लाइफ स्टाइल

हमें क्यों लुभाती हैं डरावनी फ़िल्में

Kajal Dubey
28 April 2023 1:46 PM GMT
हमें क्यों लुभाती हैं डरावनी फ़िल्में
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डरावनी फ़िल्में आपको बुरी तरह डराती हैं, पर फिर भी जब कभी टीवी पर हॉरर फ़िल्म दिखाई जाती है, आप उन सभी दृश्यों को देखने उतावली हो जाती हैं, जिन्हें आपने पहले भी कंबल में छुपकर देखा था? पर केवल आप अकेली ही ऐसी नहीं हैं, जो ऐसी फ़िल्मों से दूर भागना चाहते हुए भी उसके डर से कंपा देनेवाले आकर्षण में बंध जाती हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि जहां कई लोग अपनी डर सहने की सीमा का परीक्षण करते हैं, वहीं हममें से कई डरने के रोमांच का आनंद लेते हैं... ख़ासकर तब, जब डर की वजह से ये पसीना किसी सुरक्षित ज़रिए से आ रहा हो. ‘‘सभी लोग डरावनी फ़िल्मों उतना आनंद नहीं उठाते, जितना कि कुछ रोमांचपसंद व्यक्तित्व वाले लोग उठाते हैं, जिन्हें ऐसी फ़िल्मों का अनुभव ऊर्जा देता है,’’ बताते हैं दिल्ली के मैक्स हेल्थकेयर के साइकियाट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ समीर मल्होत्रा.
ये केमिकल्स का कमाल है
‘‘दि ऐमिटीविले हॉरर वो पहली हॉरर फ़िल्म है, जो मैंने देखी थी,’’ बताती हैं मुनमुन चौधरी, 38, लेक्चरर. ‘‘तब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ती थी और मुझे अब भी याद है कि मैंने वो पूरी फ़िल्म अपनी आंखों को हाथ से ढंककर उंगलियों के बीच से देखी थी! उससे भी ज़्यादा डरावनी थी फ़िल्म के बाद अपनी बहन के साथ सिनेमा हॉल से घर लौटने की यात्रा, क्योंकि तब तक शाम हो चुकी थी और रास्ता पेड़ों-पौधों के झुरमुट से भरा हुआ था. लेकिन मेरे भीतर अजीब-सा रोमांच भी मौजूद था.’’
विशेषज्ञों के अनुसार, डरावनी फ़िल्में देखने में मिलनेवाले आनंद की वजह है डर के कारण पैदा हुआ उत्साह और रोमांच. दिल्ली के साइकियाट्रिस्ट डॉ अवधेश शर्मा बताते हैं,‘‘जब हम डरते हैं तो हमारे मस्तिष्क से डोपामाइन और नोरैड्रेनालिन नामक केमिकल्स स्रवित होते हैं, जो हममें रोमांच और उत्साह का संचार करते हैं.’’
सहनशक्ति का आकलन
मस्तिष्क से डोपामाइन का स्रवित होना ही इस बात की व्याख्या करता है कि हम क्यों अपनी आदतों को नहीं छोड़ पाते या उनके उनके ग़ुलाम बने रहते हैं. ‘‘यह संभव है कि डरावनी फ़िल्में देखने से मिलनेवाले आनंद के कारण कोई ऐसी फ़िल्में देखने का आदी हो जाए,’’ डॉ शर्मा कहते हैं. ‘‘हालांकि यह भी सच है कि पॉर्न फ़िल्म्स की तरह ही, इन डरावनी फ़िल्म्स को बार-बार देखने पर इनका आदी हो जाए. उसकी प्रतिक्रिया नीरस हो जाए और उसी उत्तेजना का अनुभव करने के लिए हमें और ज़्यादा डरावनी फ़िल्म देखने की इच्छा हो.’’
यही कारण है कि डरावनी फ़िल्में और ज़्यादा डरावनी बनाई जाने लगी हैं. ‘‘मुझे याद है कि जब मैंने पहली बार फ़िल्म साइको देखी थी तो मैं बुरी तरह डर गई थी. लेकिन जब दोबारा मैंने टीवी पर ये फ़िल्म देखी तो मुझे उतना रोमांच महसूस नहीं हुआ!’’ बताती हैं शहनाज़ पटेल, 25, बैंकर. ‘‘ये रोमांच पैदा कर देनेवाली जापानी हॉरर क्लासिक जू-ऑन प्रोड्यूस जितनी रोमांचक नहीं लगी.’’
दूसरों की परेशानी का मज़ा
विशेषज्ञ कहते हैं कि रोमांच और उत्तेजना की वजह से ही हमें बार-बार डरावनी फ़िल्में देखने की इच्छा होती है. आप पूछ सकती हैं कि ऐसा ही रोमांच हमें वास्तविक जीवन की स्थितियों से क्यों नहीं मिलता? ‘‘डरावनी फ़िल्म देखने का एक बड़ा मज़ा ये है कि फ़िल्म में हत्या करनेवाला व्यक्ति, परदे से बाहर तो आनेवाला है नहीं,’’ कहती हैं सुनीता झा, 29, रिसर्च असिस्टेंट. डॉ शर्मा के अनुसार, मनुष्य स्वाभाविक तौर पर उत्सुक होते हैं और अनदेखी, अनचीन्ही चीज़ों के बारे में जानना चाहते हैं और डरावनी फ़िल्म यह जानने का अच्छा ज़रिया होती है कि हम डरावनी स्थिति में कैसा महसूस करेंगे.
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