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स्‍टडी: बच्‍चे के जीवन में स्‍कूल भूमिका परिवार से भी बड़ी है

Teja
11 July 2022 8:30 AM GMT
स्‍टडी: बच्‍चे के जीवन में स्‍कूल भूमिका परिवार से भी बड़ी है
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आपका बच्‍चा पढ़ाई में कैसा परफॉर्म कर रहा है, दोस्‍तों के साथ कितना सहज है और घुल-मिल रहा है, उसका मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कैसा है, वो कितना खुश और नई चीजें सीखने के प्रति जिज्ञासु है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आपका बच्‍चा पढ़ाई में कैसा परफॉर्म कर रहा है, दोस्‍तों के साथ कितना सहज है और घुल-मिल रहा है, उसका मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कैसा है, वो कितना खुश और नई चीजें सीखने के प्रति जिज्ञासु है, ये सारी बातें इस पर निर्भर करती हैं कि उसके स्‍कूल का वातावरण कैसा है. स्‍कूल बच्‍चे को कितना प्‍यार, सुरक्षा और भरोसे का एहसास दिला पा रहा है.

ये कहना है यूके में हुई एक स्‍टडी का. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर किए गए इस माई रेजिलिएंस इन एडोलसेंस (MYRIAD) अध्‍ययन में यूके के 85 स्‍कूलों के 11 से 14 आयु वर्ष के 85000 छात्र और छात्राओं के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, स्‍कूल में उनके व्‍यवहार, पढ़ाई में उनके परफॉर्मेंस आदि का अध्‍ययन किया गया.
स्‍टडी में शामिल रिसर्चरों ने पाया कि जिन स्‍कूलों में बच्‍चों को सुरक्षा और सम्‍मान का वातावरण मिल रहा था, टीचर्स के साथ उनका कनेक्‍ट अच्‍छा था, उस स्‍कूल के बच्‍चों का ओवर ऑल परफॉर्मेंस बेहतर था. हालांकि एक स्‍कूल में पढ़ने वाले सारे बच्‍चे एक जैसे नहीं होते. वो अलग-अलग तरह की पारिवारिक पृष्‍ठभूमि से आते हैं. कुछ तो बहुत वॉयलेंट और अब्‍यूजिव परिवारों से भी होते हैं. कुछ बच्‍चों के घरों का नकारात्‍मक माहौल उनको पहले ही काफी डैमेज कर चुका होता है.
इस स्‍टडी में इस बातों को भी ध्‍यान में रखते हुए हर इंडीविजुअल बच्‍चे के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य और पढ़ाई में उसके प्रदर्शन का अलग से मूल्‍यांकन किया गया. शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि स्‍कूल का माहौल सकारात्‍मक है, शिक्षकों का व्‍यवहार बच्‍चों के प्रति प्रेम और सम्‍मान से भरा है तो घर से मिले नकारात्‍मक माहौल के असर के बावजूद बच्‍चा बेहतर प्रदर्शन करता है. यानि एक नकारात्‍मक स्रोत से मिल रहे बुरे प्रभावों को दूसरी जगह यानि स्‍कूल का बेहतर माहौल काफी हद तक ठीक कर सकता है.
वॉयलेंट और अब्‍यूसिव परिवरों से आने वाले बच्‍चों को यदि स्‍कूल में भी सकारात्‍मक माहौल नहीं मिलता तो वो और भी ज्‍यादा अवसाद की स्थिति में चले जाते हैं. पढ़ाई में उनका परफॉर्मेंस खराब होता है और वो हिंसक भी हो सकते हैं.
इस स्‍टडी के बारे में बात करते हुए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में चाइल्‍ड साइकिएट्री के प्रोफेसर डॉ. टैमसिन फोर्ड कहते हैं कि परिवार, समाज और स्‍कूल आपस में मिलकर एक सीरीज या सिलसिले की तरह काम करते हैं. अगर एक भी कड़ी कमजोर हो तो उसका दूसरा दूसरी कड़ी पर पड़ता है. लेकिन यदि एक भी कड़ी स्‍वस्‍थ और मजबूत हो तो बाकी नकारात्‍मक प्रभावों को कम करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है. हमने इस स्‍टडी में पाया कि स्‍कूलों का बच्‍चों के दिमाग और जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है. इतना गहरा कि एक अच्‍छा, सुरक्षित स्‍कूल बच्‍चे के जीवन को या तो संवार देता है या उसे पूरी तरह भविष्‍य के लिए नष्‍ट कर देता है


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