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यूपी के यह शहर जिन्होंने दिया आज़ादी में बड़ा ही योगदान, आज के दिन यहाँ जरुर करे एक्स्प्लोर
Harrison
15 Aug 2023 7:11 AM GMT
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भारत अपनी आजादी के 76 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है. हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. पूरे देश में इस राष्ट्रीय पर्व को लेकर उत्साह है. दिल में देशभक्ति की भावना और स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान के साथ लोग झंडा फहराते हैं और शहीदों को नमन करते हैं।
इस अवसर पर राष्ट्रीय अवकाश रहता है। ऐसे में लोग उन जगहों पर जाना पसंद करते हैं, जो देशभक्ति की भावना को बढ़ाती हैं। 1947 से पहले भारत के कोने-कोने में आजादी की मांग उठी. हर राज्य और शहर से कई स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी की मांग करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।अगर आप उत्तर प्रदेश के निवासी हैं तो आपको यह जरूर पता होगा कि राज्य के किन-किन शहरों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आंधी चली थी और जिसका परिणाम 15 अगस्त के रूप में सामने आया। यूपी में उन जगहों पर 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है जहां आज़ादी की लड़ाई के वो दिन याद दिलाते हैं.
मेरठ
देश की आजादी के लिए पहली क्रांति 1857 में हुई। इस विद्रोह की शुरुआत 10 मई को मेरठ से हुई। 10 मई की शाम को मेरठ में चर्च की घंटी बजी, लोग अपने घरों से बाहर निकले और सदर बाजार में इकट्ठा होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ नारे लगाने लगे। आजादी के लिए सबसे पहले यहीं से बिगुल बजा था, जिसकी आवाज कुछ ही समय में दिल्ली तक पहुंच गई।
झांसी
रानी लक्ष्मीबाई का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। इतिहास में जब भी सबसे साहसी, निडर और क्रांतिकारी महिलाओं का जिक्र होगा तो सबसे पहले झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम लिया जाएगा। वह लक्ष्मीबाई ही थीं जिन्होंने 1857 की क्रांति का नेतृत्व झाँसी से किया था। 22 साल की उम्र में रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गईं। उनकी शहादत ने देश की हर महिला और पुरुष को आजादी की लड़ाई में निडर होकर लड़ने के लिए प्रेरित किया।
लखनऊ
1857 के विद्रोह की कमान लखनऊ में अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पहली पत्नी बेगम हजरत महल ने संभाली थी। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। हार के बाद भी वह ग्रामीण इलाकों में क्रांति की आग जलाती रहीं। 21 मार्च, 1858 को अंग्रेजों ने लखनऊ पर कब्ज़ा कर लिया। आज भी यहां की रेजीडेंसी में भारतीय सैनिकों के खून के छींटे देखे जा सकते हैं।
गोरखपुर
5 फरवरी 1922 को भारतीय क्रांतिकारियों ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास एक ब्रिटिश पुलिस चौकी में आग लगा दी, जिसमें 22 पुलिसकर्मी जलकर मर गये। चौरी-चौरा की घटना आज़ादी की लड़ाई के सबसे बड़े विद्रोहों में से एक थी, जिसने ब्रिटिश शासन को भयभीत कर दिया था। हालाँकि, चौरी-चौरा घटना के कारण महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था।
प्रयागराज
चन्द्रशेखर आजाद भी आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीर सपूतों में से एक हैं, जिनकी वीरता की कहानी पूरा भारत जानता है। 15 अगस्त के मौके पर चन्द्रशेखर आजाद को नमन करने के लिए इलाहाबाद जा सकते हैं. यहां अल्फ्रेड पार्क शहीद चन्द्रशेखर आजाद की वीरगाथा गाता है। 27 फरवरी 1931 को जब अंग्रेजों ने आजाद को घेर लिया तो उन्होंने अंग्रेजों की गोली खाने से बेहतर खुद को गोली मारना समझा और क्रांति के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
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