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कोलेस्ट्रॉल हाई होने पर ये लक्षण देते हैं हार्ट अटैक का संकेत

Tara Tandi
5 Aug 2023 1:33 PM GMT
कोलेस्ट्रॉल हाई होने पर ये लक्षण देते हैं हार्ट अटैक का संकेत
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बैड कोलेस्ट्रॉल का हाई होना एक ऐसी समस्या है जो बीते कुछ सालों से तेजी से बढ़ रही है. शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ने की वजह से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा खतरा हार्ट अटैक का रहता है. दिल का दौरा पड़ने के कई मामलों का कारण कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना ही होता है. डॉक्टरों का कहना है कि अनहेल्दी डाइट के कारण शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ता है. कोलेस्ट्रॉल जब भी बढ़ता है तो शरीर में लिपिड की परत भी बढ़ने लगती है जो हार्ट अटैक का कारण बनती है. ऐसे में ये जानना बहुत जरूरी है कि अगर कोलेस्ट्रॉल हाई है तो शरीर में हार्ट अटैक के क्या लक्षण दिखते हैं.
हाई कोलेस्ट्रॉल अगर लंबे समय तक बना रहे तो इसके लक्षण दिखने लग जाते हैं, जो हार्ट अटैक का संकेत देते हैं. ऐसे में इनकी समय पर पहचान जरूरी है.
क्या होते हैं हार्ट अटैक के लक्षण
अचानक हार्ट बीट का बढ़ना
थकान और सुस्ती बने रहना
सांस फूलना
उल्टी आना
अचानक छाती में तेज दर्द तो बाएं हाथ तक जाता है
पसीन आना
सांस लेने में परेशानी
ऐसे पता करें कि कोलेस्ट्रॉल हाई हो गया है
राजीव गांधी हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अजित जैन बताते हैं कि कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ने के संकेत शरीर शुरुआत में ही देने लगता है. अगर पैरों में लगातार दर्द रहता है, स्किन के रंग में बदलाव हो रहा है या फिर वजन बढ़ रहा है तो ये कोलेस्ट्रॉल हाई होने के लक्षण हैं. कुछ लोगों की आंखों और जीभ पर भी लक्षण दिख सकते हैं. इनमें आंखों से धुंधला दिखना की समस्या हो सकती है.
डॉ जैन कहते हैं कि बैड कोलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल को कंट्रोल में रखना बहुत जरूरी है. इसके लिए हेल्दी लाइफस्टाइल का पालन करना चाहिए. खानपान का ध्यान रखना भी जरूरी है. भोजन में अधिक फैट नहीं लेना चाहिए. तली-भुनी चीजों के सेवन से बचें और रोजाना एक्सरसाइज करें.
हार्ट अटैक का रहता है रिस्क
डॉ. कुमार कहते हैं कि हार्ट अटैक से बचने के लिए बैड कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल में रखना जरूरी है. अगर ये बढ़ता है तो हार्ट अटैक को दावत दे सकता है. कई मामलों में व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने का कारण कोलेस्ट्रॉल ही होता है. ऐसे में नियमित रूप से इसका टेस्ट कराना चाहिए. लिपिड प्रोफाइल टेस्ट के जरिए इसकी पहचान की जा सकती है. 20 साल से अधिक उम्र के हर व्यक्ति को तीन महीने में एक बार ये टेस्ट करा लेना चाहिए.
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