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लाइफ स्टाइल
कोविड सरवाइवर्स में बढ़ रहा है डिप्रेशन, एंग्जायटी और मेंटल इलनेस का खतरा
Bhumika Sahu
28 Feb 2022 6:13 AM GMT
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आधुनिक मानव इतिहास की इस सबसे बड़ी स्वास्थ्य त्रासदी को देख चुके लोगों की जिंदगियों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- पैनडेमिक के पहले और पैनडेमिक के बाद. जो लोग इस पैनडेमिक में कोविड का सामना करके उससे उबर आए, उनके लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल जनरल (BMJ) में प्रकाशित एक स्टडी कह रही है कि पैनडेमिक के दौरान कोविड संक्रमण से गुजर चुके लोगों में मेंटल इलनेस का खतरा काफी बढ़ रहा है. इस वक्त धरती के अधिकांश हिस्सों में जितने वयस्क मनुष्य जीवित हैं, उनके जीवन की कहानी में कोविड पैनडेमिक नाम का एक अध्याय हमेशा के लिए जुड़ गया है. 1945 के बाद भी जीवित रह गए मनुष्यों की जिंदगी को जैसे दो अध्यायों में बांटा जा सकता है, युद्ध के पहले और युद्ध के बाद.
वैसे ही आधुनिक मानव इतिहास की इस सबसे बड़ी स्वास्थ्य त्रासदी को देख चुके लोगों की जिंदगियों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- पैनडेमिक के पहले और पैनडेमिक के बाद.
जो लोग इस पैनडेमिक में कोविड का सामना करके उससे उबर आए, उनके लिए अब भी सबकुछ सुनहरा ही नहीं है. हाल ही में हुई एक स्टडी कह रही है कि कोविड सरवाइवर्स के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति ठीक नहीं है. जो लोग कोविड में बच भी गए हैं, अब उनमें मेंटल हेल्थ की गंभीर जटिलताएं पैदा हो रही हैं. वे एंग्जायटी, डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं. उनमें कॉग्निटिव डिक्लाइन अपेक्षाकृत तेजी से हो रहा है. उन लोगों में ओपियड यूज की घटनाएं बढ़ रही हैं. उनका मानसिक स्वास्थ्य गंभीर खतरों का सामना कर रहा है.
शोधकर्ताओं ने यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टडिपार्टमेंट ऑफ वेटरेन्स अफेयर्स (VA) के डेटा को एक जगह एकत्रित कर उसका विश्लेषण किया है कि एक साल बाद अब SARS-CoV-2 से प्रभावित हुए लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की क्या स्थिति है. अनालिसिस में शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग कोविड से गुजर चुके हैं, उनमें मेंटल इलनेस का खतरा अन्य व्यक्तियों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. वो तमाम तरह की मानसिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं. डिप्रेशन की दवाइयां ले रहे हैं. थैरेपी और काउंसिलिंग के लिए जाने वाले लोगों में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जो कोविड सरवाइवर हैं.
यह स्टडी ब्रिटिश मेडिकल जनरल (BMJ) में प्रकाशित हुई है. क्लिनिकल एपिडेमिओलॉजिस्ट और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जियाद अल अलाय इस स्टडी के प्रमुख हैं. वे कहते हैं कि हमारी स्टडी इस बात को स्पष्ट कर रही है कि कोरोना वायरस सिर्फ रेस्पिरेटरी सिस्टम पर हमला करने वाला एक वायरस भर नहीं है. यह बहुत सिस्टमैटिक तरीके से हमारे शरीर के हरेक ऑर्गन और पूरे सिस्टम को प्रभावित कर रहा है. मेंटल हेल्थ से लेकर कॉग्निटिव डिक्लाइन तक में यह वायरस अपनी भूमिका निभा रहा है.
जब हम मेंटल हेल्थ, डिप्रेशन, एंग्जायटी वगैरह की बात कर रहे हैं तो यह सिर्फ भावनात्मक नहीं है. सिर्फ निराशा और भय नहीं है. डॉ. जियाद कहते हैं कि लोगों के मेंटल वायरिंग और कॉग्निटिव फंक्शन पर इसका असर पड़ रहा है, जिसके लंबे समय में चिंताजनक नतीजे हो सकते हैं.
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