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‘‘पता नहीं समाज किस उल्टी दिशा में जा रहा है. पहले यौन उत्पीड़न के जो मामले सुनने आते थे, वो अलग किस्म के होते थे, अब छोटी बच्चियों के साथ के हादसे सुनने मिलते हैं, जो दिल दहला देनेवाले होते हैं. उसका ख़ामियाजा कभी-कभी बच्चों को भी भुगतना पड़ता है. बच्चे जब टीन्स में आते हैं तो चाहते हैं कि हमें थोड़ी आज़ादी मिले, पर उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित पैरेंट्स पग-पग पर उनकी जानकारी रखना चाहते हैं. बच्चे इसे बंदिश की तरह देखते हैं. जबकि वास्तव में यह बंदिश नहीं, भय है.
‘‘यह हमारे समाज पर बहुत बड़ा सवालिया निशान है. हमारे सिस्टम में, परवरिश में या एजुकेशन में यानी हमारी जड़ों में ही मामला गड़बड़ हुआ है. टीनएज में बच्चों की परवरिश पर उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है. लड़कों की परवरिश में लोगों का अप्रोच बहुत ही कैशुअल हो गया है. ये केसेस जो हम सुन, देख रहे हैं वो क्रूरता के एक्स्ट्रीम लेवल के हैं. बलात्कार तो कर ही रहे हैं, अब ये लोग बच्चियों को मार भी रहे हैं. यह साइको वाली बात हो गई है. यह प्लेशर से ज़्यादा सेडेस्टिक अप्रोच हो गया है. यह परवरिश में मिल रहे ज़हर का असर है. मैं चीज़ों के ठीक होने के प्रति आशावान हूं, क्योंकि असंभव तो कुछ भी नहीं है. समाधान मानसिकता को बदलने में है. और यह काम भी धीरे-धीरे ही किया जा सकता है. चीज़ों को ठीक करने की ज़िम्मेदारी समाज के हर व्यक्ति की है. सबको इन्वॉल्व होकर सही दिशा में बढ़ना चाहिए. अपने-अपने स्तर पर सबको चेक रखना चाहिए. पिता का यह दायित्व है कि अपने बेटे को वह संस्कार दे, उसे वही सब सिखाए, जो एक अच्छे समाज के लिए ज़रूरी है. यदि लड़का कुछ ग़लत कर रहा है तो उसे रोकिए. मानसिकता में बदलाव लाना अंग्रेज़ी दवा जैसा नहीं है कि दो डोज़ ले लो, फ़र्क़ ऩजर आने लगेगा, यह होम्योपैथी की दवाई जैसा है धीरे-धीरे असर होगा. बच्चों में कॉम्पिटिशन की भावना डालना छोड़ना होगा. ‘मेरा बच्चा तो जीतेगा ही जीतेगा’ वाली भावना बदलें. यदि सभी जीतने लगे तो हारेगा कौन? बच्चों को जीत-हार के बारे में इतना क्यों दिमाग़ लगाने के लिए क्यों कहना?
‘‘इन मुद्दों पर बात करें पर ध्यान रहे कि बच्चों के दिमाग़ में ये बातें इतनी भी न भर दी जाएं कि वे सोचने लगें कि पूरी दुनिया ही गंदी है. समाज की इतनी डरावनी तस्वीर न खींच दी जाए कि बच्चा घर के बाहर निकलने से भी खौफ़ खाए. बच्चों को दुनियावी सीख देते समय बैलेंस बनाना बहुत ज़रूरी है. उन्हें बताएं कि ऐसी घटनाएं कभी-कभी हो जाती हैं. आप डरो नहीं. आप कॉन्फ़िडेंट रहो. यह सोचो कि ऐसे सिचुएशन से बाहर कैसे निकला जा सकता है. उनसे प्यार की बातें करें, हंसने की बातें करें, मस्ती की बातें करें, उन्हें नेचर के पास रखें. जितना हो सके उन्हें वायलेंस से दूर रखें. अब तो हर जगह वायलेंस ही वायलेंस है. इसलिए हमें बच्चों को यह बताना चाहिए कि दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है.’’
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