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सेप्सिस हार्ट अटैक और कैंसर के मुकाबले क्यों होगी ज्यादा घातक? एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के अलावा जागरुकता की कमी
Tulsi Rao
16 Sep 2021 9:10 AM GMT
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सेप्सिस संभावित खतरनाक और जानलेवा बीमारी है जो शरीर में किसी संक्रमण से होती है और संक्रमण शरीर में थोड़ा सा कट या खरोंच लगना या कीड़े के काटने पर होता है. अगर संक्रमण ज्यादा दिनों तक बना रहता है, तो उससे आपकी जान भी जा सकती है. बीमारी में शरीर का ब्लड सर्कुलेशन बिगड़ जाता है, जिससे सूजन होता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सेप्सिस 2050 तक कैंसर और हार्ट अटैक के मुकाबले ज्यादा जानलेवा हो सकती है. डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इसका कारण एंटीबायोटिक्स का बेतहाशा इस्तेमाल होगा. लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च से खुलासा हुआ है कि 2017 में 48.9 मिलियन मामले थे और दुनिया भर में सेप्सिस से जुड़ी 1 करोड़ 10 लाख मौत हुई यानी वैश्विक मौत में करीब 20 फीसद का आंकड़ा. रिसर्च में ये भी पता चला कि सेप्सिस से भारत में मौत की दर अफगानिस्तान को छोड़कर दक्षिण एशियाई देशों के मुकाबले ज्यादा है.
2050 तक सेप्सिस कैंसर, हार्ट अटैक के मुकाबले ज्यादा जानलेवा
सेप्सिस संभावित खतरनाक और जानलेवा बीमारी है जो शरीर में किसी संक्रमण से होती है और संक्रमण शरीर में थोड़ा सा कट या खरोंच लगना या कीड़े के काटने पर होता है. अगर संक्रमण ज्यादा दिनों तक बना रहता है, तो उससे आपकी जान भी जा सकती है. बीमारी में शरीर का ब्लड सर्कुलेशन बिगड़ जाता है, जिससे सूजन होता है और ब्लड क्लॉट भी बनने लगते हैं. शुरुआत में ही संकेतों को पहचानकर इलाज कराने से बीमारी को रोका जा सकता है, वरना ऑर्गन फेलियर भी हो सकता है.
मेदांता, गुरुग्राम के डॉक्टर यतीन मेहता है कहते हैं, "सेप्पिस 2050 तक हार्ट अटैक या कैंसर के मुकाबले ज्यादा लोगों की जान लेगी- ये सबसे बड़ी जानलेवा होने जारी है. उसके अलावा, विकासशील देशों जैसे भारत में एंटीबायोटिक्स का गैर जरूरी इस्तेमाल के कारण प्रतिरोधक क्षमता का विकसित होना शायद अधिक मृत्यु दर की वजह बनने जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि सेप्सिस डायरिया, डेंगू और मलेरिया जैसी आम बीमारियों से हो सकती है."
एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के अलावा जागरुकता की कमी
हेल्थ अवारनेस इंस्टीट्यूशन की तरफ से आयोजित सेप्सिस के सम्मेलन में मेहता हाल ही में बोल रहे थे. एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल के अलावा, विशेषज्ञों ने जागरुकता और शुरुआती पहचान की कमी को भी नोट किया. उन्होंने सेप्सिस के बारे में जमीनी सतह पर शिक्षा और सतर्कता बढ़ाने की मांग की. मेहता ने कहा कि जागरुकता और शुरुआत में ही पहचान की जरूरत है और एंटीबायोटिक से गैर जरूरी इलाज की अनदेखी की जानी चाहिए.
भारत सरकार के पूर्व स्वास्थ्य सचिव लव वर्मा ने बताया, "सेप्सिस को ऐसी मान्यता नहीं दिया जा रहा है जिसका हकदार है और नीतिगत दृष्टिकोण से ठंडे बस्ते में है. हमें स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर बनाने की जरूरत है और उसे नीति निर्धारकों के जरिए प्राथमिकता के आधार पर लिया जाना चाहिए." हालांकि ये शिशुओं और प्रेगनेन्ट महिलाओं में मौत का प्रमुख कारण है, लेकिन सेप्सिस बुजुर्गों, इंटेसिव केयर यूनिट के मरीजों, और एड्स, कैंसर और ऑटोइम्यून रोग पीड़ितों को भी प्रभावित कर सकती है.
क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पीटल्स के संस्थापक और चेयरमैन किशोर कुमार ने कहा "जब तक हम जनता को जागरुक और शिक्षित नहीं करते हैं, तब तक सेप्सिस एक पहेली रहेगी. भारत में करीब 54 फीसद शिशुओं की मौत सेप्सिस के कारण होती है जो अफ्रीका से बदतर है."
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