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आजादी की लड़ाई में था 'चपाती आंदोलन' का अहम योगदान, जानें रोटी से जुड़ी रोचक कहानी

Ritisha Jaiswal
21 July 2022 10:18 AM GMT
आजादी की लड़ाई में था चपाती आंदोलन का अहम योगदान, जानें रोटी से जुड़ी रोचक कहानी
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रोटी भारतीयों के साथ-साथ दक्षिण एशिया के निवासियों के खान-पान का मुख्य स्रोत है.

रोटी भारतीयों के साथ-साथ दक्षिण एशिया के निवासियों के खान-पान का मुख्य स्रोत है. इन क्षेत्रों में चावल आदि भी खूब खाए जाते हैं, लेकिन पेट और मन को तृप्ति तो रोटी (चपाती) खाकर ही मिलती है. वेज सब्जी हो या नॉनवेज, रोटी के साथ ही उसका आनंद बढ़ता है. स्वस्थ शरीर के लिए रोटी एक आवश्यक आहार है, उसका कारण यह है कि इसमें अनेक गुण हैं. यह शरीर में जान पैदा करती है. सालों से खाई जाने वाली रोटी पर साहित्यकारों, शायरों ने बहुत कुछ लिखा है, क्योंकि वे मानते थे कि भूख को शांत तो रोटी ही कर सकती है.

सौ-सौ तरह के नाच दिखाती है रोटियां
कवियों को भी रोटी ने कई 'रंग' दिखाएं है. उन्होंने इसके मिजाज पर अलग-अलग बातें की हैं. सूफी कवि (13वीं शती) अमीर खुसरो की मशहूर पहेलियों में से एक 'रोटी जली क्यों? घोड़ा अड़ा क्यों? पान सड़ा क्यों?' में रोटी का जिक्र है. इसका जवाब है 'फेरा (उलट-पुलट) न था.'भक्तिकाल के प्रमुख कवि सूरदास (16वीं शती) ने अपने महाकाव्य 'सूरसागर' के दशम स्कंध में माता यशोदा द्वारा बाल कृष्ण और भाई बलराम को भोजन खिलाने का वर्णन करते हुए लिखा है कि 'पटरस व्यंजन को गनै, बहु भांति रसोई. सरस कनिक बेसन मिलै, रुचि रोटी पोई..'आगे बढ़ते हैं, अठारहवीं शताब्दी में जनकवि और उर्दू के मशहूर शायर नजीर अकबराबादी ने रोटी पर लंबी नज्म (कविता) लिखते हुए कहा है कि 'सौ-सौ तरह के नाच दिखाती हैं रोटियां, जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियां.'
कविता से लेकर फिल्मों तक में ज़िक्र
आजादी की लड़ाई में 'चपाती (रोटी) आंदोलन' ने अंग्रेजों को खासा परेशान किया था. उस वक्त इस आंदोलन पर बने लोकगीतों ने लोगों को आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया. आधुनिक काल के कवियों को भी रोटी ने खूब रिझाया है. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने अपनी मशहूर कविता 'रोटी और स्वाधीनता' में लिखा है कि 'आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं. पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं.' देश के मशहूर शायर व फिल्मी गीतकार गुलजार ने अपनी बायोग्राफी 'बोसकीयाना' में मशहूर साहित्यकार प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह' का जिक्र करते हुए कहा है कि 'मुझे 'ईदगाह' पढ़ने की याद आती है. मुंशी प्रेमचंद की कहानी थी. कहानी एक बच्चे की है जो दादी को हाथ से सिकती हुई रोटियां उठाते देखता है…. यानी रोटी हर जगह है.
फिल्मों की भी बात निराली है. साल 1942 में महबूब की बनाई 'रोटी' फिल्म और इसी नाम से राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म (1974) ने तहलका मचाया था. वर्ष 1974 में ही मनोज कुमार की बनाई फिल्म 'रोटी, कपड़ा और मकान' जबर्दस्त हिट रही थी तो भोजपुरी कलाकार खेसारी लाल यादव के गाए गीत 'सैंया के बेलल रोटी खायलू ए जान' को सोशल मीडिया पर 14 करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं.
सिंधू घाटी की सभ्यता में भी खाई जा रही थी रोटी
माना जाता है कि रोटी की उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई है. यह भारत और आसपास के देशों में आज भी खाई जा रही है. इसका इतिहास काफी पुराना है. चूंकि सिंधू घाटी की सभ्यता (3500 से 2500 ईसा पूर्व) में गेहूं उगाया जा रहा था, इसलिए वहां रोटी भी पकाई और खाई जा रही थी. दावा यह भी है कि रोटी की उत्पत्ति पूर्वी अफ़्रीका में हुई, जहां स्वाहिली लोग फ्लैट ब्रेड या रोटी खाते थे. अभी हाल में हुई एक रिसर्च के अनुसार उत्तर-पूर्वी जॉर्डन में शोधार्थियों को एक ऐसी जगह मिली है, जिसे लेकर कहा जा रहा है कि वहां करीब साढ़े 14 हजार साल पहले फ्लैटब्रेड यानी रोटी पकाई गई थी. वहां पत्थर के बने एक चूल्हे में रोटी पकाई गई थी. द हिंदू की खबर के मुताबिक शोधार्थियों को मौके से वह पत्थर का चूल्हा भी मिला है. इसके बावजूद यह तो स्पष्ट है कि हजारों सालों से भारत के भोजन में रोटी शामिल है और यही से यह प्रवासियों और सौदागरों के जरिए आसपास के देशों तक पहुंची.
'चरकसंहिता' में पुए, सत्तू का वर्णन, रोटी का नहीं
हैरानी की बात यह है कि प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ 'चरकसंहिता' में पुए, सत्तू और उसके पेय का वर्णन है, लेकिन वहां सीधे तौर पर रोटी के बारे में कोई जानकारी नहीं है. मुगलकाल में रोटी का चलन खूब था. उस दौरान सामान्य रोटी के अलावा खमीरी रोटी, शीरमाल, रूमाली रोटी खाई जा रही थी. अकबर के शासनकाल में लिखी किताब 'आइन-ए-अकबरी' में अकबर के पसंदीदा आहार में रोटी भी शामिल थी. वह रोटी को घी और चीनी के साथ खाया करते थे. बदलते वक्त के साथ रोटी के कई आकार-प्रकार हो गए हैं, इनमें नान, कई तरह के पराठे, मिस्सी रोटी, लच्छा पराठा, मीठी रोटी, रूमाली रोटी, तन्दूरी रोटी आदि शामिल है. रोटी का आलम यह है कि अब तो रेडिमेड रोटी बाजारों में मिलने लगी है. पैकेट खोलो, गरम करो और किसी भी सब्जी के साथ खा लो. रोटी गरीब को भी भाती है तो अमीर का भी शगल है.
कई मिनरल्स व विटामिन्स से भरी हुई है रोटी
हमें लगता होगा कि रोटी के गुण साधारण ही होंगे, क्योंकि आटा ही तो है, जिसे आग पर सेंका जा रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है. गुणों से भरी हुई है रोटी. अगर मिनरल्स और विटामिन्स की बात करें तो रोटी में मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम और आयरन सहित विटामिन बी, ई भी मिलते हैं. आयरन होने के कारण यह हमारे रक्त में हीमोग्लोबिन के स्तर के लिए अच्छी मानी जाती है. चूंकि इसमें कैलोरी कम होती है, इसलिए यह मोटापे पर कंट्रोल भी करती है. बतरा हॉस्पिटल की डायटीशियन अनीता लांबा के अनुसार रोटी शुगर वालों के लिए लाभकारी है, क्योंकि इसमें शर्करा की मात्रा कम होती है. रोटी एंटी-ऑक्सीडेंट भी है, जो शरीर की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाती है. इसमें फाइबर है जो कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल रखता है और हार्ट को दुरुस्त बनाए रखता है. यह भूख को शांत कर देती है, इसलिए यह पूरे दिन सक्रिय रखती है.
ज्यादा रोटी खाई तो सुस्ती व थकान
अनीता लांबा कहती हैं कि गेहूं में जिंक भी होता है, जिस कारण स्कीन चमकदार बनी रहती है. रोटी का अधिक सेवन शरीर के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. रोटी में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है, इसलिए इसके ज्यादा सेवन से थकान की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है. शरीर में आलस भी चढ़ जाता है. ज्यादा रोटी खाई, मतलब वजन बढ़ना शुरू. शुगर भी बढ़ सकता है. लेकिन एक्सरसाइज या वॉक की जा रही है तो खतरा कम हो सकता है. ज्यादा रोटी का सेवन करने से शरीर में हीट बढ़ती है, जिससे गर्मी लगती है. यह पेट भी फुला देगी और गैस भी पैदा करेगी. आपको अजीब लगेगा, लेकिन रोटी खाने के बाद मीठा खाने की इच्छा बढ़ जाती है. मीठे के तो नुकसान है हीं. रोटी में प्रोटीन न के बराबर होता है, इसलिए साथ में प्रोटीनयुक्त सब्जी जरूरी है. रोटी अगर संतुलित मात्रा में खाएंगे तो कोई समस्या नहीं है.


Ritisha Jaiswal

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