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इस पर्व को पौष मास में मनाने की विशेष मान्यता
इस पर्व को पौष मास में मनाने की विशेष मान्यता है। मकर संक्रांति में मकर शब्द को मकर राशि में इंगित करता है जबकि संक्राति का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
इस मौके पर मकर में सूर्य की वापसी और बड़े होते दिन की वापसी का जश्न मनाते हैं। यह इस बात का प्रतीक होता है कि सर्दियों का अंत आ चुका है और सूर्य फिर से अपनी पूरी ताकत से लौटने वाला है। सूर्य की रोशनी का मतलब है पृथ्वी पर जीवन, उर्वरता और समृद्धि। इसका आशय गर्मियों के आने और नई फसलों की बुआई से है।
इस पवित्र पर्व पर खिचड़ी का विशेष महत्त्व माना जाता है। सभी लोग अपने घर पर खिचड़ी बनाकर खाते है और गरीब लोगो में बांटते हैं। इस दिन कई जगहों पर खिचड़ी स्टॉल लगाए जाते है। प्रचलित कथा के अनुसार कहा जाता है कि खिलजी ने आक्रमण किया था तो नाथ योगियों को खाना पकाने का समय नही मिला तब बाबा गोरखनाथ ने चावल, दाल और कुछ सब्जियों को मिलाकर पकाने को कहा जो खाने में स्वादिष्ट और पौष्टिक थी। जिसे खाकर उन्हें ऊर्जा प्राप्त हुई। इस व्यंजन का नाम बाबा गोरखनाथ ने खिचड़ी रखा। खिलजी से मुक्त होकर नाथ योगियों ने मकर संक्राति के दिन खिचड़ी बनाकर उत्साह मनाया। जिसके पश्चात् मकर संक्राति के दिन खिचड़ी बनाने का प्रचलंन चल गया।
धार्मिक रुप से देखा जाए तो कहा जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के गए थे। उड़द की दाल को शनि से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि अगर इस दिन खिचड़ी का सेवन किया जाए तो सूर्य देव और शनि देव दोनों की कृपा होती है।
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