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जब पुरुषों में भी दिखने लगते हैं प्रेग्नेंट होने के लक्षण, जानें क्या है ये
jantaserishta.com
8 Jun 2021 7:34 AM GMT
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प्रेग्नेंसी एक खूबसूरत एहसास है जिसका अनुभव सिर्फ महिलाएं ही कर सकती हैं. हालांकि, आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ पुरुष भी प्रेग्नेंसी के लक्षणों को अनुभव कर सकते हैं. ऐसे लक्षण महसूस करने वाले पुरुषों में कौवॉड सिंड्रोम पाया जाता है. अपने महिला पार्टनर की प्रेग्नेंसी का असर इन पुरुषों पर इस कदर होता है कि वो पार्टनर को महसूस होने वाले सारे लक्षण खुद भी महसूस करने लगते हैं. इसे 'सहानुभूति गर्भावस्था' (Sympathetic pregnancy) भी कहा जाता है. मेडिकल रूप से इसे अभी तक किसी भी तरह का डिसऑर्डर नहीं माना गया है.
लंदन सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल की एक स्टडी के मुताबिक, कौवॉड सिंड्रोम होने पर पुरुषों को महिलाओं के जैसे ही पेट में दर्द, पेट फूलना, पीठ में दर्द, आलस आना, मॉर्निंग सिकनेस, दांत में दर्त, ज्यादा भूख लगने जैसे प्रेग्नेंसी के लक्षण महसूस होते हैं. इसके अलावा डिप्रेशन, मूड में बदलाव, सुबह जल्दी उठना, तनाव और यादाश्त कमजोर होने जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं.
कुल मिलाकर कहा जाए तो प्रेग्नेंसी के समय जो पुरुष अपनी महिला पार्टनर और होने वाले बच्चे के प्रति बहुत ज्यादा सहानुभूति रखते हैं, उनमें कौवॉड सिंड्रोम के लक्षण आने लगते हैं. इसके अलावा, होने वाले बच्चे के बारे में बहुत ज्यादा सोचने से भी इसका असर शरीर पर पड़ने लगता है. ये सिंड्रोम प्रेग्नेंसी के पैटर्न पर ही चलता है. ये प्रेग्नेंसी के पहली तिमाही में शुरू होता है, दूसरे में अस्थायी रूप से चला जाता है और अंतिम तिमाही में फिर से इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं. बच्चे के पैदा होने के बाद भी कुछ दिनों तक ये लक्षण दिखाई दे सकते हैं.
इस सिंड्रोम के ज्यादातर मामले विकसित देशों में पाए जाते हैं. कई स्टडीज के अनुसार अमेरिका, स्वीडन, थाईलैंड और ब्रिटेन के पुरुषों में ये सिंड्रोम ज्यादा देखने को मिलते हैं. भावनात्मक लगाव के अलावा हार्मोन में बदलाव भी इसकी एक वजह मानी जाती है.
मनोवैज्ञानिक असर- मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत के अनुसार, महिलाओं की प्रजनन क्षमता से कुछ पुरुषों को एक तरह की जलन होती है जिसकी वजह से उनमें ये सिंड्रोम होने लगता है. तनाव, होने वाले बच्चे के बारे में बहुत ज्यादा चिंता करने, प्रेग्नेंसी के दौरान पार्टनर के साथ मतभेद की वजह से पुरुषों पर इसका मनोवैज्ञानिक रूप से असर पड़ने लगता है.
कौवॉड सिंड्रोम की एक अन्य थ्योरी के मुताबिक, कभी-कभी पुरुष होने वाले बच्चे को अपने प्रतिद्वंद्वी का तरह देखते हैं क्योंकि उन्हें अपनी मां का ध्यान ज्यादा मिलता है. वहीं मनोवैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि कौवॉड सिंड्रोम एक सुरक्षात्मक कवच की तरह है क्योंकि इसमें पुरुष अपने पार्टनर और होने वाले बच्चे से बहुत ज्यादा लगाव रखते हैं और उनका हर तरीके से ख्याल रखने लगते हैं.
कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, पुरुष सीधे तौर पर प्रेग्नेंसी का अनुभव नहीं कर सकते हैं. प्रेग्नेंसी में उनकी भूमिका महज सहायक होती है. इस दौरान उन्हें कभी-कभी कुछ मामूली चीजें महसूस होती हैं जिनका वास्तव में कोई मतलब नहीं होता है. ऐसी स्थिति में कुछ पुरुष अनजाने में ही कौवॉड सिंड्रोम के लक्षण महसूस करने लगते हैं ताकि वो पार्टनर का ध्यान अपनी तरफ खींच सकें.
कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि कुछ पुरुष पिता बनने का बहुत ज्यादा तनाव लेते हैं. वो खुद में एक तरह का दबाव महसूस करते हैं. इसके अलावा, वो होने वाले बच्चे के साथ खुद को जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं जिसकी वजह से उनमें कौवॉड सिंड्रोम पनपने लगता है.
हार्मोन में बदलाव- कौवॉड सिंड्रोम का हार्मोन के साथ भी संबंध है. हालांकि इस पर अभी और रिसर्च जारी है. 2000 और 2001 में छपी एक स्टडी में इस सिंड्रोम में प्रेग्नेंसी के पहली और तीसरी तिमाही में पुरुषों का प्रोलैक्टिन और एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया. वहीं टेस्टोस्टेरोन और तनाव हार्मोन कोर्टिसोल में कमी पाई गई. ये हार्मोनल बदलाव होने वाले पिता के व्यवहार के साथ-साथ थकान, भूख में बदलाव और वजन बढ़ने जैसे कौवॉड सिंड्रोम के लक्षणों से जुड़े थे.
कौवॉड सिंड्रोम के बारे में जानने के लिए और स्टडीज की जा रही हैं. हालांकि फिलहाल इसे पिता का अपनी प्रेग्नेंट पार्टनर और होने वाले बच्चे की तरफ बहुत ज्यादा भावनात्मक लगाव से ही जोड़ कर देखा जाता है. इसके अलावा हार्मोनल बदलाव भी कुछ हद तक इस सिंड्रोम के जिम्मेदार हैं.
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