लाइफ स्टाइल

ये आक्रामक मछली खाएगी मच्छरों का लार्वा, खत्‍म करेगी मलेरिया और डेंगू

Manish Sahu
20 July 2023 5:58 PM GMT
ये आक्रामक मछली खाएगी मच्छरों का लार्वा, खत्‍म करेगी मलेरिया और डेंगू
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लाइफस्टाइल: गर्मियों की शुरुआत होते ही या हल्‍की सी बारिश के बाद ही रात को मच्‍छर कान पर गुनगुनाने लगते हैं. मच्‍छरों के काटने पर मलेरिया, डेंगू के मरीजों की संख्‍या भी अचानक बढ़नी शुरू हो जाती है. सही समय प इलाज नहीं कराने पर काफी लोगों की मौत भी हो जाती है. लिहाजा, मच्‍छरों से निपटने के लिए लोग मॉस्किटो क्‍वाइल्‍स, रेपलेंट्स और क्रीम का इस्‍तेमाल करते हैं. इनके हमो स्‍वास्‍थ्‍य पर साइड इफेक्‍ट्स भी होते हैं. अब मच्‍छरों का एक ऐसा समाधान मिल गया है, जिससे उनके लार्वा को ही खत्‍म कर दिया जाएगा और मच्‍छर नहीं पनप पाएंगे. अगर मच्‍छर नहीं होंगे तो उनसे होने वाली बीमारियों को भी रोका जा सकेगा.
आंध्र प्रदेश सरकार ने मलेरिया और डेंगू जैसी मच्छरों से होने वाली बीमारियों से निपटने के लिए राज्य के जल निकायों में करीब एक करोड़ गम्बूसिया मछली छोड़ी हैं. इस मछली को मॉस्किटोफिश नाम से भी जाना जाता है. ये मछली मच्छरों के लार्वा को नियंत्रित करने के लिए जैविक एजेंट के तौर पर व्यापक रूप से इस्‍तेमाल की जाती है. हालांकि, इन आक्रामक विदेशी मछली प्रजातियों को छोड़े जाने से राज्य के मीठे पानी के निकायों में प्रचुर मात्रा में मौजूद देशी प्रजातियों को होने वाले नुकसान को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं.
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हर दिन खाती है 300 मच्‍छरों के लार्वा
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, आंध्र प्रदेश में 2022 में लगभग 6,391 डेंगू और 2,022 मलेरिया के मामले दर्ज किए गए थे. हालांकि, स्थानीय मीडिया के अनुसार, राज्‍य में डेंगू और मलेरिया के मामले काफी बढ़ गए हैं. पिछले छह महीनों में ही राज्य में 2,339 डेंगू और 1,630 मलेरिया के मामले दर्ज किए गए हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, गम्‍बूसिया एफिनिस या जी एफिनिस दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के पानी में पाई जाती है. एक पूर्ण विकसित गम्‍बूसिया मछली हर दिन करीब 300 मच्छरों के लार्वा खाती है.
एक पूर्ण विकसित गम्‍बूसिया मछली हर दिन करीब 300 मच्छरों के लार्वा खाती है.
गम्‍बूसिया मछली की होती हैं दो प्रजाति
गम्बूसिया भारत समेत दुनिया के विभिन्‍न हिस्सों में एक सदी से भी अधिक समय से मच्छर नियंत्रण रणनीति का हिस्सा रही है. जी एफिनिस की एक प्रजाति गंबूसिया होलब्रूकी है. इसे ईस्‍टर्न मॉस्किटोफिश के तौर पर भी जाना जाता है. मॉस्किटोफिश 1928 से शहरी मलेरिया योजना समेत भारत में विभिन्‍न मलेरिया नियंत्रण रणनीतियों का हिस्सा रही है. आम तौर पर समझा जाता है कि मछली मच्छरों के प्रजनन के खिलाफ एक अच्छी जैविक नियंत्रण विधि है. हालांकि, ये केवल एक एकीकृत दृष्टिकोण का हिस्सा हो सकती है, जिसमें रासायनिक छिड़काव और सबसे महत्वपूर्ण रूप से स्रोत में कमी जैसे तरीके भी शामिल हैं.
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अध्‍ययनों में नहीं मिले ठोस नतीजे
विशेषज्ञों का कहना है कि पोखरों और खुली नालियों जैसे मच्छरों के प्रजनन स्रोतों की संख्या को कम करना और मच्छरों को खाने वाली वनस्पति को साफ करने को जल निकायों में मछली छोड़ने से ज्‍यादा अहमियत दी जानी चाहिए. दरअसल, एक व्यवहार्य मच्छर नियंत्रण के तौर पर गम्बूसिया के असर को लेकर किए गए अध्ययन निर्णायक नहीं रहे हैं. कुछ ऐसे अध्ययन हैं, जिनसे पता चला है कि इन मछलियों के आने से मलेरिया के मामलों में कमी आई थी. वहीं, कुछ ऐसे अध्ययन भी हैं, जिनमें बताया गया है कि इन मछलियां को लाने से मच्छरों के लार्वा की आबादी में वृद्धि हुई है, क्योंकि जी एफिनिस उन दूसरे शिकारियों का शिकार भी करती हैं, जो मच्छरों के लार्वा खाते थे.
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ऐसे हालात में नहीं कर पाती शिकार
कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि गम्‍बूसिया की शिकार करने की क्षमता बहते पानी की धाराओं, उच्च कीटनाशक स्तर वाले जल निकायों और घनी वनस्पति वाले जल निकायों में कम हो जाती है. भारत में 1928 में गम्‍बूसिया मछली को लाया गया था, लेकिन ये स्‍पष्‍ट नहीं है कि वे जी एनिफिस या जी होलब्रूकी में से कौन सी प्रजाति की थीं. साल 2020 में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, यह स्पष्‍ट नहीं है कि दोनों प्रजातियों में से कौन सी प्रजाति लाई गई थी, क्योंकि कोई व्यवस्थित वर्गीकरण नहीं किया गया था. दरअसल, जी होलब्रूकी को मच्‍छरों के खिलाफ प्रभावी नहीं माना जाता है क्‍योंकि मच्‍छरों का लार्वा इसके आहार का बहुत छोटा हिस्‍सा होता है.
गम्‍बूसिया की शिकार करने की क्षमता बहते पानी की धाराओं, उच्च कीटनाशक स्तर वाले जल निकायों में कम हो जाती है.
1,200 तक संतानें करती हैं पैदा
अगर आक्रामक मछली जी एफिनिस के बजाय जी होलब्रूकी को मीठे जल में छोड़ा गया है तो इसका असली फायदा नहीं मिल पाएगा. साथ ही ये मच्‍छरों का लार्वा खाने वाले दूसरे जलीय जीवों को भी अपना शिकार बनाकर नुकसान पहुंचाएगी. मॉस्किटोफिश की प्रजनन क्षमता बहुत उच्‍च होती है. केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के अनुसार, एक अकेली मादा अपने जीवनकाल में 900 से 1,200 संतानें पैदा कर सकती है. युवा मादाओं में प्रति मौसम में दो गर्भधारण होते हैं, जबकि अधिक उम्र की मादाओं में प्रति मौसम में छह पीढ़ियां हो सकती हैं. इनका एक मौसम करीब 30 दिन तक चलता है. युवा मछलियों को 25 से 30 के झुंड में छोड़ा जाता है.
हर वातावरण रह सकती हैं जिंदा
मछली अलग-अलग तरह के वातावरण में भी जीवित रह सकती है. साल 2020 में प्रकाशित एक पेपर में बताया गया है क‍ि मछलियां अपनी अनुकूलनशीलता के कारण ही सात में से छह महाद्वीपों पर जीवित रहने में सफल रही हैं. अंतरराष्‍ट्रीय संघ ने प्रकृति संरक्षण के लिए गम्‍बूसिया को दुनिया की 100 सबसे खराब आक्रामक विदेशी प्रजातियों में से एक घोषित किया है. भारत समेत कई देशों ने गम्‍बूसिया को आक्रामक प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया है. हालांकि, मछली देश के मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रमों का प्रमुख हिस्सा बनी हुई है. लिहाजा, इनको आंध्र प्रदेश, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे राज्‍यों के मीठे जल निकायों में छोड़ा जाना जारी है.
बहुत आक्रामक होती है गम्‍बूसिया
देसी प्रजातियों से प्रतिस्पर्धा करने और उनका शिकार करने के लिए पहचानी जाने वाली गम्‍बूसिया उन वातावरणों में भी आक्रामक हो जाती हैं, जहां उन्हें संसाधनों के लिए अन्य प्रजातियों के साथ संघर्ष करने की जरूरत होती है. वे प्रतिस्पर्धी मछलियों और मेंढक के अंडे भी खा लेती हैं. कुछ अध्ययनों में गम्‍बूसिया को दूसरी मछलियों का पीछा करते हुए और पंखों को काटते हुए भी देखा गया है. एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए 1990 के दशक में नैनीताल की झील में आने के बाद मॉस्किटोफिश ने झील के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया. हालांकि, यह भारत में उन बहुत कम अध्ययनों में से एक है, जिसने इस विदेशी प्रजाति के प्रभावों की जांच की.
गम्‍बूसिया उन वातावरणों में आक्रामक हो जाती हैं, जहां उन्हें अन्य प्रजातियों के साथ संघर्ष करने की जरूरत होती है.
डब्‍ल्‍यूएचओ करता है समर्थन
तमाम समस्‍याओं के बाद भी गम्‍बूसिया मछली हर साल देश भर के मीठे पानी के निकायों में बड़ी संख्या में छोड़ी जाती हैं. हालांकि, विश्‍व स्वास्थ्य संगठन ने स्विमिंग पूल और बगीचे के तालाबों जैसे मानव निर्मित प्रजनन आवासों में लार्वा नियंत्रण विधि के रूप में जी एफिनिस के प्रजनन तथा उपयोग की प्रभावशीलता का समर्थन किया है. हालांकि, रिपोर्ट में विदेशी मछली प्रजातियों को प्राकृतिक वातावरण में छोड़ने के खिलाफ चेतावनी दी गई है, क्योंकि वे स्थानीय प्रजातियों को प्रतिस्थापित करके या अन्य जलीय जानवरों को प्रभावित करके दुष्प्रभाव पैदा कर सकती हैं.
दूसरा आहार ना मिलने पर है प्रभावी
घरेलू तालाबों या टैंकों में जहां कई अन्य आहार विकल्प नहीं हो सकते हैं, वहां गम्‍बूसिया लार्वा आबादी को नियंत्रित करने में प्रभावी हो सकती है. फिर भी इन मछलियों के प्राकृतिक वातावरण में फैलने की संभावना ज्‍यादा है. गम्‍बूसिया को भारत में अभी भी एक समस्या के तौर पर नहीं देखा जा रहा है. गम्‍बूसिया के प्रजनन और वितरण जैसे कार्यों को शायद ही कभी विनियमित किया जाता है. मॉस्किटोफिश पर भरोसा करने के बजाय शोधकर्ताओं ने जीवविज्ञानियों और मछली वर्गीकरणकर्ताओं को देशी मछली प्रजातियों की नदी बेसिन-आधारित सूची के साथ आने के लिए प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया, जो मच्छर के लार्वा को नियंत्रित कर सकते हैं और उन्हें प्राकृतिक वातावरण में छोड़ सकते हैं.
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