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जिस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है, उस दिन को मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है. जबकि उत्तर भारत के लोग इसे सत्तू संक्रांति या सतुआ संक्रांति के नाम से जानते हैं. इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी करते हैं. इसी के साथ खरमास समाप्त हो जाता है और सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. मेष संक्रांति को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है.कुछ राज्यों में इसे सतुआना (Satuani 2023) के रूप में मनाया जाता है और इस दिन सत्तू को उनके इष्ट देवता को अर्पित किया जाता है और फिर स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.
कहां-कहां मनाया जाता है सतुआन
सतुआन मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है. यह बिहार के मिथिलांचल के लोगों द्वारा जुड़शीतल पर्व के नाम से भी मनाया जाता है और इसे मिथिला में नए साल की शुरुआत का प्रतीक कहा जाता है. प्रकृति के इस पर्व को आप एक बार ध्यान से देखें तो आपको पता चलेगा कि इसे किन सिद्धांतों से जोड़ा गया है. आपको बता दें कि बिहार के अंग क्षेत्र में सतुआना से एक दिन पहले ‘टटका बासी’ उत्सव मनाया जाता है.
क्यों मनाया जाता है सतुआन का त्योहार?
आमतौर पर हर साल सतुआन का त्योहार 14 या 15 अप्रैल को ही पड़ता है. इस साल यह पर्व 14 अप्रैल को पड़ रहा है. आपको बता दें कि इस दिन सूर्य राशि परिवर्तित करते हैं. इसी के साथ इस दिन से गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है. सतुआन के दिन सत्तू खाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है. इस दिन लोग मिट्टी के बर्तन में भगवान को पानी, गेहूं, जौ, चना और मक्का के सत्तू के साथ आम का टिकोरा चढ़ाते हैं. इसके बाद वह स्वयं इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.
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Apurva Srivastav
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