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मैदानी इलाकों से आ रहे श्रद्धालु पहाड़ों की यात्रा के अभ्यस्त नहीं होते हैं, ऐसे में उन्हें कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनमें हाइपोथर्मिया (अधिक ठंड में शरीर के तापमान में तेजी से गिरावट) और हाई एल्टीट्यूड (ऊंचे पर्वतीय स्थान) के कारण होने वाली समस्याएं सामने आती हैं। हृदयरोगियों के लिए यह यात्रा कहीं अधिक जोखिम भरी होती है।
अधिक ऊंचाई से होने वाली दिक्कतें
ऊंचाई वाले इलाकों में यात्रा के दौरान फेफड़े और मस्तिष्क संबंधी परेशानियां अधिक होती हैं। सबसे आम सिंड्रोम एक्यूट माउंटेन सिकनेस है, जो आमतौर पर चढ़ाई के कुछ घंटों के भीतर शुरू होता है। इसमें सिरदर्द के साथ भूख नहीं लगना, मिचली, उल्टी, नींद में खलल, थकान और चक्कर आना प्रमुख लक्षण हैं। अधिक ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम होने से हाइपोक्सिया हो सकता है। पहाड़ों पर कम तापमान में नदी के ठंडे पानी में स्नान करने से बचना चाहिए। इससे हाइपोथर्मिया हो सकता है, जिससे कंपकंपी, धीमी आवाज, धीमी सांस और भ्रम की स्थिति हो सकती है। हाइपोथर्मिया से दिल का दौरा पड़ने, श्वसन प्रणाली की विफलता, यहां तक कि मृत्यु का भी खतरा हो सकता है।
हाइपोथर्मिया में क्या करें
गर्दन, छाती या कमर पर गर्म और सूखी सिकाई करें। गर्म पानी या शरीर पर गर्म पानी की थैली न रखें।
व्यक्ति को हवा से बचाएं, खासकर गर्दन और सिर के आसपास।
गर्म कपड़े पहनाएं। कंबल ओढ़ाएं।
अगर गर्म पानी की बोतल या किसी केमिकल वाले गर्म पैक का इस्तेमाल करते हैं, तो इसे पहले एक तौलिये में लपेट लें। व्यक्ति को गर्म व मीठा पेय पीने को दें।
शरीर को हीटिंग लैंप या गर्म पानी से नहाकर गर्म न करें। हाथ और पैर को भी गर्म करने का प्रयास न करें। क्योंकि इस स्थिति में किसी के अंगों को गर्म करने या मालिश करने से हृदय और फेफड़ों पर दबाव पड़ सकता है।
यात्रा के दौरान सावधानियां
हाइड्रेशन (पानी का भरपूर सेवन), पर्याप्त पोषण, ऊनी कपड़े और कपड़ों की कई परतें, धीमी चढ़ाई और भरपूर आराम से हाइपोथर्मिया से बचे रह सकते हैं।
अधिक ऊंचाई पर दिन की यात्रा करने पर विचार करें और फिर सोने के लिए कम ऊंचाई पर लौटें।
एसिटाजोलमाइड का उपयोग बचाव और अधिक ऊंचाई की बीमारी के दौरान उपचार दोनों के लिए किया जाता है।
इसके अलावा एस्पिरीन, पैरासिटामॉल, इबुप्रोफेन भी उपयोगी दवाएं हैं। हालांकि, डॉक्टर की सलाह के बाद ही इनका इस्तेमाल करना चाहिए।
महिला, बुजुर्ग, बच्चे और पहले से बीमार व्यक्तियों में हाइपोथर्मिया, हाइपोक्सिया और उच्च ऊंचाई की बीमारी होने का अधिक जोखिम रहता है। बुजुर्ग, बीमार या जो कोविड संक्रमित हो चुके हैं, संभव हो तो अपनी यात्रा स्थगित कर दें।
यात्रा शुरू करने से पहले हर उम्र के लोग अपनी स्वास्थ्य जांच अवश्य कराएं।
खानपान का रखें विशेष ध्यान
पहाड़ों पर अधिक ऊर्जा खपत के चलते अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। इस दशा में उच्च प्रोटीन और पर्याप्त वसा वाले कार्बोहाइड्रेट से भरपूर आहार लें।
प्रतिदिन तीन से चार लीटर पानी, नारियल पानी और फलों का रस पिएं।
सूखे मेवे सेहत के लिए उपयोगी हैं।
थकान से बचने के लिए छह सप्ताह पहले आयरन युक्त आहार का सेवन बढ़ा सकते हैं।
खाली पेट यात्रा ना करें।
क्यों होती है शरीर में पानी की कमी
शुष्क हवा और तेजी से सांस लेने से पहाड़ी स्थानों पर शरीर में पानी की कमी हो जाती है। शुष्क मुंह, होठ व नाक, सिर दर्द, थकान व सुस्ती, गहरी-तेज सांस, कमजोर नाड़ी, चक्कर आना, तापमान में गिरावट, कम रक्तचाप और मांसपेशियों में ऐंठन शरीर में पानी की अधिक कमी के लक्षण हैं। पानी का सेवन बढ़ाने के साथ-साथ फल और सब्जियां खाकर भी डिहाइड्रेशन को रोक सकते हैं।
हृदय रोगी क्या करें
कोरोनरी धमनी रोग के ज्ञात मामले वाले लोगों को ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाने से बचना चाहिए।
हृदय रोगियों को 4,500 मीटर से अधिक ऊंचाई की यात्रा से बचना चाहिए।
दिल की बीमारी वाले यात्रा से पहले डॉक्टर से अवश्य परामर्श करें, आवश्यक दवाएं जरूर साथ ले जाएं।
अस्थमा, सांस या फेफड़े के रोगी
अस्थमा के रोगी ज्यादा ऊंचाई की यात्रा कर सकते हैं, लेकिन आश्वस्त हो लें कि अस्थमा नियंत्रण में है।
ऊनी कपड़ा, ऊनी दुपट्टा और फेस मास्क पहनें।
गर्म पेय से हाइड्रेटेड रहें।
अस्थमा की दवा हमेशा अपने पास रखें।
ऑक्सीजन लेवल 90 या इससे नीचे आने पर
अगर ऑक्सीजन का स्तर 90 या इससे नीचे आ जाता है, तो सांस लेने में परेशानी, अत्यधिक थकान व कमजोरी, मानसिक भ्रम, सिर दर्द जैसे लक्षण हो सकते हैं।
व्यक्ति को हवादार कमरे में रखकर और ऑक्सीजन देकर प्राथमिक देखभाल दी जा सकती है।
हालत में सुधार न होने पर नजदीकी चिकित्सा सुविधा की मदद लें।
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Apurva Srivastav
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