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टीबी 140 साल पुरानी बीमारी हैं, जानिए किसे हैं सबसे अधिक खतरा
Tara Tandi
24 March 2022 3:38 AM GMT
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दुनिया के लिए टीबी की बीमारी आधिकारिक रूप से 140 साल पुरानी है लेकिन आज भी जानें ले रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुनिया के लिए टीबी की बीमारी आधिकारिक रूप से 140 साल पुरानी है लेकिन आज भी जानें ले रही है। गुरुवार को विश्व टीबी दिवस के मौके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बताया है कि टीबी से दुनियाभर में हर दिन 4100 लोगों की मौत होती है, इस अनुसार दुनिया में हर घंटे औसतन 137 लोगों की मौत होती है। चिंताजनक स्थिति ये है कि दुनियाभर में हर दिन इस 28 हजार लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं यानी हर घंटे टीबी का जीवाणु 1167 लोगों को अपना शिकार बनाता है। संगठन के आंकड़ों के अनुसार टीबी से दुनियाभर में हर साल करीब 14.96 लाख लोगों की मौत होती है। वहीं 1.22 करोड़ लोग इसकी चपेट में आते हैं।
आखिर 140 साल पुरानी बीमारी कैसे?
अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार 24 मार्च 1882 को डॉक्टर रॉबर्ट कोच ने टीबी का रोग करने वाले माइक्रोबैक्टीरियल ट्यूबकुलोसिस की खोज की थी। अमेरिका और यूरोप में उस वक्त हर सात में से एक व्यक्ति की मौत टीबी से होती थी। एक सदी बाद 24 मार्च 1982 को पहली बार विश्व टीबी दिवस मनाया गया। वर्ष 1997 में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक हिरोशी नाकाजिमा ने टीबी के इलाज के लिए डॉट्स को बेहतर उपाय बताया था।
टीबी के अंत के लिए निवेश, जीवन बचाएं
डब्ल्यूएचओ ने इस बार की थीम "इन्वेस्ट टू एन्ड टीबी-सेव लाइव्स" रखी है। वर्ष 2022 तक टीबी के जांच, इलाज व बचाव के मद में 13 अरब डॉलर की रकम खर्च होगी। वर्ष 2019 में 5.8 अरब डॉलर की रकम इस मद में खर्च हुई थी जिसमें 2020 में 8.7 फीसदी की गिरावट आई और कुल खर्च होने वाली रकम का आंकड़ा 5.3 अरब डॉलर हो गया जो 2016 में खर्च हुई रकम के बराबर है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रॉस एडहानोम घेबरेसस का कहना है कि टीबी के जांच, इलाज और बचाव को लेकर खर्च में कटौती इस बीमारी को बढ़ावा दे सकती है, गरीब देश अधिक प्रभावित होंगे।
टीबी का सबसे अधिक खतरा किसे
डब्ल्यूएचओ के अनुसार टीबी के 95 फीसदी मामले विकसित देशों में सामने आते हैं। एचआईवी से संक्रमित मरीजों में टीबी होने की संभावना अधिक रहती है। इसके अलावा रोग प्रतिरोधक तंत्र से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे लोगों को टीबी का जीवाणु तेजी से जकड़ता है। कुपोषित लोग इस जीवाणु के आसान शिकार होते हैं। वर्ष 2019 में 19 लाख कुपोषित लोगों को टीबी हुआ। शराब पीने वाले 7.4 और सिगरेट पीने वाले 7.3 लाख लोग टीबी की चपेट में आए थे।
टीबी से जुडे़ कुछ खास तथ्य:
1. टीबी का मरीज जिसे ड्रग रेजिस्टेंट टीबी होता है उसमें से तीन में से एक मरीज को ही समय पर सही उपचार मिल पाता है।
2. दुनिया के 30 देशों में टीबी के 86 फीसदी मरीज, भारत, चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका में एक तिहाई रोगी।
3. टीबी के मामलों में हर साल औसतन दो फीसदी की गिरावट देखी जा रही है। वर्ष 2015 से 2020 के बीच कुल 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
4. एक करोड़ लोग टीबी की चपेट में आए दुनियाभर में वर्ष 2020 में, इसमें 56 लाख पुरुष और 33 लाख महिलाएं और 11 लाख बच्चे थे।
5. टीबी की बीमारी दुनिया के अभी सभी देशों में है और इसकी चपेट में हर उम्र वर्ग के लोग आ रहे हैं।
(आंकड़े: डब्ल्यूएचओ)
दावा: हजारों साल पहले नर कंकालों में मिला था जीवाणु
पुरातत्तविदों की मानें तो मनुष्यों में टीबी का पहला मामला नौ हजार साल पहले इस्राइल के अतलित यम में पाया गया था। भू-वैज्ञानिकों ने जमीन में दफन मां और बच्चे के कंकालों में टीबी के जीवाणु मिले थे। वहीं भारत में यह बीमारी 3300 साल पहले जबिक चीन में 2300 वर्ष पुरानी मानी जाती है। टीबी को लेकर दुनिया की पहली रिपोर्ट 1893 में न्यूयॉर्क से प्रकाशित हुई थी। सीडीसी ने राष्ट्रीय स्तर पर पहली रिपोर्ट 1953 में प्रकाशित की थी।
महामारी ने खड़ी की नई चुनौती
डब्ल्यूएचओ के अनुसार वर्ष 2000 से 2020 के बीच टीबी के बेहतर जांच और इलाज के बलबूते दुनियाभर में 6.60 करोड़ लोगों का जीवन बचाया जा चुका है। कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद टीबी के रोगियों की मुश्किल बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार 15 साल से कम उम्र के 63 फीसदी किशोरों को समय पर उपचार नहीं मिल सका है। वहीं पांच साल से कम उम्र के 72 फीसदी बच्चों को टीबी से बचाव के लिए जरूरी उपचार नहीं मिला है जो एक बड़ा खतरा है।
देश में 2025 तक टीबी के अंत का लक्ष्य
केंद्र सरकार ने देश से 2025 तक टीबी को पूरी तरह से खत्म करने का लक्ष्य रखा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया विश्व टीबी दिवस के मौके पर विज्ञान भवन में स्टेप-अप टू एंड टीबी का उद्धाटन करेंगे। मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में ऐलान किया था कि देश को 2025 में टीबी मुक्त बनाना है। वहीं संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास लक्ष्य के तहत टीबी को 2030 तक पूरी तरह से खत्म करने का लक्ष्य रखा है।
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