लाइफ स्टाइल

अपने बच्चो को बचाइए ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ नामक बीमारी से

Manish Sahu
16 Aug 2023 6:40 PM GMT
अपने बच्चो को बचाइए ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ नामक बीमारी से
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लाइफस्टाइल: आज कल मेरे बेटे का फेवरेट टाइम पास मेरा फ़ोन हैं. मुझे इसके साइड इफेक्ट्स के बारे में पता हैं तो मैं कोशिश करती हूँ कि फ़ोन उससे दूर रखू. पर जितना मैं कोशिश कर रही हूँ अपने स्तर पर, उतनी ही वो भी कोशिश करता हैं नए नए तरीको से फ़ोन लेने के लिए. खैर, आज एक लेख पढ़ा मोबाइल फोन की लत यानी ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ पर. और पढ़ कर लगा कि सच में ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ एक बड़ी समस्या बनती जा रही हैं. ये सिर्फ बड़ो के लिए सरदर्द नहीं बन रही, बल्कि इसके शिकार बच्चे ज्यादा हो रहे हैं.कुछ दिनों पहले आई एक खबर ने तो मेरे कान ही खड़े कर दिए थे. हरियाणा का एक नौ वर्षीय बच्चा ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ का शिकार है और दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उसका इलाज चल रहा हैं. इसे भारत में सबसे कम उम्र का ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंट’ बताया जा रहा है. पहले तो मुझे लगा मोबाइल फोन पर डिपेंडेंट तो आजकल सभी हैं तो इस बच्चे का इलाज किस कारण वश होने लगा..? पता चला कि कुछ दिन पहले जब मां-बाप ने जबर्दस्ती बच्चे से उसका स्मार्टफोन ले लिया तो उसने आत्महत्या करने की कोशिश की.बाद में उसके असामान्य व्यवहार देखते हुए बच्चे को अस्पताल लाया गया.
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) के एक अध्ययन के अनुसार इंटरनेट की लत का सबसे प्रचलित रूप मोबाइल फोन सर्फिंग है. एक निष्कर्ष यह भी था कि 14 से 35 वर्ष के आयु वर्ग में आने वाले लोग इस लत का शिकार सबसे आसानी से बन जाते हैं. पूरी दुनिया के मनोरोग विशेषज्ञ मानते हैं कि स्मार्टफोन, जो कि कई तरीको से उपयोगी हैं, हमे कुछ सहूलियतें देने के साथ कुछ खतरनाक नकारात्मक चीजे भी दे रहा हैं. और ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ भी एक ऐसा ही नकारात्मक असर हैं. स्मार्ट फ़ोन हमारे जीवन का हिस्सा बनने के साथ -साथ हमे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित भी कर रहे है. हम परेशान हो जाते हैं अगर इंटरनेट ना चले तो.. हम फेसबुक और ट्विटर चेक करते रहने के आदी होते जा रहे हैं. कुछ लोगो को फेसबुक पर शेयर्ड पोस्ट पर अगर लाइक्स ना मिले तो वो हताश हो जाते हैं.बच्चो में भी ये आदत बड़ी तेज़ी से फ़ैल रही है. गेम खेलने से लेकर सोशल मीडिया पर हमेशा अपडेटेड रहने तक, बच्चे सब कुछ कर रहे है और पता ही नहीं चलता कब वो इसके आदी हो जाते है. बिना फ़ोन, वो खुद को पिछड़ा हुआ महसूस करने लगते है. ऐसा क्यूँ हो रहा है बच्चो में इसके लिए उनके अभिभावकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. अब फोन खिलौनों का विकल्प बनता जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ अगर कोई बच्चा टैबलेट का इस्तेमाल अपना होमवर्क करने में करता है तब उसका ध्यान इस टैबलेट में मौजूद कार रेसिंग या ऐसे ही दूसरे खेलों पर होना भी कोई असामान्य बात नहीं है. अभिभावकों को और ज्यादा सजग रहने की जरूरत है अब. क्यूकि वो स्मार्ट फ़ोन से एकदम किनारा नहीं कर सकते, वो तो जीवन का एक हिस्सा सा बन गया है. पर उस पर डिपेंडेंसी को कम करने के तरीको पर जरूर ध्यान दे सकते है.
हर परिवार में अलग-अलग तरह से खाली समय का सदुपयोग होता है. पर फ़ोन का कम से कम उपयोग होना चाहिए खाली समय में. और ये इसलिए भी जरूरी है क्यूकि बच्चे वही करते है जो उनके अभिभावक. इसलिए घर पर ही कुछ ऐसे साधन जुटाने होंगें जिससे हम फ़ोन से दूर रह सके. ये लोगो की रूचि और उपलब्ध साधनो के हिसाब से होना चाहिए. जैसे; संगीत, साथ में कोई खेल खेलना, बागवानी करना, कोई क्राफ्ट या पेंटिंग की एक्टिविटी करना. मैं अपने ३ साल के बेटे को किचन के छोटे मोटे कामो में उलझा देती हूँ और फिर वो फ़ोन को भूल जाता है. उसकी मैं प्लेट्स पोछने, डब्बो में सामान भरने और फ्रिज में सब्जिया और पानी की बोतले रखने में मदद लेती हूँ. अच्छी बात ये है कि वो भी खुश होता है ऐसे काम करने में. कुछ ऐसा ही आप भी बच्चो के लिए सोचे जिससे कि वो फ़ोन से दूर रहे. पूरी तरह से उन्हें स्मार्ट फ़ोन से अलग ना कर पाए तो उसकी अवधी कम करने की कोशिश करनी चाहिए. और साथ ही साथ उन्हें समझाते रहना चाहिए की स्मार्ट फ़ोन की ज्यादा आदत सेहत के लिए अच्छी नहीं है. ये शारीरिक और मानसिक दोनों बीमारियों को न्योता देना है..
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