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दुनिया में एक इंसान जो कभी भी आपका बुरा नहीं कर सकता, वह है आपकी मां. भगवान ने दुनिया की हर मां की प्रोग्रामिंग ही कुछ इस तरह की है कि वह कभी अपने बच्चे का बुरा कर ही नहीं सकती. दुनिया में भले कोई मां को बुरा न कहे पर कभी-कभी मांएं ख़ुद को बुरी मां समझने लगती हैं. हमने पांच महिलाओं से बात करके जानना चाहा कि वह कौन-सा लम्हा था, जब उन्होंने ख़ुद को बुरी मां समझा.
‘‘एक बार मैं बेड पर लेटकर अपने बच्चे को दूध पिला रही थी. बच्चा बेड के किनारे की ओर था. मैंने सोचा जैसे ही यह सो जाएगा, उसे शिफ़्ट करके दूसरी ओर कर दूंगी. पर उसके सोने के पहले मुझे ही झपकी लग गई. और दूसरे ही पल मेरी नींद मेरे बच्चे के ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ सुनकर खुली. वह बेड से नीचे लुढक गया था. वह उस समय केवल छह महीने का था. मैंने ख़ुद को दुनिया की सबसे लापरवाह मां समझा और अपने ऊपर इतना अधिक ग़ुस्सा हुई कि बता नहीं सकती.’’
-सीमा पारीख
‘‘मेरी छोटी बेटी बड़ी शैतान है. कभी शांति से अपना काम करती रहती है तो कभी-कभी आपका जीना हराम कर देती है. मैं एक फ्रीलांस राइटर हूं, जब बेटी शैतानी वाले मूड में आ जाती है तब मेरा काम होना मुश्क़िल हो जाता है. तब मैं किसी अर्जेंट क्लाइंट मीटिंग का हवाला देकर अपने सास-ससुर के भरोसे उसे छोड़, घर से निकल जाती हूं. फिर किसी कॉफ़ी शॉप जाती हूं. वहां काम करती हूं. आराम से कॉफ़ी की चुस्कियां लेते हुए रिलैक्स करती हूं. उसके बाद शाम को घर लौटती हूं. उस वक़्त मुझे लगता है कि मैं अच्छी मां नहीं हूं.’’
-मेघना परिहार
‘‘हम लोग एक फ़ैमिली वेकेशन पर गए थे. परिवार के सभी लोग पूल में मज़े कर रहे थे. मैं अपने छोटे बेटे के साथ बाहर थी. तभी मेरा मन भी किया कि मैं भी पूल में आऊं. पूल के किनारे उसकी ट्रॉली अच्छे से पार्क करके मैं भी पूल में उतर गई. उसपर ध्यान रखते हुए मैंने भी ख़ूब एन्जॉय किया. मैं ख़ुश थी कि मैं एक साथ दोनों काम करने में सफल रही. पर जब बच्चे के पास जाकर देखा तो उसके शरीर पर कई जगह मच्छरों के काटने के निशान थे. मैंने सोचा कितनी बुरी और स्वार्थी मां हूं मैं.’’
-नीरजा मनोज
‘‘मेरा पांच महीने का बच्चा जब रोना शुरू करता है तो ख़ूब तबीयत से रोता है. अक्सर मैं उसे चुप कराने के लिए लेकर घूमती हूं. पर कभी-कभी मैं जब ज़्यादा थकी या चिड़चिड़े मूड में होती हूं तो उसे चुप कराने की कोशिश नहीं करती. उसे जीभरकर रो लेने देती हूं. वह रोते रहता है और मैं सोशल मीडिया अपडेट्स चेक करती रहती हूं या कुछ वीडियो वगैरह देखती हूं. हालांकि जब मेरा मूड अच्छा हो जाता है तो इस बात का बुरा भी लगता है.’’
-नेहा खत्री
‘‘मुझे मेरे लंबे फ्रेंच-मैनिक्योर्ड नाख़ून बेहद पसंद है. घर के बड़ों की चेतावनी के बावजूद मैंने कभी उन्हें कटाना गवारा नहीं समझा. परिवार के लोग कहते थे, तुम्हारी बच्ची छोटी है, कभी उसे नाख़ून से लग गया तो क्या होगा, पर मैंने ध्यान नहीं दिया. एक बार मेरे नाख़ून बच्ची के कपड़ों में फंस गए और छुड़ाने के चक्कर में उसके पेट पर गहरी खरोंच लग गई. वह दस मिनट तक बुक्का फाड़कर रोती रही. उस घटना के बाद मैंने कभी नाख़ून बड़े नहीं किए.’’
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