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भारत : भारत में एक ऐसा मंदिर मौजूद है जो सिर्फ रक्षांबधन के दिन ही खुलता है. ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और राखी के दिन यहां अलग ही रौनक देखने को मिलती है. चलिए आपको बताते हैं देश के किस हिस्से में मौजूद है ये मंदिर सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है ये मंदिर, यहां तक का सफर बहुत मुश्किल सिर्फ राखी के दिन ही खुलता है ये मंदिर, यहां तक का सफर बहुत मुश्किल भारत में हर त्योहार का अपना एक अलग महत्व है. होली, दीवाली, राखी, ईद हो या क्रिसमस देश में हर त्योहार की धूम रहती है. कुछ दिनों में रक्षाबंधन का फेस्टिवल आने वाला है. बाजारों में रौनक, खरीदारी और घरों की सफाई बताती है कि लोग इसके जश्न की तैयारियों में जुट गए हैं. वैसे त्योहारों से धार्मिक स्थलों का भी कनेक्शन है. भारत में मंदिर कई हैं पर कुछ ऐसे हैं जिनसे अलग ही कहानी या धारणा जुड़ी हुई है. एक ऐसा मंदिर है जिसका रक्षाबंधन से कनेक्शन है. ये मंदिर सिर्फ राखी वाले दिन खुलता है. चलिए आपको बताते हैं ये मंदिर कहां मौजूद है और यहां कैसे पहुंचा जा सकता है. कहां मौजूद है ये मंदिर दरअसल, हम बात कर रहे हैं वंशीनारायण मंदिर की जो उत्तराखंड के चमोली जिले में मौजूद है.
यहां जाने के लिए चमोली में उर्गम घाटी का रुख करना पड़ता है. ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है इसलिए इसका नाम वंशीनारायण मंदिर पुकारा जाता है. स्थानीय लोग मंदिर को वंशीनारायण भी पुकारते हैं. मंदिर भगवान शिव, गणेश और वन देवी की मूर्तियां भी स्थापित की हुई हैं.रक्षाबंधन पर ही खुलता है ये मंदिर ऐसा माना जाता है कि मंदिर के कपाट पूरे साल बंद रहते हैं और सिर्फ राखी वाले दिन इसे खोला जाता है. रक्षाबंधन के दिन स्थानिय लोग मंदिर की साफ-सफाई करके पूजा-अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि लोकल्स यही पर राखी के त्योहार का जश्न भी मनाते हैं. त्योहार को मनाने से पहले लोग मंदिर में पूजा करते हैं. पौराणिक कथा धारणाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने राजा बलि के अहंकार को चूर करने के लिए वामन अवतार लिया. इस बीच राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपना द्वारपाल बनाने का वचन मांगा. माता लक्ष्मी उन्हें वापस लाना चाहती थीं और इसलिए उन्हें नारद मुनि ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधने का उपाय दिया. माता के दुर्गम घाटी में यहां रुकने के बाद से ही रक्षाबंधन का त्योहार मनाए जाने लगा.
इस मंदिर से पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. कहते हैं कि भगवान विष्णु के वामन अवतार को यहां मुक्ति मिली थी. मंदिर के पास ही लोग प्रसाद बनाते हैं जिसके लिए हर घर से मक्खन तक आता है. प्रसाद तैयार होने के बाद भगवान विष्णु को चढ़ाया जाता है. ये मंदिर उर्गम गांव से 12 किलोमीटर दूर है. यहां पहुंचने के लिए कुछ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. ट्रेन से जा रहे हैं तो आपको हरिद्वार ऋषिकेश रेलवे स्टेशन उतरना होगा. वैसे ऋषिकेश से जोशीमठ की दूरी करीब 225 किलोमीटर है. जोशीमठ से घाटी 10 किमी है और यहां से आप उर्गम गांव पहुंच सकते हैं. इसके बाद का रास्ता पैदल तय करना पड़ता है.