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हमने अक्सर जानी-मानी हस्तियों को अपने बच्चों के साथ योग का अभ्यास करते देखा है. जब नामी-गिरामी लोग अपने बच्चों के साथ योग करते हुए वीडियोज़ और फ़ोटोज़ इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हैं, तो देखकर लगने लगता है कि अपने बच्चों को भी योग करना चाहिए. पर दूसरे ही पल बतौर अभिभावक हमारे मन में यह सवाल उठता है कि क्या वाक़ई बच्चों को योग करवाना चाहिए? अगर हां, तो शुरू करने की आदर्श उम्र क्या होनी चाहिए? आपके मन में उठने वाले इन्हीं सवालों के जवाब दे रहे हैं स्पोर्ट्स मैट के मैन्युफ़ैक्चरर ग्रैवोलाइट के निदेशक वैभव सोमानी.
बढ़ती उम्र के बच्चे बाहर जाते हैं, खेलते हैं, इससे उनके ओवरऑल डेवलपमेंट में मदद मिलती है. पर दूसरी लहर ने उन्हें पूरी तरह से घर में क़ैद हो जाने के लिए मजबूर कर दिया है. होम स्कूलिंग, दोस्तों और पड़ोसियों से दूर हो जाने, ऑनलाइन क्लासेस, आउटडोर गेम्स और शारीरिक गतिविधियों की कमी और पार्कों और मनोरंजक केंद्रों से दूर रहने से उनके जीवन में ऊब और तनाव पैदा हो रहा है. इस उम्र में जहां बच्चों के बातचीत करने, घुलने-मिलने, सीखने और खेलने के दिन होते हैं, इस महामारी ने बच्चों के बचपन को पूरी तरह से बदल दिया है. हमें ज़रूरत है, उन्हें तनावग्रस्त होने से बचाने की.
बच्चों को तनाव से बचाने में योग में दिख रही है आशा की किरण
बच्चों को तनाव से बचाने के लिए ज़रूरी है कि शुरू से ही इसके लिए प्रयास किया जाए. तनाव से बचने में ध्यान और योग का बड़ा ही महत्व है, क्योंकि इससे बच्चे विभिन्न परिस्थितियों को संभालने के लिए तैयार हो पाते हैं. योग की अच्छी बात यह है कि यह न केवल बच्चे की भावनात्मक स्थिरता में सुधार करता ही है, साथ ही साथ मन को भी शांत रखने में मदद करता है.
योग बच्चों की भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करता है, जिसके फलस्वरूप उनके मानसिक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. योग एक गहन समझ प्रदान करता है, जो हमें अनुशासित रहने में भी मददगार साबित होता है. जब बच्चे छोटी उम्र से ही योग करना शुरू करते हैं, तब उनका टीनएज वाला भावनात्मक उतार-चढ़ाव का दौर काफ़ी सहजता से बीतता है.
यह सिद्ध हो चुका है कि योग से हमारा मन शांत होता है. और यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुका है कि जब हमारा मन शांत होता है, तब हमारा शरीर और दिमाग़ अच्छे से काम करता है. यदि किसी व्यक्ति को सफल होना है, तो मन का शांत होना और तन का स्वस्थ होना अति आवश्यक है, यानी हम कह सकते हैं योग आगे चलकर बच्चों की सफलता की कुंजी बन सकता है.
किस उम्र में बच्चों को योग कराना शुरू करना चाहिए?
यह बात तो सच है कि बच्चे कोई भी कला जल्दी सीखने में सक्षम होते हैं और आम तौर पर 8 साल की उम्र तक बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली भी विकसित होती है. मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बच्चों की अवधारणाओं और विचारों को समझने की क्षमता भी इसी उम्र से शुरू होती है. इसीलिए आमतौर पर इस उम्र में योग शुरू करने की सलाह दी जाती है.
अब सवाल उठता है कि बच्चों को किस तरह के योग कराने चाहिए? जवाब है, बच्चों को योग के सरल रूपों की आवश्यकता होती है, न कि जटिल आसान या उसके अभ्यास की. जब शरीर बढ़ती अवस्था में होता है, तो योग का एक निश्चित पहलू होता है. कोई भी कठिन आसान या योग अभ्यास जो एक उम्र के साथ आता है, बच्चों पर थोपना या ज़बरन करवाना भी अनुचित है. जब आप अपने बच्चों का योग अभ्यास शुरू करा रहे हैं, तो इस विषय में पेशेवर मदद लेना या किसी योग के शिक्षक की सलाह लेना महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि कुछ ऐसे योगासन हैं जो बच्चों, ख़ासकर लड़कियों को नहीं करना चाहिए. योग शिक्षक इस काम में आपकी मदद कर सकता है. यह समझना बहुत ज़रूरी है कि योग को थोड़ा सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है और केवल उन आसनों का अभ्यास करना चाहिए जो बाल अवस्था के अनुसार मनोविज्ञान के विकास और भावनात्मक संतुलन के निर्माण में मदद करें.
योग के फ़ायदे, जो बच्चों के बेहतर भविष्य की नींव रखते हैं
जब बच्चे नियमित रूप से योगाभ्यास करते हैं, तो वे जीवन की चुनौतियों का आसानी से सामना कर पाते हैं. प्रारंभिक अवस्था में योग करने से शारीरिक और मानसिक, दोनों ही रूप से स्वास्थ्य लाभ होते हैं. शारीरिक रूप से, यह लचीलापन, संतुलन, शक्ति और शरीर में जागरूकता बढ़ाता है, वहीं मानसिक रूप से शांत रहकर परिस्थियों के अनुसार कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है और फलस्वरूप तनाव प्रबंधन में भी मदद करता है.
इसी के चलते, योग मानसिक रूप से आत्मसम्मान को बढ़ाता है, बच्चों को अनुशासन के बारे में सिखाता है और उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं.
योग का एक और प्रमुख लाभ है, इससे बच्चों की याद्दाश्त यानी स्मरण शक्ति बेहतर होती है. उन्हें चीज़ों पर फ़ोकस करने यानी कॉन्सन्ट्रेशन में भी फ़ायदा होता है. यह तो आप जानते ही हैं कि, बेहतर स्मरण शक्ति और कॉन्सन्ट्रेशन का उनके एकैडमी परफ़ॉर्मेंस में कितनी अहमियत होती है.
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