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क्या है IVF और क्यों पड़ती हैं इसकी जरूरत, जानें इससे जुड़े कुछ जरूरी नियम

Bhumika Sahu
17 March 2022 7:03 AM GMT
क्या है IVF और क्यों पड़ती हैं इसकी जरूरत, जानें इससे जुड़े कुछ जरूरी नियम
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उन कपल्स के लिए आईवीएफ ट्रीटमेंट किसी वरदान से कम नहीं है, जो किसी कारणवश माता-पिता बनने का सुख नहीं ले पाते। इस ट्रीटमेंट में जो महिलाएं नेचुरल तरीके से कंसीव नहीं कर पाती हैं, वो आईवीएफ (IVF) ट्रीटमेंट की मदद से मां बन सकती हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उन कपल्स के लिए आईवीएफ ट्रीटमेंट किसी वरदान से कम नहीं है, जो किसी कारणवश माता-पिता बनने का सुख नहीं ले पाते। इस ट्रीटमेंट में जो महिलाएं नेचुरल तरीके से कंसीव नहीं कर पाती हैं, वो आईवीएफ (IVF) ट्रीटमेंट की मदद से मां बन सकती हैं। आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक रिप्रोडक्टिव टेक्‍नोलोजी है। इस प्रक्रिया में महिला की ओवरी से एग लेकर उसे स्‍पर्म के साथ फर्टिलाइज किया जाता है।अगर फैलोपियन ट्यूब ब्‍लॉक या डैमेज हो, पुरुष में स्‍पर्म काउंट कम हो, महिला ओवुलेशन विकार, प्रीमैच्‍योर ओवेरियन फेलियर, गर्भाशय में रसौली, जिन महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब निकाल दी गई हो, अनुवांशिक विकार से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को आईवीएफ की जरूरत पड़ती है।

क्या है आईवीएफ-
आईवीएफ गर्भधारण की कृत्रिम प्रक्रिया है। इसके माध्यम से पैदा हुए बच्चे को टेस्ट ट्यूब बेबी कहते हैं। यह तकनीक उन महिलाओं के लिए वरदान है जो किन्ही कारणों से मां नहीं बन पातीं।
क्यों पड़ती है जरूरत-
पटना के डॉ. दयानिधि और डॉ. हिमांशु बताते हैं अधिक उम्र में शादी, तनाव, प्रदूषण, बीमारी आदि से मां बनने में परेशानी दिक्कत आती है। 23 से 28 की उम्र महिलाओं के लिए मां बनने के लिए उपयुक्त होती है। 28 से 35 तक की आयु में इस क्षमता में 25 से 30 प्रतिशत तक कमी आ जाती है। 35 से 40 की आयु होने पर इस क्षमता में 50 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। ऐसे में दपंति आईवीएफ का सहारा लेते हैं।
डोनर की होती है जांच-
सीमेन (स्पर्म) लेने से पहले एआरटी केंद्रों-सीमेन बैंकों में डोनर के स्वास्थ्य की जांच होती है। डायबिटीज, हेपेटाइटिस समेत अन्य आनुवांशिक बीमारियों की जांच की जाती है। इसके बाद ही स्पर्म लिया जाता है। जांच सीमेन बैंक के डॉक्टर अपने खर्चे पर कराते हैं और इसका शुल्क संतान की चाह रखने वाले दंपतियों से वसूला जाता है।
कुछ जरूरी नियम-
-2016 में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बिल पारित हुआ था, जिसमें थर्ड पार्टी रिप्रोडक्शन को लेकर कई नियम बनाए गए थे।
-केवल 21 से 35 वर्ष आयु तक के पुरुष या महिला अपने शुक्राणु-अंडाणु दान कर सकते हैं।
-पंजीकृत स्पर्म बैंक में ही शुक्राणु-अंडाणु दान कर सकते हैं।
दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी-
दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस ब्राउन का जन्म साल 25 जुलाई 1978 में हुआ था। एक दावे के मुताबिक, दुनिया का दूसरे टेस्ट ट्यूब बेबी ने लुइस ब्राउन के 67 दिन बाद भारत में जन्म लिया था।
देश की पहली टेस्ट टॺूब बेबी-
हर्षा चावडा देश की पहली आईवीएफ बेबी थीं। हालांकि एक दावे के मुताबिक, दुनिया की दूसरी आवीएफ बेबी कनुप्रिया अग्रवाल थीं, जो लुईस के पैदा होने के 67 दिनों बाद दुनिया में आई थीं।
एक लाख रुपए तक कमा लेते हैं डोनर-
पटना में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र सीमेन बैंकों के बड़े स्रोत हैं। कुछ बेरोजगार प्रोफेशनल्स भी पैसे के लिए डोनर बन रहे हैं। इसके एवज में उन्हें एक हजार मिलते हैं। वहीं, गुरुग्राम में चिकित्सकों ने बताया कि अंडाणु और शुक्राणु दान करने वाले महिला और पुरुष डोनर तीन महीने में 25 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक कमा लेते हैं। उनके द्वारा पैसों की मांग दंपत्तियों की चाह पर भी निर्भर करती है।
कितना बड़ा बाजार-
देश में करीब तीन करोड़ दंपति बांझपन से पीड़ित हैं। भारतीय आईवीएफ उद्योग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्षमता वाला बाजार है, जो साल दर साल 20 रफ्तार से बढ़ रहा है।


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