प्राकृतिक चिकित्सा का उद्देश्य विभिन्न पर्यावरणीय, शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक फैक्टर पर विचार करके सीवीडी को जड़ से ख़त्म करना है। प्राकृतिक चिकित्सा का अनूठा मरीज़ केंद्रित दृष्टिकोण क्रोनिक हार्ट की बीमारी के इलाज के लिए अनुकूलित, नॉन- इनवेसिव और बिना दवा वाले इलाज़ पर केंद्रित होता है। रिसर्च से साबित हुआ है कि इलाज के तौर-तरीके, जब लाइफ़स्टाइल और डाइट बदलाव साथ में जुड़े होते हैं, सीवीडी को रोकने में मदद करते हैं, और जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार करते हैं।"
इन बीमारियों से बढ़ता है दिल के रोग का जोखिम
पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के कार्डियोलॉजी एसोसियेट डायरेक्टर डॉ. अमित भूषण शर्मा ने कहा, "विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत ने 2016 में नॉन- कम्यूनिकेबल बीमारी के कारण 63 प्रतिशत मौतें हुई है, जिनमें से 27% हार्ट की बीमारी (सीवीडी) थी। इसके अलावा हार्ट की बीमारी से होने वाली मौतों की संख्या 2020 में 4.77 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, पहले यह संख्या 1990 में 2.26 मिलियन थी। महामारी के कारण लाइफ़स्टाइल में बदलाव से यह अनुमान लगाया गया है कि आने वाले समय में हार्ट की बीमारी में वृद्धि होगी। दिल की बीमारी के जोखिम वाले फैक्टर हाई ब्लड प्रेशर, लिपिड, ग्लूकोज़ के साथ-साथ ज़्यादा वज़न और मोटापा हैं।"