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हम सभी जगह सेफ़ सेक्स की बातें सुनते हैं. सेफ़ सेक्स का सबसे बड़ा हथियार है कॉन्डम, पर इतने प्रचार के बावजूद ज़्यादातर लोग इसका इस्तेमाल करने से कतराते हैं. यह मानी बात है कि सेक्शुअल इन्फ़ेक्शन्स, एसटीडी, अनचाही प्रेग्नेंसी को रोकने में कॉन्डम बेहद प्रभावी होते हैं. हालांकि आज भी कई लोग कॉन्डम नाम सुनकर अजीबोग़रीब रिऐक्शन देते हैं. यहां तक कि मेडिकल स्टोर से कॉन्डम ख़रीदने में भी लोग झिझकते हैं. कॉन्डम का इस्तेमाल न करने के पीछे का सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि इससे सेक्स में आनंद नहीं आता. क्या है इस तर्क की हक़ीक़त हम आगे समझने की कोशिश करेंगे.
कितना दम है ‘कॉन्डम के यूज़ से आनंद में कमी’ वाली आम धारणा में?
कॉन्डम का इस्तेमाल करने के पीछे लोगों की सबसे बड़ी हिचक इसी से जुड़ी है, क्योंकि उनके मन में यह बात बिठा दी गई है कि कॉन्डम के इस्तेमाल से आनंद में कमी आ जाती है. यह एक ग़ैर ज़रूरी मिथक होने के साथ ही बेहद असुरक्षित भी है. देखा जाए तो कॉन्डम का इस्तेमाल केवल अनचाही प्रेग्नेंसी से बचने के लिए नहीं, बल्कि एसटीआई और एसटीडी से सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद ज़रूरी है. ज़्यादातर लोग सुनी-सुनाई बातों के आधार पर यह धारणा बना लेते हैं. वहीं कुछ लोगों का पहला अनुभव वाक़ई अच्छा नहीं होता. पहली धारणा का तो कोई इलाज नहीं है, पर जिन लोगों का पहली बार कॉन्डम के साथ सेक्स का अनुभव अच्छा नहीं रहा, वे दूसरे ब्रैंड और वरायटी का कॉन्डम यूज़ कर सकते हैं. क्योंकि अगर कोई कॉन्डम आपको सूट नहीं कर रहा तो इसका यह मतलब तो नहीं हुआ ना कि आप कभी कॉन्डम ही यूज़ नहीं करेंगे.
कॉन्डम कई साइज़ और वरायटी में आते हैं. मेटेरियल वाइज़ भी अलग-अलग तरह के कॉन्डम हैं. जैसे अगर किसी को लैटेक्स से एलर्जी है तो वह नॉन-लैटेक्स कॉन्डम अपना सकता है.
क्या किया जा सकता है इस मिथक को तोड़ने के लिए?
मीडिया कैम्पेन और पीआर ऐक्टिविटीज़ की मदद से सेफ़ सेक्स से जुड़े अभियान चलाने चाहिए. उस दौरान अनसेफ़ सेक्स के ख़तरों से आगाह करते हुए कॉन्डम के महत्व के बारे में बताना चाहिए. जागरूकता अभियान के साथ-साथ कॉन्डम बनानेवाली कंपनियों को अपनी ओर से भी पहल करनी चाहिए. मसलन उन्हें कॉन्डम की अलग-अलग वरायटीज़ पर काम करना चाहिए. अलग-अलग टेक्सचर और फ़्लेवर वाले कॉन्डम ले आने चाहिए. फ़िलहाल बाज़ार में चॉकलेट, ब्लैक ग्रेप्स, बटरस्कॉच, ग्रीन एपल, ऑरेंज, कॉफ़ी, स्ट्रॉबेरी, बनाना जैसे कई फ़्लेवर के कॉन्डम मौजूद हैं. टेक्सचर वाइज़ डॉटेड और रिब्ड कॉन्डम्स ख़ूब पसंद किए जा रहे हैं. उपलब्धता के साथ-साथ जब इनके बारे में खुलकर बात होगी तो लोग इनकी ओर आकर्षित होंगे. कॉन्डम के इस्तेमाल से सेफ़ सेक्स की प्रैक्टिस बढ़ेगी.
लूब्रिकेशन और आनंद के बारे में बात क्यों नहीं की जाती?
लूब्रिकेशन को लेकर लोगों के बीच ग़लतफ़हमी भी कॉन्डम जैसी ही है. ज़्यादातर लोगों को लगता है लूब्रिकेशन सेक्स टॉय की तरह एक्स्ट्रा प्रॉप्स में आते हैं, पर वैज्ञानिक नज़रिए से देखा जाए तो ऐसा नहीं है. लूब्रिकेंट्स सेक्स के अनुभव को स्मूद और आनंददायक बनाने के लिए ज़रूरी चीज़ हैं. आमतौर पर महिलाओं में वेजाइनल ड्रायनेस एक बड़ी समस्या है. ड्रायनेस के चलते सेक्स का अनुभव अधिकतर महिलाओं के लिए दर्द भरा हो जाता है. इससे न केवल जननांगों के क्षतिग्रस्त होने का ख़तरा होता है, बल्कि सेक्स का अनुभव भी डरावना होने की संभावना होती है. ऐसे में यह बेहद ज़रूरी सवाल जान पड़ता है कि आख़िर लूब्रिकेशन को लेकर ज़्यादा बात क्यों नहीं की जाती? इसका सबसे बड़ा कारण यह समझ में आता है कि सालों से महिलाओं को यह बताया जाता है कि सेक्स में सेक्शुअल प्लेज़र ये उतनी ज़रूरी बात नहीं है. सबसे अहम होता है रिश्ता अच्छा चले. बेशक रिश्ता सही चलना ज़रूरी है, पर सेक्शुअल हेल्थ और प्लेज़र यानी आनंद भी बहुत ही ज़रूरी बात है. कुछ कमियां सेक्स एजुकेशन की भी हैं. मसलन हमें यह बताया जाता है कि सेक्स केवल प्रजनन के लिए किया जाता है. सेक्स के दौरान आनंद मिलने या ना मिलने की बात नहीं की जाती. ऐसे में लूब्रिकेशन का पहलू पीछे छूट जाता है.
क्या किया जा सकता है इस मिथक को तोड़ने के लिए?
कॉन्डम के इस्तेमाल की तरह ही लूब्रिकेशन के यूज़ के बारे में भी जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है. यह वैज्ञानिक तथ्य बताना चाहिए कि स्मूद और आनंददायक सेक्स के लिए महिलाओं के वेजाइना में प्राकृतिक रूप से लूब्रिकेशन होता है. कुछ महिलाओं को वेजाइनल ड्रायनेस की समस्या होती है. ऐसे मामलों में सेक्स के दौरान असहजता और दर्द का अनुभव अधिक होता है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही देखें तो वेजाइनल ड्रायनेस बिल्कुल नॉर्मल और आम है. इस समस्या का सामना कर रही महिला को अगर बाहरी लूब्रिकेशन की ज़रूरत है तो इसमें शर्माने जैसी कोई बात नहीं है.
हां, आपको बस इतना ध्यान रखना होगा कि आप सही लूब्रिकेंट का इस्तेमाल कर रही हैं या नहीं. आख़िरकार यह बात आपके जेनाइटल्स से जुड़ी है, जो कि बेहद संवेदनशील अंग है. आपको लूब्रिकेंट का पीएच लेवल ज़रूर चेक करना चाहिए, अन्यथा यह यूटीआई, यीस्ट इन्फ़ेक्शन और खुजली को न्यौता देने जैसा होगा. मार्केट में वॉटर बेस्ड, सिलिकॉन बेस्ड और ऑयल बेस्ड लूब्रिकेंट्स मौजूद हैं, आपको अपनी ज़रूरत के अनुसार लूब्रिकेंट का चुनाव करना चाहिए.
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