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लाइफ स्टाइल
डिलीवरी के बाद इन समस्याओं से दो-चार होती हैं महिलाएँ
Kajal Dubey
25 May 2023 11:20 AM GMT

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भारतीय में एक सबसे बड़ी कमी है और वह यह है कि वह अपनी किसी भी बीमारी को लेकर कभी गम्भीर नहीं होते हैं। हाइपर टेंशन अर्थात् हाई ब्लडप्रेशर उन्हीं बीमारियों में एक है। लोग बीपी को गंभीरता से नहीं लेते हैं क्योंकि उनके पास पूरी जानकारी नहीं है। दूसरा, इसके लक्षणों की शुरूआत में पहचान नहीं हो पाती। जिसकी वजह से रोगी समय पर इलाज नहीं करा पाते। हाइपरटेंशन को साइलेंट किलर यूं ही नहीं कहा जाता है। इसका इलाज नहीं है, मैनेजमेंट है और अगर आप इस मैनेजमेंट में चूक जाते हैं तो यह धीरे-धीरे शरीर के दूसरे महत्वपूर्ण अंगों को खराब करने लगता है। इसकी वजह से ब्रेन स्ट्रोक, ब्रेन हेमरेज, किडनी फेल, हार्ट अटैक जैसी गंभीर और जानलेवा समस्याओं का खतरा होता है।
सामान्य रहना चाहिए ब्लडप्रेशर
120/80 मिमी एचजी से कम ब्लड प्रेशर को सामान्य माना जाता है। जबकि 130 से अधिक जाने पर अधिक गंभीर नहीं है। लेकिन 140/90 को हाइपरटेंशन की कंडीशन माना जाता है। एक बार यह समस्या हो जाने पर जीवन भर पीछा नहीं छोड़ती बहुत सारे लोग नियमित दवाओं का सेवन नहीं करते क्योंकि तमाम तरह की भ्रांतियां हैं। ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि इसे कंट्रोल रखना जरूरी है और मैनेजमेंट करना चाहिए। रोज थोड़ा व्यायाम करें, तनाव मुक्त रहने की कोशिश करें, तंबाकू और शराब से बचें, मोटापा कम करने की कोशिश करें, जंक फूड से बचें, कोल्ड ड्रिंक्स से बचें, नमक और चीनी के अधिक सेवन से बचें।
Xबुजुर्गों पर होता है ज्यादा असर
उम्रदराज लोगों की परेशानी और भी अधिक है क्योंकि उनमें यह आसानी से नियंत्रित नहीं हो पाता और धीरे-धीरे वे हार्ट और किडनी रोगों की तरफ जाने लगते हैं। इधर युवाओं में भी खराब जीवनशैली और प्रदूषण आदि वजहों से हाइपरटेंशन और फिर हृदय रोग बढ़ रहे हैं। इसकी वजह से मॉर्टलिटी रेट भी बढ़ रहा है। इसलिए जरूरी है कि अगर एक बार आपको ब्लड प्रेशर की समस्या लग गई है तो डॉक्टर की निगरानी में रहें, घर पर नियमित ब्लड प्रेशर को मॉनीटर करते रहें, इसका मैनेजमेंट सही रखें। दवाएं बंद न करें ताकि यह अनियंत्रित होकर शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित न करे।
साइलेंट किलर होता है हाई ब्लड प्रेशर
ज्यादा बीपी एक तरह से शरीर में साइलेंट किलर की तरह काम करता है। ये एक ऐसी मेडिकल कंडिशन है जिसमें खून का प्रेशर नसों में काफी ज्याद बढ़ जाता है। जिसकी वजह से लिवर, किडनी, दिमाग और दिल पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा आंखें भी हाई बीपी के चलते किसी तकलीफ का शिकार हो सकती हैं।
हाइपरटेंशन के लक्षण
हाइपरटेंशन को जानना बड़ा आसान है। यदि आपको सिर दर्द, सिर का चकराना, थकान, सुस्ती महसूस होती है, इसके अतिरिक्त आपको नींद नहीं आती, दिल की धडक़नें तेज हो जाती हैं या फिर कभी-कभी अचानक से सीने में हल्का-हल्का दर्द महसूस होने लगता है अथवा सांस लेने में तकलीफ होने लगती है तो आपको समझ जाना चाहिए कि आपका ब्लडप्रेशर सही नहीं है। ब्लडप्रेशर सही नहीं होने से कभी-कभी आँखों से धुंधला दिखाई देने लगता है। उस वक्त लोग अपनी आँखों को रगडऩे लगते हैं या कुछ देर आँखें बंद कर लेते हैं।
हाइपर टेंशन के अतिरिक्त प्रभाव
इसका सीधा हमला आपके दिल पर होता है। आपकी सिकुड़ती हुई आट्र्रीज से ब्लड को पंप करने के लिए दिल को ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है। इस वजह से दिल कमजोर होने लगता है। दिल से जुड़ी मसल्स कमजोर होने लगती हैं। लंबे समय तक ब्लड प्रेशर ज्यादा बना रहने से दिल की धडक़नें असामान्य होने लगती हैं, जिसकी वजह से हार्ट फेल, अटैक या कोई और दिल का रोग होने की सम्भावना बन जाती है।
हाइपरटेंशन की स्थिति बनी रहने से स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। रक्त प्रवाह के सही तरीके से काम न करने की वजह से मस्तिष्क तक जाने वाली नसों को नुकसान होता है, जिसका परिणाम स्ट्रोक के रूप में सामने आता है।
किडनी पर होता है असर
इसके अतिरिक्त रक्त प्रवाह तेज होने से किडनी पर भी असर होता है। लगातार सामान्य से ज्यादा रहने वाला रक्त प्रवाह (ब्लडप्रेशर) किडनी की नसों को नुकसान पहुँचाता है। जिसके कारण किडनी के फिल्टर करने की क्षमता कम होती जाती है और किडनी फेल होने की सम्भावना बन जाती हप्रेग्नेंसी किसी भी महिला के लिए सबसे सुखद अहसास होता है। लेकिन, मां बनने के बाद महिलाओं के शरीर में कई बदलाव होते हैं, जिन्हें देख समझकर वे काफी परेशान रहने लगती हैं। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान और डिलीवरी के बाद प्रत्येक महिला को उचित देखभाल की जरूरत होती है, ताकि इन सभी शारीरिक बदलावों से जल्द से जल्द छुटकारा पा सकें। बच्चे के जन्म के बाद मां की जिम्मेदारियां काफी बढ़ जाती हैं। प्रेग्नेंसी का समय हर महिला के लिए चैलेंजिंग होता है लेकिन ये समय हर एक मां के लिए काफी खास होता है। आज हम अपनी महिला पाठकों को इस आलेख के जरिये यह बताने जा रहे हैं कि डिलीवरी के बाद उनके शरीर में क्या बदलाव महसूस होते हैं और उनसे किस तरह से जल्दी छुटकारा पाया जा सकता है।
बाल झडऩे लगते हैं
महिला चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि डिलीवरी होने के एक सप्ताह बाद से ही महिलाओं के बाल झडऩे लगते हैं। अगर यह समस्या आपके साथ भी हो रही है तो इसके लिए घबराने की जरूरत नहीं हैं। आमतौर पर डिलीवरी के 6 महीने तक औरतों को इस समस्या से जूझना पड़ता है लेकिन बाद में बाल का ग्रोथ फिर से सही हो जाता है। ऐसा हार्मोनल बदलाव के कारण होता है।
चप्पल, जूते, सैंडल के साइज में बदलाव
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का वजन बढ़ जाता है। अमूमन यह 12 से 16 किलो तक बढ़ता है। ऐसे में ज्यादा वजन पैरों में बहुत अधिक दबाव पैदा करता है। इसके कारण पैर का आर्च चपटा हो जाता है। जिसके कारण जूते, चप्पल सैंडल का साइज बदल जाता है। आपको गर्भावस्था के दौरान बड़ी साइज के चप्पल, जूते, सैंडल पहनने पड़ते हैं।
चेहरे में होता है बदलाव
चेहरे में भी कई बदलाव आते हैं। कई महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान व बाद में चेहरे पर सूखेपन की समस्या हो जाती है। यह सब हार्मोनल चेंजेस के कारण होता है। डिलीवरी के बाद धीरे-धीरे हार्मोन में फिर से बदलाव आना शुरू होता है जिसके चलते यह समस्या खत्म होने लगती है।
ब्रेस्ट में बदलाव
ब्रेस्ट में बदलाव होने की समस्या सभी महिलाओं के साथ होती है। ब्रेस्ट में दर्द और सूजन जैसी चीजें होना काफी आम बात है। गर्भावस्था के दौरान ब्रेस्ट का बड़ा होना, स्तनों में दूध का बढऩा, दर्द रहना बहुत ही कॉमन समस्या है। दरअसल प्रेग्नेंसी में स्तन, पेट और जांघों की त्वचा खिंच जाती है। इसके कारण ब्रेस्ट में बदलाव होने लगते हैं। सोते समय दबाव पडऩे के कारण स्तनों से दूध का निकलना, पेट का हल्कापन तथा मानसिक और शारीरिक थकान का होना भी आम बात है। प्रसव के बाद इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा प्रभावित हिस्से योनि और स्तन होते हैं। पूरी प्रजनन प्रक्रिया में स्तनों में काफी दर्द होता है। स्तनों का आकार भी सामान्य से बढ़ जाता है। अधिक तकलीफ हो, तो डॉक्टर से एक बार संपर्क करें।
वजाइना में दर्द
कई महिलाओं को डिलीवरी होने के बाद वजाइना में दर्द होने की समस्या भी हो सकती हैं। डिलीवरी के करीब 7 से 9 महीने के बाद पीरियड्स शुरू हो जाते हैं। ऐसे में कुछ महिलाएँ ऐसी भी होती हैं जिन्हें काफी लेट से पीरियड होता है। यह समस्या ज्यादातर नार्मल डिलीवरी में देखी जाती हैं। सिजेरियन डिलीवरी में ऐसा नहीं होता है। ऐसे में आपको घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा हम नहीं बल्कि महिला चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है।
चिड़चिड़ापन
कुछ महिलाएँ काफी चिड़चिड़ी रहने लगती हैं। बात-बात में गुस्सा करने लगती हैं। बच्चे के जन्म के बाद शरीर में हार्मोनल बदलाव आते हैं। इसके कारण महिलाएँ ज्यादा चिड़चिड़ी हो जाती हैं। ऐसे में खुश रहने के उपाय ढूंढें। अपने साथी के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएँ। अपने बच्चे के साथ उसके हर पल को एन्ज्वॉय करें।
वजन बढऩा और पेट निकलना
गर्भावस्था के दौरान अक्सर कुछ मिहलाओं का वजन काफी बढ़ जाता है। पेट भी जल्दी अंदर नहीं जाता है। प्रसव के बाद यह बढ़ा हुआ वजन महिलाओं के मन में और भी निराशा भर देता है। इसे अपनी लाइफ का हिस्सा ही समझें और वजन और पेट को कम करने के लिए एक्सरसाइज करें। सुबह के समय वर्कआउट करें।
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