धर्म-अध्यात्म

स्वामी विवेकानंद का सफर, जीवन में मानो तो एक ईश्वर की खोज

Tara Tandi
12 Jan 2021 10:18 AM GMT
स्वामी विवेकानंद का सफर, जीवन में मानो तो एक ईश्वर की खोज
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विवेकानंद के बालक नरेंद्र से स्वामी होने की जीवन यात्रा काफी रोचक और प्रेरणादायक रही है.

जनता से रिश्ता बेवङेस्क| विवेकानंद के बालक नरेंद्र से स्वामी होने की जीवन यात्रा काफी रोचक और प्रेरणादायक रही है. युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद के बारे में हम आप जितना भी जान लें, कम लगता है… और अधिक जानने की इच्छा होती है. वर्ष 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्वधर्म सम्मेलन में स्वामीजी ने जो भाषण दिया, वह काफी प्रसिद्ध हुआ और प्रेरणादायक बन गया.

आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि उनकी शिकागो यात्रा के पीछे महज एक सपना था. एक सपने ने उन्‍हें अमेरिका जाने के लिए प्रेरित किया था. इस सपने में उनके लिए उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस की इच्‍छा शामिल थी.

भजन से जीता था रामकृष्ण परमहंस का दिल

बालक नरेंद्र बचपन से ही मेधावी थे. उस वक्त दक्षिणेश्वर में मां काली के उपासक और प्रख्यात गुरु श्रीरामकृष्ण परमहंस को ईश्वर प्राप्त माना जाता था. विवेकानंद वहां अपने नाना के मकान में रहकर फाइन आर्ट्स की पढ़ाई कर रहे थे. इस दौरान श्रीरामकृष्ण परमहंस उस मोहल्ले में अपने एक भक्त के यहां रुके थे, जहां सत्संग हो रहा था. वहां भजन के लिए नरेंद्र को बुलाया गया था. उनका भजन सुनकर स्वामी रामकृष्ण बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने विवेकानंद से कहा कि वह दक्षिणेश्वर आएं.

परमहंस के सान्निध्य में ईश्वर की खोज

एक बार माघ की सर्दी में विवेकानंद ईश्वर के बारे में चिंतन कर रहे थे. पिता देवेंद्रनाथ ठाकुर गंगा नदी में नाव पर बैठकर साधना करते थे, तो उन्हीं के पास जाकर विवेकानंद ने पूछा, क्या आपने ईश्वर को देखा है? महर्षि उनके सवाल पर मौन रहे. विवेकानंद थोड़ा विचलित हो गए. उन्हें लगा, जब देवेंद्रनाथ ठाकुर जैसे महर्षि को ईश्वर का साक्षात्कार नहीं हुआ तो उन्हें कैसे होगा?

अगले दिन विवेकानंद को उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की याद आई, जिनके बारे में प्रसिद्ध था कि उन्होंने मां काली समेत कई देवी-देवताओं का साक्षात्कार किया है. विवेकानंद उनसे मिलने दक्षिणेश्वर पहुंचे. उनसे भी विवेकानंद ने यही सवाल पूछा कि क्या उन्होंने कभी ईश्वर को देखा है? इस पर परमहंस ने जवाब दिया, 'हां, देखा है और तुम्हे भी दिखा सकता हूं'. इसके बाद 1881 से 1886 तक विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस के शिष्य के रूप में दक्षिणेश्वर में साधना की.

एक सपना बना था अमेरिका धर्म सम्मेलन की वजह

विवेकानंद ने एक दिन सपने में देखा कि उनके दिवंगत गुरू रामकृष्ण परमहंस समुद्र पार जा रहे हैं और उन्हें अपने पीछे आने का इशारा कर रहे हैं. नींद खुली तो विवेकानंद परेशान हो गए. उन्होंने गुरू मां शारदा देवी से मार्ग दर्शन मांगा तो उनसे इंतजार करने को कहा गया. तीन दिन बाद शारदा देवी ने भी सपने में देखा कि रामकृष्ण गंगा पर चलते हुए कहीं जा रहे हैं और ओझल हो गए. इसके बाद शारदा देवी ने स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई से कहा कि वह उन्हें विदेश जाने को कहें, यही उनके गुरू की इच्छा है. इसके बाद ही विवेकानंद ने धर्म सम्मेलन में जाने का फैसला लिया.

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