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लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने का फैसला, सरकार ने क्यों लिया ?
कैबिनेट ने बुधवार को लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. नरेंद्र मोदी सरकार के इस फैसले से भारत में महिला और पुरुषों की शादी की उम्र एक समान हो जाएगी. सरकार मौजूदा कानून में संशोधन कर महिलाओं की शादी की उम्र को बढ़ाने जा रही है. इसके लिए सरकार ने जून 2020 में समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया था जिसमें नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल भी शामिल थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, टास्क फोर्स ने पिछले महीने ही प्रधानमंत्री कार्यालय और महिला व बाल विकास मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी है.
'सेंटर फॉर लॉ ऐंड पॉलिसी रिसर्च' और सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट जायना कोठारी का कहना है कि लड़कियों और लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र में फर्क नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा, कई मानवाधिकार संगठन और बाल अधिकार कार्यकर्ता ये मांग करते रहे हैं कि लड़के और लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र एक ही होनी चाहिए. भारत के कई पुराने कानून इस धारणा के तहत बनाए गए थे कि लड़कियां लड़कों से पहले परिपक्व हो जाती हैं इसलिए उनकी शादी की न्यूनतम उम्र में भी फर्क रखा जाना चाहिए. हालांकि, साल 2008 की लॉ कमीशन रिपोर्ट में ये सुझाव दिया गया था कि लड़कों और लड़कियों की शादी की न्यूनतम उंम्र एक समान होनी चाहिए. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी साल 2018 में यही सुझाव दिया था. इंडियन मेजॉरिटी ऐक्ट 1875, 18 साल की उम्र होने पर मतदान और किसी भी तरह के अनुबंध में शामिल होने का अधिकार देता है और महिला-पुरुष दोनों के लिए ही ये उम्र समान है.
हालांकि, जायना कोठारी कहती हैं, शादी के लिए फिलहाल जो न्यूनतम उम्र है, उसके बावजूद बाल विवाह रोकना संभव नहीं हुआ है. इसलिए बाल विवाह रोकने के मकसद से लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने का कोई मतलब नहीं है. अगर सरकार चाहती है कि लड़कियां कम उम्र में गर्भवती ना हों और इसका असर उनकी सेहत पर ना पड़े तो इसके लिए दूसरे तरीके अपनाए जाने चाहिए.