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आज चंद्रशेखर आजाद का बलिदान दिवस है,आइए जानते है इनके बारें में

Kajal Dubey
27 Feb 2022 4:57 AM GMT
आज चंद्रशेखर आजाद का बलिदान दिवस है,आइए जानते है इनके बारें में
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भारत के स्वतंत्रता संग्राम में चंद्रशेखर आजाद एक बहुत ही सम्मानीय नाम है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत (India) के स्वतंत्रता संग्राम में चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) एक बहुत ही सम्मानीय नाम है. ऊपरी तौर पर आजाद के नाम कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है, लेकिन 1920 के दशक में चंद्रशेखर आजाद को हर क्रांतिकारी (Revolutionaries) के अलावा आजादी की लड़ाई लड़ने वाले भी पसंद किया करते थे. चाहे क्रांतिकारियों का प्रशिक्षण हो या फिर आजादी की लड़ाई के लिए धन की व्यवस्था करना हो, आजाद सब में माहिर थे.

एक शख्स जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian Freedom Movement) में काकोरी घटना में राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, जैसे क्रांतिकारियों का साथी था. उसने सांडर्स हत्याकांड में भगत सिंह का साथ दिया था. वह कभी अग्रेजों के हाथ नहीं आया और वह पहला क्रांतिकारी भी नहीं था जिसने अंग्रेजों के हाथ में आने की जगह खुद को गोली मारना पसंद किया था. लेकिन फिर भी हम चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) को एक महान क्रांतिकारी मानते हैं. आखिर चंद्रशेखर आजाद में ऐसा क्या था जो हमें ज्यादा आकर्षित करता है. वे इतने लोकप्रिय क्रांतिकारी क्यों थे. 27 फरवरी को उनकी पुण्यतिथि (Chandrashekhar Azad Death Anniversary) पर हम यही जानने का प्रयास करेंगे.
एक शख्स जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian Freedom Movement) में काकोरी घटना में राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, जैसे क्रांतिकारियों का साथी था. उसने सांडर्स हत्याकांड में भगत सिंह का साथ दिया था. वह कभी अग्रेजों के हाथ नहीं आया और वह पहला क्रांतिकारी भी नहीं था जिसने अंग्रेजों के हाथ में आने की जगह खुद को गोली मारना पसंद किया था. लेकिन फिर भी हम चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) को एक महान क्रांतिकारी मानते हैं. आखिर चंद्रशेखर आजाद में ऐसा क्या था जो हमें ज्यादा आकर्षित करता है. वे इतने लोकप्रिय क्रांतिकारी क्यों थे. 27 फरवरी को उनकी पुण्यतिथि (Chandrashekhar Azad Death Anniversary) पर हम यही जानने का प्रयास करेंगे.
चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई 1906 को आज के मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में हुआ था. बचपन में आदिवासियों के बीच रह कर आजाद ने धनुषबाण चलना सीखा और निशानेबाजी में निपुण हो गए. गांधी जी (Mahatma Gandhi) प्रभावित होकर आजाद उनके असहयोग आंदोलन (Non cooperation Movement) में कूद गए और15 साल की उम्र में ही गिरफ्तार होकर जज को दिए गए जवाबों ने उन्हें लोकप्रिय कर दिया.
चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई 1906 को आज के मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में हुआ था. बचपन में आदिवासियों के बीच रह कर आजाद ने धनुषबाण चलना सीखा और निशानेबाजी में निपुण हो गए. गांधी जी (Mahatma Gandhi) प्रभावित होकर आजाद उनके असहयोग आंदोलन (Non cooperation Movement) में कूद गए और15 साल की उम्र में ही गिरफ्तार होकर जज को दिए गए जवाबों ने उन्हें लोकप्रिय कर दिया.
गिरफ्तारी के बाद जब किशोर चंद्रशेखर को (Chandra Shekhar Azad) अदलात में पेश किया गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता, घर का पता जेल बताया. इससे नाराज होकर जज ने उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी. हर कोड़े पर वे वंदे मातरम और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की जय, भारत माता की जय के नारे लगाते रहे. इस घटनाका जिक्र खुद जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nahru) ने किया है. इसी के बाद से ही उनका नाम के साथ आजाद जुड़ गया.
गिरफ्तारी के बाद जब किशोर चंद्रशेखर को (Chandra Shekhar Azad) अदलात में पेश किया गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता, घर का पता जेल बताया. इससे नाराज होकर जज ने उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी. हर कोड़े पर वे वंदे मातरम और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की जय, भारत माता की जय के नारे लगाते रहे. इस घटनाका जिक्र खुद जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nahru) ने किया है. इसी के बाद से ही उनका नाम के साथ आजाद जुड़ गया.
जल्दी ही आजाद क्रांतिकारियों के सहयोगी होकर हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन में शामिल हो गए है. बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद (Chandra Shekhar Azad) एक साहसी, आक्रामक अंदाज वाले, चतुर, जांबाज क्रांतिकारी साबित हुए. आजाद ने कुछ समय के लिए झांसी को भी अपना गढ़ बनाया था जहां वे ओरछा के पास जंगल में अपने साथियों को निशानीबाजी का प्रशिक्षण देते थे. और इस दौरान वे पंडितहरिशंकर ब्रह्मचारी के छद्म नाम से शिक्षण भी किया करते थे.
जल्दी ही आजाद क्रांतिकारियों के सहयोगी होकर हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन में शामिल हो गए है. बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद (Chandra Shekhar Azad) एक साहसी, आक्रामक अंदाज वाले, चतुर, जांबाज क्रांतिकारी साबित हुए. आजाद ने कुछ समय के लिए झांसी को भी अपना गढ़ बनाया था जहां वे ओरछा के पास जंगल में अपने साथियों को निशानीबाजी का प्रशिक्षण देते थे. और इस दौरान वे पंडितहरिशंकर ब्रह्मचारी के छद्म नाम से शिक्षण भी किया करते थे.
क्रांतिकारियों (Revolutionaries) के लक्ष्यों को हासिल करने के करने के लिए बहुत से धन की जरूरत पड़ी तो बिस्मिल ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 9 अगस्त 1925 को काकोरी में चलती ट्रेन को रोककर ब्रिटिश खजाना लूटने की योजना बनाई. काकोरी स्टेशन (Kakori) पर हुई लूट से ब्रिटिश हुकूमत हिल गई आजाद (Chandra Shekhar Azad) और उनके साथियों के पीछे पड़ गई कोकोरी कांड के सभी आरोपी एक एक करके गिरफ्तार होते रहे लेकिन आजाद हर बार पुलिस को चकमा देने में पूरी तरह से सफल होते रहे.
क्रांतिकारियों (Revolutionaries) के लक्ष्यों को हासिल करने के करने के लिए बहुत से धन की जरूरत पड़ी तो बिस्मिल ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 9 अगस्त 1925 को काकोरी में चलती ट्रेन को रोककर ब्रिटिश खजाना लूटने की योजना बनाई. काकोरी स्टेशन (Kakori) पर हुई लूट से ब्रिटिश हुकूमत हिल गई आजाद (Chandra Shekhar Azad) और उनके साथियों के पीछे पड़ गई कोकोरी कांड के सभी आरोपी एक एक करके गिरफ्तार होते रहे लेकिन आजाद हर बार पुलिस को चकमा देने में पूरी तरह से सफल होते रहे.
आजाद (Chandra Shekhar Azad) एक कुशल निशानेबाज होने के साथ साथ बेहतरीन योजनाकार और कुशल संगठनकर्ता भी थी. वे आजादी (Freedom Fighters) के लिए लड़ने वालों के साथ संपर्क बनाने में भी नहीं चूकते थे. गांधी जी और लाला लाजपत राय से तो आजाद प्रभावित थे ही, लेकिन उनके के प्रशंसकों में पण्डित मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru), पुरुषोत्तमदास टंडन जैसे बड़े नाम भी शामिल थे. मोतीलाल नेहरू के वे विशेष प्रिय थे और आजाद को वे क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए चंदा भी देते थे. इसी तरह बुंदेलखंड के केसरी दीवान शत्रुघ्न सिंह ने भी आजाद की खूब मदद की थी.
आजाद (Chandra Shekhar Azad) एक कुशल निशानेबाज होने के साथ साथ बेहतरीन योजनाकार और कुशल संगठनकर्ता भी थी. वे आजादी (Freedom Fighters) के लिए लड़ने वालों के साथ संपर्क बनाने में भी नहीं चूकते थे. गांधी जी और लाला लाजपत राय से तो आजाद प्रभावित थे ही, लेकिन उनके के प्रशंसकों में पण्डित मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru), पुरुषोत्तमदास टंडन जैसे बड़े नाम भी शामिल थे. मोतीलाल नेहरू के वे विशेष प्रिय थे और आजाद को वे क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए चंदा भी देते थे. इसी तरह बुंदेलखंड के केसरी दीवान शत्रुघ्न सिंह ने भी आजाद की खूब मदद की थी.
आजाद (Chandra Shekhar Azad) का व्यक्तित्व उनके नाम के मुताबिक हमेशा ही आजाद ही रहा उनकी सोच भी काफी आजाद थी, वे अपने सिद्धांतों पर अडिग और समर्पित रहे उन्होंने संकल्प लिया था कि वे कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे और उन्हें फांसी लगाने का मौका अंग्रेजों को कभी नहीं मिल सकेगा. अपने इस वचन को भी आजाद ने पूरी तरह से निभाया. 27 फरवरी 1931 में मुठभेड़ के दौरान आजाद ने अंग्रेजों के हाथों पड़ने देने के बजाय खुद को गोली मारने का विकल्प चुना अंग्रेजों ने चुपचाप अंतिम संस्कार भी कर दिया था, लेकिन उनकी अस्थि यात्रा में भारी संख्या में उनके चाहने वाले शामिल हुए थे.
आजाद (Chandra Shekhar Azad) का व्यक्तित्व उनके नाम के मुताबिक हमेशा ही आजाद ही रहा उनकी सोच भी काफी आजाद थी, वे अपने सिद्धांतों पर अडिग और समर्पित रहे उन्होंने संकल्प लिया था कि वे कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे और उन्हें फांसी लगाने का मौका अंग्रेजों को कभी नहीं मिल सकेगा. अपने इस वचन को भी आजाद ने पूरी तरह से निभाया. 27 फरवरी 1931 में मुठभेड़ के दौरान आजाद ने अंग्रेजों के हाथों पड़ने देने के बजाय खुद को गोली मारने का विकल्प चुना अंग्रेजों ने चुपचाप अंतिम संस्कार भी कर दिया था, लेकिन उनकी अस्थि यात्रा में भारी संख्या में उनके चाहने वाले शामिल हुए थे.


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