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टेक्नोलॉजी ने टीनएजर्स की सेक्शुएलिटी में लाए हैं ये 3 बदलाव

Kajal Dubey
29 April 2023 1:59 PM GMT
टेक्नोलॉजी ने टीनएजर्स की सेक्शुएलिटी में लाए हैं ये 3 बदलाव
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आज के टीनएजर्स डिजिटल युग में बड़े हो रहे हैं. डिजिटल युग यानी खुली और आसानी से मिल जानेवाली जानकारियों का युग. किशोरवयी बच्चों को दूसरी सभी प्रकार की जानकारियों के साथ ही सेक्स के बारे में भी सहजता से जानकारी मिल रही है. नतीजतन, अपने पहले की पीढ़ी की तुलना में आज के टीनएर्स सेक्शुअली जल्दी ऐक्टिव हो जाते हैं. देखा जाए तो टेक्नोलॉजी ने टीनएजर्स के रिश्तों, सेक्स और कामुकता को देखने के नज़रिए को पूरी तरह से बदल दिया है. ये बदलाव उन्हें कहीं ग़लत राह पर न ले जाएं इसलिए बतौर अभिभावक हमें उन बदलावों से परिचित होना चाहिए. आइए बात करते हैं, टीनएजर्स की सेक्शुएलिटी में आए उन तीन बदलावों की, जो टेक्नोलॉजी के चलते आए हैं.
टीनएजर्स बड़ी आसानी से सेक्शुअल कंटेंट के संपर्क में आ रहे हैं
आज के टीनएजर्स किसी भी अन्य पीढ़ी की तुलना में अधिक यौन सामग्री के संपर्क में हैं. इंटरनेट के अलावा, टीनएजर्स विज्ञापन और रिऐलिटी टेलीविज़न के माध्यम से प्रारंभिक यौन शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. यहां तक ​​कि वे सोशल मीडिया पर पिछली पीढ़ियों से अधिक समय बिताते हैं. बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल को आमतौर पर पैरेंट्स बुरा नहीं मानते, पर इंस्टाग्राम, ट्विटर और स्नैपचैट पर भी ऐसे कंटेंट हैं, जो युवा मन को भटका सकते हैं. नियमित रूप से यौन विचारोत्तेजक सामग्री को देखने से उनके बिहेवियर में बदलाव आता है. यही कारण है कि आज के ज़्यादा से ज़्यादा टीनएजर्स ऑनलाइन सेक्शुअल बातचीत को नॉर्मल समझते हैं. वे अपने पोस्ट्स को लेकर भी बेहद कैशुअल और बिंदास होते हैं. पर यह खुलापन उन्हें सेक्शुअल बुलिंग, सायबर बुलिंग या हरैशमेंट का शिकार बना सकता है.
ऐप्स और इंटरनेट ने उनके लिए डेटिंग आसान बना दिया है
सालों पहले, टीनएजर्स उस व्यक्ति के साथ डेट पर जाते थे, जो उन्हें स्कूल या एक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज़ के दौरान मिलता था. पर आज टीनएजर्स नए लोगों से मिलने के लिए डेटिंग ऐप्स, सोशल मीडिया और दूसरे इंटरनेट टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि नए लोगों से मिलने के लिहाज़ से यह आसान और सुविधाजनक तरीक़ा लग सकता है, पर इसके नकारात्मक पहलू हमारी सोच से भी ज़्यादा हैं. सबसे पहली बात किसी को मिलकर उसके बारे में अंदाज़ा लगाना, उसके सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल को देखकर उसके बारे में कल्पना करने की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित और प्रामाणिक तरीक़ा है. आख़िरकार ऑनलाइन तो हर कोई अच्छा और परफ़ेक्ट ही दिखने की कोशिश करता है. टेक्नोलॉजी युवाओं को ग़लत रिश्ते की ओर धकेल सकती है. जहां फ़िज़िकली लोगों से मिलकर, उन्हें जानकर एक विश्वास वाला रिश्ता पनपता है, वहीं डेटिंग ऐप्स हुक अप्स जैसे शॉर्ट टर्म रिलेशन के लिए प्रेरित करते हैं.
टीनएजर्स में सेक्सटिंग अलार्मिंग दर से बढ़ रही है
कई टीनएजर्स के सोशल सर्कल में सेक्शुली उत्तेजक कंटेंट, नग्न और उत्तेजक तस्वीरें और वीडियो शेयर करना आम बन गया है. कॉलेज के विद्यार्थी 18 साल की उम्र से पहले सेक्सटिंग में इन्वॉल्व हो रहे हैं. जबकि हमारे देश में सेक्शुअल संबंध बनाने की लीगल उम्र है 18 वर्ष. किशोर स्टूडेंट्स का इस तरह की गतिविधियों में शामिल होना गंभीर क़ानूनी पेचीदगी पैदा हो कर सकती है.
सबसे बुरी बात यह है कि कई टीनएजर्स को सेक्सटिंग के क़ानूनी और भावनात्मक परिणामों का एहसास तक नहीं होता. दोस्तों के साथ सेक्शुअल कंटेंट शेयर करने को वे नॉर्मल मानते हैं. ऐसे में यह पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी हो जाती है कि वे अपने बच्चों से सेक्सटिंग के ख़तरों के बारे में बात करें और बताएं कि इसके दुष्परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं.
ऐसे में क्या होती है पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी
बच्चे आपके हैं, आप उन्हें परवरिश के लिए टेक्नोलॉजी के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा सही राह पर रहे तो उससे ईमानदार बातचीत करें. ऐसा करने से वह सेक्स और सेक्शुएलिटी के बारे में एक स्वस्थ दृष्टिकोण रखेगा. उसे बताएं कि क्या नॉर्मल है और क्या नहीं. उससे टेक्नोलॉजी के चलते आए बदलावों और उसके ख़तरों के बारे में बताएं. वे ऑनलाइन किन चीज़ों को देख रहे हैं, वह पूछें. देखिए ज़ाहिर सी बात है, अगर आप उनके टीनएजर मन में आ रहे तमाम तरह के सवालों के सही जवाब नहीं देंगे तो वह उनके समाधान के लिए दूसरे रास्ते तलाशेंगे ही, जिसमें सबसे आसान रास्ता है इंटरनेट का. और आप यह तो जानते ही होंगे कि सबसे आसान रास्ता, अक्सर हमें भटका देता है.
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