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चौथे दिन कब दिया जाएगा उगते सूर्य को अर्घ्य, जानें मुहूर्त
छठ का चौथा दिन बेहद खास होता है. आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य के रूप में जाना जाता है. छठ पूजा का चौथा दिन उगते सूर्य के लिए जाना जाता है, चौथे और आखिरी दिन अर्घ्य का बेहद महत्व होता है. चौथे दिन को ऊषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है. यह पूरा पर्व भगवान सूर्य और उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित होता है. कल छठ महापर्व का अंतिम दिवस है. सारी व्रती महिलाएं कल सूर्य भगवान को अंतिम अर्घ्य चढ़ाएंगी. आज जहां लोगों ने डूबते सूर्य की पूजा की वहीं का उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इस महापर्व का उद्यापन किया जाएगा. मौसम विभाग (आईएमडी) के मुताबिक कल दिल्ली में सूर्य के उगने का समय 6: 31 का बताया गया है.
ऊषा अर्घ्य (Usha Arhgya importance)
छठ पूजा का चौथा और आखिरी दिन यानि ऊषा अर्घ्य उगते सूर्य को दिया जाता है. सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ व्रत का पारण करते हैं. इस दिन नदी किनारे उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद सूर्य भगवान और छठ मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना की जाती है. पूजा के बाद कच्चे दूध, जल और प्रसाद से व्रत का पारण किया जाता है.
ऊषा अर्घ्य का शुभ मुहूर्त (Usha Arhgya Shubh Muhurat)
ऊषा अर्घ्य 31 अक्टूबर यानि कल सोमवार को किया जाएगा. 31 अक्टूबर को सूर्योदय का समय सुबह 06 बजकर 27 मिनट पर है.
ऊषा अर्घ्य के दिन ये बाते हैं जरूरी
1. सूर्य देव को अर्घ्य देते समय चेहरा पूर्व दिशा की ओर रहना चाहिए.
2. अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का इस्तेमाल करें.
3. अर्घ्य हमेशा दोनों हाथों से दें.
4. सूर्य को अर्घ्य देते समय पानी की धार से किरणों को देखें.
5. अर्घ्य देते समय पात्र में अक्षत और लाल रंग का फूल डालें.
छठ की पौराणिक कथा
राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी जिसके चलते वह बेहद ही परेशान और दुखी रहा करते थे. एक बार महर्षि कश्यप ने राजा से संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महाराज जी की आज्ञा मानकर राजा ने यज्ञ कराया जिसके बाद राजा को एक पुत्र हुआ भी लेकिन दुर्भाग्य से वो बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात को लेकर राजा और रानी और उनके और परिजन और भी ज्यादा दुखी हो गए. तभी आकाश से माता षष्ठी आई. राजा ने उनसे प्रार्थना की और तब देवी षष्ठी ने उनसे अपना परिचय देते हुए कहा कि, 'मैं ब्रह्मा के मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं. मैं इस विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और जो लोग निसंतान हैं उन्हें संतान सुख प्रदान करती हूं.' इसके बाद देवी ने राजा के मृत शिशु को आशीष देते हुए उस पर अपना हाथ फेरा जिससे वह तुरंत ही जीवित हो गया. यह देखकर राजा बेहद ही प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी षष्ठी की आराधना प्रारंभ कर दी. कहा जाता है कि इसके बाद ही छठी माता की पूजा का विधान शुरू हुआ.