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क्या होता है इम्यून सिस्टम और कैसे रखें इसका ख़्याल

Kajal Dubey
16 July 2023 11:56 AM GMT
क्या होता है इम्यून सिस्टम और कैसे रखें इसका ख़्याल
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जिस तरह किसी स्मार्टफ़ोन में नेटवर्क जितना स्ट्रॉन्ग होता है, बातचीत उतनी ही अच्छी तरह होती है, उसी तरह हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम भी काम करता है. यह जितना मज़बूत होगा हम उतने अधिक स्वस्थ और फ़िट बने रहेंगे. लेकिन इम्यून सिस्टम क्या होता है, हम पहले इसके बारे में जान लेते हैं. इम्यून सिस्टम यानी हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कोई एक अंग या इकाई नहीं है, बल्कि यह कोशिकाओं, ऊतकों, और अंगों का एक नेटवर्क है, जो शरीर की रक्षा के लिए मिलकर काम करते हैं. यह नेटवर्क पैथोजेंस (रोगजनकों) और ट्यूमर सेल्स (अर्बुद कोशिकाओं) की पहचान करता है और फिर अपने नेटवर्क के सहयोगियों के साथ मिलकर उन्हें नष्ट कर शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है. इस नेटवर्क की ख़ासियत यह है कि यह जहां शरीर में घुसपैठ करनेवाले विषाणुओं से लेकर परजीवी कृमियों की पहचान करने में सक्षम होता है, वहीं यह शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों को भी पहचान सकता है, ताकि उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई न कर बैठे.
एक्स्पर्ट्स का कहना है कि हमारे शरीर के पांच कोष होते हैं-भोजन और वातावरण से तैयार होनेवाला अन्नमय कोष, श्वास से संरचित प्राणमय कोष, विचार-शब्द से तैयार मनोमय कोष, चेतना और बोध से लैस होनेवाला विज्ञानमय कोष और आनंद से छलकता आनंदमय कोष. इम्यून सिस्टम का नेटवर्क हमारे शरीर के इन पांचों कोषों को संभालने के लिए मोटे तौर पर चार स्तरों में व्याप्त होता है-भौतिक, मानसिक, भावनात्मक और चेतना का स्तर.
इम्यून सिस्टम का नेटवर्क
इम्यून सिस्टम के मुख्य घटकों में ल्यूकोसाइट्स यानी वाइट ब्लड सेल्स, बोन मैरो (अस्थिमज्जा) के कुछ कोष, लसिका ग्रंथियां (लिंफ़ोइड ऑर्गन और ऐंटीबॉडी जैसे घुलनशील अणु) और प्लीहा का समावेश होता है. ल्यूकोसाइट्स शरीर पर हमला करनेवाले बाहरी पैथोजेंस, बैक्टीरिया आदि को खा जाती हैं. लिंफ़ोइड अंगों में टी-लिंफ़ोसाइट और बी-लिंफ़ोसाइट कोशिकाएं अपना अड्डा जमाती हैं. अपना विकास करती हैं और ऐंटीजन से निपटने की ट्रेनिंग प्राप्त करती हैं. अस्थि मज्जा (बोन मैरो) मुख्य लिंफ़ोइड अंग है जहां लिंफ़ोसाइट, ख़ासकर बी-लिंफ़ोसाइट का विकास होता है. इसी तरह सेम के आकार के प्लीहा में भी पर्याप्त मात्रा में लिंफ़ोसाइट और लिंफ़ नोड्स पाए जाते हैं. इसी के चलते प्लीहा रोगजनकों को फंसाकर रक्त को फ़िल्टर करता है. मृत लाल रक्त कण प्लीहा में जाकर रक्त से अलग हो जाते हैं. इसलिए इसे लाल रक्त कणों का क़ब्रिस्तान भी कहते हैं.
इम्यून सिस्टम को मुख्यतया दो भागों में बांटा जा सकता है. पहला है इनैट यानी जन्मजात इम्यून क्षमता. यह किसी ऐंटीजन मसलन किसी तरह के संक्रमण या टीकाकरण के कारण नहीं विकसित होती है. बल्कि हमारे शरीर को अच्छे ढंग से चलाए रखने के लिए पहले से ही मौजूद होती है. दूसरा है एडॉप्टिव इम्यून सिस्टम यानी अनुकूल प्रतिरक्षा प्रणाली, जो हम जीवन में अपने रहन-सहन से हासिल करते हैं. जब हम किसी संक्रमण के शिकार होते हैं, या किसी पैथोजेंस (रोगजनक) के संपर्क में आते हैं, तो हमारा शरीर उसके ख़िलाफ़ लड़ने के लिए तैयार होता है. इस एडॉप्टिव इम्यून सिस्टम को हम अपने प्रयास से और अधिक मज़बूत बना सकते हैं.
इसके लिए हमें बस यह करना है कि जीवन में फ़िज़िकल ऐक्टिविटी के लिए भी थोड़ा समय निकालना है. अब मान लीजिए कि आप रोज़ाना कसरत करते हैं, तो आपका शरीर धीरे-धीरे मज़बूत होता जाएगा, लेकिन आप आराम के आदी हैं, तो शरीर को ज़्यादा मज़बूत बने रहने की ज़रूरत नहीं महसूस होगी और वह और अधिक आराम का आदी होता चला जाएगा. इसलिए इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाने का पहला क़दम है शरीर का पर्याप्त संतुलित इस्तेमाल करें.-
गड़बड़ी के मिलते हैं सिग्नल
हमारे पर्यावरण में कई तरह के पैथोजेंस पाए जाते हैं, जो भोजन-पानी या सांस से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. अगर इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है, तो ये पैथोजेंस परास्त हो जाते हैं, लेकिन इम्यून सिस्टम कमज़ोर होने की स्थिति में व्यक्ति बीमार पड़ जाता है. इम्यून सिस्टम शरीर के पांचों कोषों में व्याप्त है, इसलिए किसी एक कोष में गड़बड़ी के लक्षण उभरते ही अन्य कोषों से इसके संकेत मिलने लगते हैं. उदाहरण के लिए यदि आपका इम्यून सिस्टम कमज़ोर है तो आप दूसरों की अपेक्षा बार-बार बीमार होते हैं, ज़ुकाम की शिकायत रहती है, खांसी, गला ख़राब होना, मसूड़ों में सूजन, मुंह में छाले या स्किन रैशेज़ जैसी समस्या उभरती है. ऐसे समय में ब्लड टेस्ट करवाकर आप पता कर सकते हैं कि कहीं आपका इम्यून सिस्टम कमज़ोर तो नहीं पड़ रहा है.
कई बार इम्यून सिस्टम कमज़ोर पड़ने के बजाय निष्क्रिय हो जाता है. मौसम ने ज़रा-सी करवट नहीं ली कि कुछ लोग बीमार हो जाते हैं. इनमें अधिकांश ऐसे लोग होते हैं, जो अधिकांश समय घर या दफ़्तर में वातानुकूलित कमरों में समय बिताते हैं. इनका शरीर एक जैसे तापमान में रहने का अभ्यस्त हो जाता है और खुले वातावरण में जाने पर भी शरीर तापमान एड्जस्ट करने की कोशिश कम करता है यानी इम्यून सिस्टम न्यूट्रल मोड में आ जाता है. मज़बूत इम्यून सिस्टम के लिए हमारे शरीर का सामान्य तापमान 36.3 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं होना चाहिए, क्योंकि सर्दी के वायरस 33 डिग्री पर सर्वाइव करते हैं.
कुछ लोगों का इम्यून सिस्टम कई बार जेनेटिक कारणों से भी कमज़ोर हो सकता है. जर्नल ट्रेंड्स इन इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित हालिया अध्ययन रिपोर्ट में भी इसकी पुष्टि की गई है. बेल्जियम के ट्रांसलेशनल इम्यूनोलॉजी लैब के शोधकर्ता एड्रियान लिस्टन की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक़, हमारे इम्यून सिस्टम पर हमारी जीवनशैली, भोजन, नींद लेने के तरीक़े, पर्यावरण और फ़ैमिली हिस्ट्री का संयुक्त रूप से प्रभाव पड़ता है. लिस्टन ने कहा है कि पर्यावरण के प्रति हमारे जीन की प्रतिक्रिया से कभी-कभार हमारा इम्यून सिस्टम डगमगा जाता है. कई बार लंबे समय तक किसी वायरस या बैक्टीरिया के संक्रमण के चलते भी हमारा इम्यून सिस्टम उसके प्रति निष्क्रिय हो जाता है. ऐसी स्थिति में इम्यून सिस्टम हमें सचेत करना बंद कर देता है. कई बार कुछ ऐसे लोग मिलते हैं, जिन्हें किसी तरह के संक्रमण की चपेट में आने पर भी सालों-साल बुख़ार नहीं होता है. यह कमज़ोर इम्यूनिटी का लक्षण है.
कैसे रखें इम्यून सिस्टम को दुरुस्त?
शरीर सफ़ा, तो रोग दफ़ा
मज़बूत इम्यून सिस्टम के लिए स्वच्छ वातावरण ज़रूरी होता है, क्योंकि गंदगी के कारण संक्रमण की चपेट में आने का ख़तरा बढ़ जाता है. दिनभर गंदगी या कीटाणु के संपर्क में रहने के कारण किसी ऐंटीबैक्टीरियल लोशन से अच्छी तरह हाथ धोएं. फल और सब्ज़ियों को खाने और पकाने से पहले अच्छी तरह से धो लें. खाना बनाने और खाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह साफ़ करें. रोज़ाना स्नान करें. शरीर को यथासंभव स्वच्छ रखें. ऐसा करने से जहां संक्रमण से बचाव होगा वहीं मन प्रसन्न रहेगा और यह ताज़गी आपके इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का काम करेगी.
शरीर का इस्तेमाल करें
जिस तरह लोहे की चीज़ का इस्तेमाल न करने से उसमें जंग लग जाता है, उसी तरह शरीर का इस्तेमाल न करने से इम्यून सिस्टम सुस्त पड़ने लगता है. इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाने के लिए रोज़ाना एक्सरसाइज़ करें. लिफ़्ट के बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करें. थोड़ी दूर जाने के लिए ऑटो-टैक्सी लेने के बजाय पैदल चलें. ऐसा करने से आपके शरीर में रक्त का प्रवाह तेज़ होता है. पाचन क्रिया में तेज़ी आती है. आप यदि डेस्क जॉब कर रहे हों, तो भी समय निकालकर बीच-बीच में थोड़ा टहल लें. ऐसा करने से शरीर में लचीलापन बना रहता है. मुंबई पुलिस व बीएसएफ़ को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देनेवाले संतोष सिंह का कहना है,“10 से 18 साल तक के लोगों को रोज़ाना एक घंटा एक्सरसाइज़ करना चाहिए. 18 साल से 60-65 साल की उम्र तक के लोगों को सप्ताह में कम से कम 150 मिनट की एरोबिक एक्सरसाइज़ और दो दिन वेट एक्सरसाइज़ या मसल टोनिंग एक्सरसाइज़ करना चाहिए.”
तनाव को पास न आने दें
इम्यून सिस्टम हमारे मानसिक और भावनात्मक गतिविधियों से भी जुड़ा मामला है. जब हम स्ट्रेस में होते हैं, तो हमारा इम्यून सिस्टम कमज़ोर होने लगता है. स्ट्रेस की स्थिति में कोर्टिसोल हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, जो हमें बीमार बनाने की साजिश करता है. स्ट्रेस को दूर करने के लिए प्रतिदिन योग, प्राणायाम करें. मेडिटेशन, डांसिंग और सेक्स जैसे ख़ुशी देनेवाली गतिविधियां करें.
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