लाइफ स्टाइल

क्यों आपको टेक्स्ट मैसेज पर नहीं झगड़ना चाहिए

Kajal Dubey
1 May 2023 11:30 AM GMT
क्यों आपको टेक्स्ट मैसेज पर नहीं झगड़ना चाहिए
x
आप इस बात को स्वीकार करें या न करें, टेक्नोलॉजी ने जीवन के हर पहलू में सेंध लगा दी है. जैसा कि हर नए बदलाव के साथ होता है, शुरुआत में हम उसके सकारात्मक पहलुओं की बात करते हैं और उन्हें देखते हैं. वैसा ही टेक्स्ट मैसेज के साथ हुआ. मैसेजिंग की सुविधा ने प्रेमियों के बीच होनेवाले प्रेम पत्रों के आदान-प्रदान को चलन के बाहर कर दिया. आप कई ऐसे लोगों को जानते हों, जो रात-रातभर मैसेजेस भेजते रहते हैं. पर समय के साथ प्यार बढ़ानेवाले मैसेजेस ने रिश्तों की कड़वाहट को बाहर लाने में अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी. मैसेज भेजकर ब्रेकअप होने की घटनाएं बढ़ने लगीं. यहां हम उन कारणों पर चर्चा करने जा रहे हैं, जिनके मुताबिक़ मैसेज पर झगड़ा करना बुद्धिमानी नहीं है.
मैसेजेस से हमें सामनेवाले के टोन का सही अंदाज़ा नहीं मिलता
टेक्स मैसेजेस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनसे हमें सही-सही अंदाज़ा नहीं मिलता कि सामनेवाला किस मूड में है. जब हम कोई बात सुनते हैं तो उससे बोलने वाले के शब्दों के उतार-चढ़ाव से हमें यह अंदाज़ा मिल जाता है कि वह उस समय किस मानसिक स्थिति में है. अगर उसने कोई कड़वी बात दुखी होकर कही होती है तो हम उसका तीखा जवाब देने से बचते हैं. वह मज़ाक में कुछ कहता है तो हम दिल पर नहीं लेते. मैसेजेस में इमोजीज़ के लाख इस्तेमाल के बावजूद वह बात नहीं आती कि सामनेवाले का टोन सटीक समझ में आ जाए.
आपको सामनेवाले के चेहरे के भाव नहीं दिखते
मैसेजेस को पढ़कर ग़लत विचार बनाने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि मैसेज पढ़ते समय हमें सामनेवाले का चेहरा नहीं दिखता. शब्दों के उतार-चढ़ाव के साथ ही चेहरे के एक्स्प्रेशन की अहमियत होती है. जब हम आमने-सामने बातें करते हैं तो देखते हैं कि सामनेवाला किसी बात पर ग़ुस्सा है, हो सकता है उसे हमने ही ग़ुस्सा दिलाया हो. तब हमें अपनी ग़लती का एहसास हो जाता है. हम सॉरी बोलकर बात को बिगड़ने से रोक सकते हैं.
मैसेज पर वाद-विवाद का कोई समाधान नहीं होता
जब आप किसी से मैसेज पर वाद-विवाद कर रहे होते हैं तो घुमा-फिराकर ख़ुद को सही साबित करने के लिए पुरानी बातों को बीच-बीच में लाते हैं. असली में झगड़ा कहां से शुरू हुआ और इसका संभावित समावित समाधान क्या हो सकता है हम इस बारे में सोचना भी नहीं चाहते. बस सामनेवाले को नीचा दिखाना और ग़लत साबित करना हमारी प्राथमिकता होती है. तो आप घंटों मैसेज पर बहस कर लीजिए कोई समाधान नहीं मिलनेवाला है.
बातचीत की धीमी रफ़्तार चिढ़ पैदा करती है
किसी मुद्दे पर मतभेद होने पर सामने-सामने की बातचीत में चीज़ें तेज़ी से बनती या बिगड़ना हो तो बिगड़ती हैं. पर जब आप मैसेज पर बातें करते हैं तो सामनेवाले के लेट रिस्पॉन्स से आपको कोफ़्त हो सकती है. या आपके द्वारा जल्दी जवाब न दिए जाने से सामनेवाला ग़ुस्सा हो सकता है. ग़ुस्से-ग़ुस्से में इंतज़ार कर रहा बंदा उल्टे-सीधे मैसेजेस भेज देता है, जिससे बन सकने योग्य बात भी हाथ से निकल जाती है.
गले लगाकर सुलह करने का रास्ता नहीं होता
जब आम आमने-सामने बैठकर किसी से बहस कर रहे होते हैं तो एक समय आता है, जब आप दोनों को ही लगता है कि बहसबाज़ी बस हुई, हमें मामले को यहीं दफ़्न कर देना चाहिए. आप दोनों ही एक-दूसरे को गले लगाकर मामले को सुलझा लेते हैं. इस बात की ताकीद देते हुए कि अब इस बारे में कोई बहस नहीं चाहिए. पर मैसेज पर होनेवाले झगड़े में यह सुविधा नहीं होती. हर बार मोबाइल की स्क्रीन चमकते ही दोनों के मन में कोई तर्क या कुतर्क तैरने लगता है, जिससे सुलह की संभावना और धुंधली होने लगती है.
Next Story