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
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नेचुरोपैथी ऐसी चिकित्सा चिकित्सा पद्धति है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर शरीर के तीनों दोषो-वात, पित्त और कफ से होने वाली विभिन्न बीमारियों का इलाज किया जाता है। शरीर में कफ बढ़ने होने वाली बीमारियों में अस्थमा भी एक है। अस्थमा फेफड़ों की एक क्रॉनिक डिजीज है जिसमें मरीज के फेफड़ों या लंग्स तक ऑक्सीजन पहुंचाने वाली श्वसन मार्ग और आसपास धमनियों में सूजन आ जाती है। जिससे वे सिकुड़ जाती हैं और सांस लेने में दिक्कत होती है। ऑक्सीजन की सप्लाई ठीक से न हो पाने के कारण कई तरह की समस्याएं होनी शुरू हो जाती हैं। धीरे-धीरे म्यूकस या बलगम बननी शुरू हो जाती है जिससे श्वसन मार्ग और अवरुद्ध हो जाता है और अस्थमा अटैक का भी खतरा रहता है।
अस्थमा के इलाज के लिए नेचुरोपैथी में सबसे पहले यह कोशिश की जाती है कि अस्थमा के मरीज ज्यादा से ज्यादा नेचर या प्राकृतिक वातावरण के करीब हो। मरीज ऐसी जगह रहे जहां हवा शुद्ध और खुली हो। इसके लिए उन्हें सुबह-शाम कम से कम आधा घंटा पार्क में सैर करने के लिए कहा जाता है ताकि मरीज खुली हवा में सांस ले सके। इसके अलावा अस्थमा के उपचार के लिए कई तरह की थेरेपी और घरेलू उपाय भी सुझाए जाते हैं जिनसे अस्थमा पीड़ित रोगी को आराम मिल सके।
स्टीम थेरेपी
अस्थमा के मरीज को 5-15 मिनट के लिए स्टीम थेरेपी दी जाती है। इस थेरेपी से मरीज के श्वसन मार्ग में जमा हुआ कफ निकल जाता है। श्वसन मार्ग खुल जाने से मरीज को सांस लेने में आसानी होती है। स्टीम दो तरह से दी जाती है- इंटरनल स्टीम थेरेपी और फुल बॉडी स्टीम थेेरेपी।
इंटरनल स्टीम थेरेपी
स्टीमर, बॉयलर या पतीले में पानी गर्म करके मरीज को स्टीम दी जाती है। इनमें पानी डाल कर गर्म किया जाता है और पानी में युकलिप्टिस या अजवायन के पत्ते या युकलिप्टिस ऑयल की 4-5 बूंदे डाली जाती हैं। मरीज सिर पर तौलिया या चादर लपेटकर मुंह और नाक से स्टीम इन्हेल करतेे हैं। स्टीम लेने से पहले मरीज को एक गिलास पानी पिलाया जाता है ताकि उसे घबराहट न हो।
फुल बॉडी स्टीम थेरेपी
अस्थमा के मरीज को फुल बॉडी स्टीम थेरेपी भी दी जाती है। मरीज को स्टीम चैम्बर में सारे कपड़े उतरवाकर बिठाया जाता है। पूरे चैम्बर में स्टीम भर जाती है। मरीज को मुंह और नाक से लंबी गहरी सांस लेने के लिए कहा जाता है। चैम्बर न हो तो मरीज नीचे चटाई पर स्टीमर के आगे बिठाया जाता है। कम्बल से ढक दिया जाता है। स्टीम पूरे कम्बल मे फैलकर उसकी स्किन से अंदर जाती है। उसे मुंह से गहरी सांस लेने के लिए कहा जाता है।
गीली चादर थेरेपी
इसमें कॉटन की दो चद्दरें लेते हैं। उनमें से एक को गीला कर लेते हैं। कंबल फर्श पर बिछाकर उसके ऊपर सूखी चादर, फिर गीली चादर बिछाई जाती है। मरीज को उस पर लिटाया जाता है। मरीज के ऊपर गीली चादर, फिर सूखी चादर और कंबल फोल्ड कर लपेट देते हैं। इसके बाद रस्सी या नाड़े से बांध कर एंयर टाइट कर देते है। कंबल की गर्मी से गीली चादर भी गर्म हो जाती है। इससे फेफड़ों की सिंकाई होने लगती है और फेफड़ों में जमा कफ धीरे-धीरे निकल जाता है।
हार्ड फुट बाथ थेरेपी
जिन्हें पैरों में ठंड लगती है या जलन रहती है, या सूजन रहती है-उन्हें हार्ड फुट बाथ देते हैं। मरीज को स्टूल पर बिठा कर टब में गुनगुना पानी दिया जाता है जिसमें वो पैर डिप कर बैठता है। सिर पर गीला तौलिया रखते हैं ताकि कोई साइड इफेक्ट न हो। वार्म वॉटर मैगनेट की तरह ब्लड को खींचता है, ब्लड सर्कुलेशन ठीक करेगा और पैरों की परेशानी कम करेगा।
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Apurva Srivastav
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