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कितना होना चाहिए शरीर में ऑक्सीजन का लेवल

Kajal Dubey
7 May 2023 12:19 PM GMT
कितना होना चाहिए शरीर में ऑक्सीजन का लेवल
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आजकल कोरोना वायरस का संक्रमण अधिक ख़तरनाक इसलिए भी माना जाने लगा है, क्योंकि इसके सिम्पटम्स यानी लक्षण दिख नहीं रहे हैं. हालांकि इसका एक लक्षण अब भी इसकी पहचान करने में काफ़ी कारगर साबित हो रहा है. और वह है शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाना. शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो कोरोना ही नहीं कई और बीमारियों का संकेत है. शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर सबसे ख़तरनाक असर हमारी इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है. इस स्थिति में कोई भी वायरस और बैक्टीरिया हमारे शरीर पर हावी हो सकता है. शरीर ऊर्जा का निर्माण नहीं कर पाता तो अचानक से हमें कमज़ोरी का अनुभव होने लगता है. इस लेख में शरीर में ऑक्सीजन की कमी के लक्षणों को पहचानने की चर्चा करेंगे ताकि सिर्फ़ कोरोना ही नहीं अन्य दूसरी बीमारियों के ख़तरों को समय रहते पहचाना जा सके.
क्यों ज़रूरी है शरीर के लिए ऑक्सीजन, कितनी होनी चाहिए इसकी मात्रा?
शरीर में ऑक्सीजन का स्तर यह बताता है कि कितना ऑक्सीजन हमारे ख़ून के माध्यम से पूरे शरीर में सर्कुलेट हो रहा है. ऑक्सीजन को पूरे शरीर में कैरी करने का काम रेड ब्लड सेल्स करते हैं, वे फेफड़ों से ऑक्सीजन लेते हैं और उसे शरीर की हर कोशिका तक पहुंचाते हैं. सेल्स को ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. जब तक शरीर में ऑक्सीजन का स्तर सामान्य बना रहता है, तब तक हमारा शरीर दुरुस्त रहता है.
ब्लड ऑक्सीजन लेवल का सामान्य स्तर 75 से 100 मिलीमीटर होता है. वहीं जब ऑक्सीजन का स्तर 60 मिलीमीटर से कम हो जाता है, तब यह ख़तरे का संकेत है. ऐसे व्यक्ति को तुरंत ऑक्सीजन सप्लिमेंट्स की ज़रूरत पड़ सकती है. शरीर में ऑक्सीजन की कमी को हाइपोएक्सेमिया कहा जाता है.
शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को मापने के दो प्रचलित तरीक़े हैं. सबसे आसान है पल्स ऑक्सीमीटर की मदद से इसका स्तर जांचना. लेकिन एक्युरेट रिज़ल्ट के लिए आर्टिरियल बल्ड गैस या एबीजी टेस्ट कराया जाता है. एबीजी में आमतौर पर कलाई के पास से ख़ून का सैम्पल लेकर लैब में टेस्ट किया जाता है. इसका नतीजा एकदम सही आता है. वहीं भले ही पल्स ऑक्सीमीटर आसान हो, पर इसके नतीजे की एक्युरेसी पर बहुत ज़्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता. इसमें हाथ की उंगलियों पर एक छोटा-सा डिवाइस लगाया जाता है, जो व्यक्ति के पल्स के आधार पर शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बताता है. घरों में इस्तेमाल के लिए यह एक अच्छा और उपयोगी डिवाइस है.
कैसे पता चलता है कि शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम हो रहा है?
जैसा कि हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि शरीर को अपनी सभी क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए 70 से 100 मिलीमीटर ऑक्सीजन स्तर की ज़रूरत होती है. जब उसका स्तर इससे नीचे जाता है, तब शरीर की नियिमत क्रियाएं बाधित होती हैं, जिसका सबसे पहला असर थकान के रूप में दिखाई देने लगता है. सांस लेने में दिक़्क़त होने लगती है. कुछ लोगों की सांस फूलने लगती है. शरीर में रक्त का प्रवाह धीमा पड़ जाता है, जिसकी वजह से बेचैनी और घबराहट बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में दिल की धड़कन असामान्य रूप से बढ़ जाती है. तेज़ सिरदर्द, सीने में दर्द, देखने में समस्या, सिर चकराना, शरीर का लड़खड़ाना जैसे कई दूसरे लक्षण भी ऑक्सीजन की कमी की ओर इशारा करते हैं.
क्या हैं शरीर में ऑक्सीजन की कमी के कारण?
रक्त में ऑक्सीजन का स्तर अचानक कम हो जाना हवा में ऑक्सीजन कम होने के चलते भी हो सकता है. अगर फेफड़े ठीक तरह से काम नहीं करते तो भी यह समस्या हो सकती है. यदि फेफड़ों तक रक्त का सर्कुलेशन ठीक तरह नहीं हो पाता तो भी शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है.
जो लोग फ़िज़िकली ऐक्टिव नहीं रहते उनके शरीर में भी ऑक्सीजन का स्तर कम होता है. इसकी कमी का संबंध हमारे खानपान से भी है. आपकी डायट अगर सही नहीं होगी तो आप ख़तरे में पड़ सकते हैं. ख़ासकर अगर आपके खानपान में आयरन की मात्रा कम है तो रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम होगी ही. आयरन लाल रक्त कोशिकाओं यानी रेड ब्लड सेल्स का एक प्रमुख घटक है. और फेफड़ों सहित पूरे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह करने में रेड ब्लड सेल्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
शरीर में ऑक्सीजन की कमी किन बीमारियों का है संकेत?
बहरहाल हम अभी की सबसे बड़ी बीमारी यानी कोरोना महामारी के संबंध में बात करें तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी यह संकेत देती है कि आपके फेफड़े ठीक तरह से काम नहीं कर रहे हैं. यह तो हम जानते ही हैं कि कोरोना का संक्रमण फेफड़ों को डैमेज कर देता है. जिन लोगों को दमा की समस्या होती है, उनमें भी दमा का अटैक आने पर शरीर का ऑक्सीजन कम हो जाता है.
यदि शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम हो जाए तो ब्रेन डैमेज और हार्ट अटैक तक की स्थिति बन जाती है. शुगर के रोगियों में यदि ऑक्सीजन की कमी हो जाए तो उनकी शुगर अचानक बहुत अधिक बढ़ सकती है, जो कि एक जानलेवा स्थिति भी बन सकती है. शुगर बढ़ने का कारण यह है कि ब्लड ग्लूकोज़ का रूपांतरण ऊर्जा में होना रुक जाता है.
ऑक्सीजन का स्तर अचानक से बहुत अधिक घट जाने पर शरीर में थायरॉइड हार्मोन्स का संतुलन गड़बड़ा जाता है. इस स्थिति में थायरॉइड का स्तर या तो बहुत अधिक बढ़ सकता है या बहुत अधिक घट सकता है. इससे हाइपोथायरॉइडिज़्म या हाइपरथायरॉइडिज़्म की समस्या हो सकती है.
क्या आपने कभी कुछ महिलाओं की ठुड्डी पर बाल या मुहांसों से बुरी तरह भरा चेहरा देखा है? अमूमन ऐसा होता है रिप्रोडक्टिव हार्मोन्स के असंतुलन के चलते. इस असंतुलन के चलते महिलाएं पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) नामक बीमारी का सामना करती हैं. चेहरे पर बाल, मुंहासों भरा चेहरा, पीरियड्स न आना या उनका अनियिमत हो जा ना इसके कुछ बेहद आम लक्षण हैं. महिलाओं में यह बीमारी कई बार शर्मिंदगी का कारण बन जाती है. शरीर पर बहुत ज़्यादा बाल उग आना या वज़न बढ़ जाना, उनमें हीन भावना पैदा कर सकते हैं. हमें इस बीमारी के कारण, प्रभाव और इससे राहत दिलानेवाले उपायों के बारे में विस्तार से बताया आयुष नारंग ने, जो रॉवन बायोक्यूटिकल्स नामक एक जानी-मानी डर्मैटोलॉजी कंपनी के सेल्स और मार्केटिंग (इंटरनैशनल बिज़नेस) हेड हैं.
आख़िर क्या है पीसीओएस होने का कारण और महिलाओं की सेहत पर इसका प्रभाव?
जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं कि पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का कारण है प्रजनन के लिए ज़िम्मेदार हार्मोन्स में असंतुलन. इन हार्मोन्स के चलते ओवरी में गड़बड़ी पैदा हो जाती है. ओवरी का काम है हर महीने एक अंडे जिसे ओवम कहते हैं को मैच्योर करना और उसे रिलीज़ करना. पीसीओएस के चलते कई बार ये एग्स डेवलप नहीं हो पाते या कभी-कभी हर महीने मासिक साइकिल के अनुसार रिलीज़ नहीं होते. जिसके कारण पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. जबकि यह सभी को पता है कि नियमित पीरियड महिलाओं की सेहत के सबसे सटीक इंडिकेटर हैं. पीरियड्स समय पर नहीं आने के कारण महिलाओं को गर्भधारण कर पाने में समस्या होती है. पीसीओएस महिलाओं में बांझपन (इन्फ़र्टिलिटी) का सबसे प्रमुख कारण है.
यह तो हो गई इसके प्रभाव की बात. यह होता क्यों है? यह होता है ओवरीज़ में छोटे-छोटे सिस्ट्स के बन जाने के कारण. इन सिस्ट्स में फ़्लूइड भरा होता है. शरीर में 5 अल्फ़ा-रिडक्टेस का लेवल बढ़ जाने और एल-कैरनिटाइन अमीनो एसिड का स्तर कम हो जाना पीसीओएस होने का एक प्रमुख कारण है. ऐसा माना जाता है कि महिलाओं में पुरुष हार्मोन्स की मात्रा बढ़ने से भी ओवरीज़ अंडे बनानेवाले हार्मोन्स नहीं रिलीज़ कर पातीं.
क्या होते हैं पीसीओएस के लक्षण?
आमतौर पर पीसीओएस के लक्षण प्युबर्टी यानी युवावस्था के शुरुआत में ही दिखने लगते हैं. कई मामलों में वे टीनएज के अंतिम हिस्से में स्पष्ट रूप से दिखने लगते हैं. ऐसे भी मामले होते हैं, जिनमें लंबे समय तक पीसीओएस के लक्षण दिखाई नहीं देते. इस वजह से महिला को पता ही नहीं चलता कि उसे पीसीओएस है.
सबसे आम लक्षण है अनियमित पीरियड्स या बिना प्रेग्नेंसी के पीरियड्स का मिस होना. वज़न बढ़ना, थकान, शरीर पर अनचाहे बालों की वृद्धि तेज़ी से होना, सिर के बालों का पतला होना, गर्भ धारण करने में असफलता, टीनएज के बाद भी मुहांसे होना, बार-बार मूड बदलना, पेट में दर्द रहना, तेज़ सिर दर्द होना और अनिद्रा की समस्या होना.
तो अगर आपको जल्दी-जल्दी वैक्सिंग के लिए जाना पड़ रहा हो, एक्सरसाइज़ के बावजूद वज़न बढ़ रहा हो, मुहांसे बुरी तरह परेशान कर चुके हों, पीरियड्स भी रेग्युलर न हो और आपका मूड अक्सर ऑफ़ रहता हो तो पीसीओएस की संभावना से नाकारा नहीं जा सकता.
इससे निपटने के लिए क्या विकल्प उपलब्ध हैं?
हालांकि हम पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम जैसी गंभीर बीमारी में आपको ख़ुद से इलाज करने की सलाह क़तई नहीं देंगे, पर हम उन विकल्पों के बारे में सिर्फ़ बताना चाहेंगे, जो आमतौर पर डॉक्टर्स अपनाते हैं.
कई बार बर्थ कंट्रोल पिल्स का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसमें एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन होते हैं, जो हार्मोन्स के असुंतलन को ठीक कर देते हैं. पीरियड्स नियमित हो जाते हैं. बालों की वृद्धि की दर कम होती है. दूसरे इलाज में टाइप 2 डायबिटीज़ के लिए इस्तेमाल होनेवाली दवाई मेटफ़ॉर्मिन का इस्तेमाल किया जाता है. इससे शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ़ता है. पीसीओएस के लक्षणों से निपटने में मदद मिलती है. वहीं पीसीओएस का सामना कर रही महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में मदद के लिए क्लोमिफ़ेन दी जाती है. हालांकि इस दवा का सबसे बड़ा साइड इफ़ेक्ट यह है कि इससे जुड़वा या उससे भी ज़्यादा बच्चे होने की संभावना बढ़ जाती है.
दवाइयों से काम नहीं बनने पर सर्जरी की सलाह दी जाती है. पीसीओएस के लिए ओवरियन ड्रिलिंग नामक प्रोसिजर फ़ॉलो किया जाता है, जिसमें ओवरी में लेज़र की मदद से छोटे-छोटे होल बनाकर सिस्ट्स को नष्ट किया जाता है. इससे ओव्युलेशन के सामान्य होने में मदद मिलती है.
रही खानपान के माध्यम से पीसीओएस से राहत पाने की तो पम्पकिन सीड (कद्दू के बीज के) एक्सट्रैक्ट और सा पालमेटो (क्रकच ताल) एक्सट्रैक्ट को डायट में शामिल करने की सलाह दी जाती है. इससे 5 अल्फ़ा-रिडक्टेस एन्ज़ाइम को कम करने में मदद मिलती है. आमतौर पर डायट में बदलाव का नतीजा लगभग छह महीने बाद दिखना शुरू होता है.
जो भी हो, आपको पीसीओएस की समस्या का समाधान अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए. इंटरनेट या कहीं और से पढ़कर ख़ुद इलाज करना भारी पड़ सकता है.
इनपुट्स: आयुष नारंग, सेल्स और मार्केटिंग (इंटरनैशनल बिज़नेस) हेड, रॉवन बायोक्यूटिकल्स
कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लागू किए लॉकडाउन को क़रीब छह महीने हो गए हैं. व्यावसायिक गतिविधियों के ठप होने के चलते देश की अर्थव्यवस्था की तबीयत ख़राब हो गई है. ग्रोथ नेगेटिव में चला गया है. इतना ही नहीं कोविड-19 ने हमारी मानसिक सेहत को भी काफ़ी नुक़सान पहुंचाया है. हम सभी बात कर रहे हैं कैसे कोरोना के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान डिप्रेशन और घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं. पर इसके संक्रमण के डर से घर में क़ैद होने की क़ीमत हमारी हड्डियां भी चुका रही हैं. हमारी शारीरिक गतिविधियों में कमी आई है, इससे हड्डियों का क्षरण हो रहा है. यह तो हम बचपन से ही जानते हैं कि हड्डियों की सेहत के लिए सबसे ज़रूरी विटामिन डी की प्राकृतिक रूप से पूर्ति सूरज की रौशनी से होती है. इन दिनों हम बाहर निकल नहीं रहे हैं तो सूरज की रौशनी से मिलनेवाले विटामिन डी से भी वंचित हो गए हैं. यही कारण है कि आजकल लोग थोड़ी-सी भी शारीरिक गतिविधि से थकान का अनुभव करने लगते हैं.
जिस तरह हम कोरोना वायरस से अपने शरीर को बचाने के लिए जागरूक हैं, उसी तरह हमें अपनी हड्डियों की सेहत के लिए भी सजग होना चाहिए. आख़िरकार हड्डियों से न केवल हमारे शरीर को ढांचा तैयार होता है, बल्कि वे हमें सपोर्ट प्रदान करती हैं और उन्हीं की वजह से हम चल-फिर पाते हैं. तो हड्डियों की सेहत की ओर ध्यान देना आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए. वर्ना जैसे ही हम इस महामारी को हराकर बाहर निकलेंगे हड्डियों की परेशानी ख़ासकर बोन डेंसिटी की समस्या हमें घेर लेगी. विशेष रूप से 30 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं और पुरुषों को ऑस्टियोपोरोसिस होने का ख़तरा बढ़ गया है.
तो आइए जानें, हड्डियों को सेहतमंद बनाए रखने के लिए क्या किया जा सकता है.
Femina
सबसे पहले तो खानपान में कैल्शियम और विटामिन डी की अधिकतावाली चीज़ें शामिल करें
कैल्शियम के अच्छे स्रोत में शामिल हैं-लो फ़ैट डेयरी प्रॉडक्ट्स, हरी सब्ज़ियां और ड्राय फ्रूट्स. वहीं विटामिन डी प्रदान करनेवाली चीज़ें हैं-फ़ोर्टिफ़ाइड सीरियल्स, अंडे की ज़र्दी, खारे पानी की मछलियां और दूध. कैल्शियम और विटामिन डी का यवह साथ आपकी हड्डियों की सुरक्षा करता है. जहां कैल्शियम हड्डियों को मज़बूत बनाता है, वहीं विटामिन डी शरीर को ज़रूरी कैल्शियम एब्ज़ॉर्ब करने में मदद करता है.
जितना संभव हो सूरज की रौशनी का आनंद लें, ताकि पर्याप्त विटामिन डी मिल सके
नियमित रूप से सूरज की रौशनी का आनंद लेना विटामिन डी पाने का एक प्राकृतिक तरीक़ा है. सूरज की अल्ट्रावॉयलेट बी (यूवीबी) किरणें स्किन सेल्स में मौजूद कोलेस्टेरॉल को हिट करती हैं, इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है. इतना ही नहीं कैल्शियम के अवशोषण में भी विटामिन डी की काफ़ी अहम् भूमिका होती है.
शारीरिक गतिविधियों को दोबारा शुरू करें
मसल्स की तरह ही हड्डियां भी एक्सरसाइज़ करने से मज़बूत बनती हैं. सेहतमंद हड्डियों के बेस्ट एक्सरसाइज़ है स्ट्रेंथ-बिल्डिंग, वॉकिंग, सीढ़ियां चढ़ना, वेट लिफ़्टिंग और डांसिंग. रोज़ाना 30 मिनट इनमें से किसी एक गतिविधि में व्यतीत करें. इससे बोन सेल्स स्टिम्युलेट होते हैं और बोन मिनरल डेंसिटी बढ़ती है और ऑस्टियोपोरोसिस का ख़तरा कम होता है.
सेहतमंद जीवनशैली अपनाएं
धूम्रपान और बहुत ज़्यादा अल्कोहल का सेवन बोन लॉस और हड्डियों की कमज़ोरी के प्रमुख कारणों में हैं. इन अनहेल्दी गतिविधियों से हड्डियों तक पहुंचनेवाले रक्त की मात्रा में कमी आती है, जिससे हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी बोन-फ़ॉर्मिंग सेल्स का प्रोडक्शन धीमा हो जाता है और कैल्शियम का अवशोषण ठीक तरीक़े से नहीं हो पाता. इन आदतों से तौबा करके आप अपनी हड्डियों को मज़बूत कर सकते हैं.
हड्डियों को सेहतमंद बनाने में आयुर्वेद की भूमिका
आयुर्वेद में कई जड़ी-बूटियां हैं, जिनका इस्तेमाल हड्डियों को सेहतमंद बनाने के लिए होता आया है. हड़जोड़, सलाई गुग्गुल, अश्वगंधा, बाला जैसे हर्ब्स तो बोन सेल्स को बेहतर बनाने और बोन मिनरल डेंसिटी को बढ़ाने के लिए जांचे-परखे हुए हैं. वहीं अर्जुन, मेथी, लाख आदि में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम, फ़ॉस्फ़ोरस, विटामिन सी, म्यूकोपॉलिसैकेराइड्स, मिनरल्स और फ़ायटोएस्ट्रोजन मौजूद होते हैं, जो कि हड्डियों को सेहतमंद बनाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं.
इन आयुर्वेदिक औषधियों की सबसे अच्छी बात यह है कि ये किसी भी तरह के साइड
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