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हिंदू पंचाग के मुताबिक, 24 मार्च, शुक्रवार को गणगौर का
हिंदू पंचाग के मुताबिक, 24 मार्च, शुक्रवार को गणगौर का त्यौहार मनाया जाएगा। महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु एवं लड़कियां श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए गणगौर पूजा करेंगी। गण के रूप में भगवान महादेव और गौर के तौर पर माता पार्वती की पूजा की जाएगी। शाम को सूर्यास्त से पहले गणगौर को पानी पिलाने के पश्चात् जलाशयों, तालाब, कुओं में विसर्जित की जाएगी।
ईसर-गौर मतलब महादेव-पार्वती की पूजा का यह पावन पर्व आपसी स्नेह और साथ की कामना से जुड़ा हुआ है। इसे शिव एवं गौरी की आराधना का मंगल उत्सव भी कहा जाता है। गणगौर का मतलब है,'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव (ईसर) और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन मां पार्वती एवं भगवान महादेव की पूजा का दिन है। नवरात्रि के तीसरे दिन यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का त्योहार स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। शास्त्रों के मुताबिक, मां पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी तथा उसी तप के प्रताप से भगवान महादेव को पाया। इस दिन भगवान महादेव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। कहा जाता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरम्भ हुई।
ऐसा करें गणगौर पूजन:-
वसंत और फाल्गुन की रुत में श्रृंगारित धरती एवं माटी की गणगौर का पूजन प्रकृति और स्त्री के उस मेल को बताता है जो जीवन को सृजन और उत्सव की उमंगों से जोड़ती है। गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं एवं विवाहित महिलाऐं ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब एवं फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। तत्पश्चात, शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर एवं पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर चौकी पर स्थापित करती हैं। महादेव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन,अक्षत, धूप,दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। सौभाग्य की कामना लिए दीवार पर सोलह -सोलह बिंदियां रोली,मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं। एक बड़ी थाली में चांदी का छल्ला एवं सुपारी रखकर उसमें जल, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के रूप में इस जल को छिड़कती हैं। आखिर में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है।
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Apurva Srivastav
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