लाइफ स्टाइल

कुछ ऐसा होता है नए ऑफ़िस में पहला दिन

Kajal Dubey
3 May 2023 1:11 PM GMT
कुछ ऐसा होता है नए ऑफ़िस में पहला दिन
x
आपकी पहली नौकरी हो या दसवीं, आप इस बात से सहमत होंगे कि नए ऑफ़िस का पहला दिन बहुत स्पेशल होता है. नई जगह पर काम करने को लेकर हम जितने एक्साइटेड होते हैं, अंदर से उतना ही नर्वस फ़ील कर रहे होते हैं. आप ख़ुद को स्पेशल महसूस करते हैं, क्योंकि इस जगह तक पहुंचने के लिए आपने कई साथी कैंडिटेड्स को पीछे छोड़ा होता है. आप कइयों में से बेहतर चुने गए होते हैं. आइए देखते हैं कैसा ‌बीतता है नए ऑफ़िस का पहला दिन.
वाव! मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि मैंने पूरे इंटरव्यू प्रोसेस के दौरान ख़ुद को वह साबित कर दिया, जो मैं बिल्कुल भी नहीं हूं. ख़ैर, ऐसा यह नौकरी पाने के लिए ज़रूरी था (फिर एक शैतानी मुस्कान). जो भी हो, अब मेरी तंगहाली के दिन जानेवाले हैं!
मुझे कैसे पता चलेगा कि लंच टाइम कब होता है? शायद तब, जब मेरे पेट में दौड़ रहे चूहों का आतंक चरम पर पहुंच जाएगा. पर अकेले अपनी डेस्क पर बैठकर खाना अच्छा आइडिया तो नहीं है. मुझे जल्दी से जल्दी कुछ अच्छे दोस्त बनाने होंगे. पर नए दोस्त जल्दी बनाने का तरीक़ा क्या कोई मुझे सुझा सकता है?
किसी से दोस्ती करने से पहले मुझे किसी से यह पूछना होगा कि वॉशरूम कहां है. भूख को एक बार कंट्रोल किया जा सकता है, पर जो पहले से ही पेट में उमड़ रहा है, उसे संभाल पाना अब मेरे बस में नहीं है. क्या करूं, किसी से पूछूं या ख़ुद ही वॉशरूम का रास्ता तलाशूं? जो भी करना है, अब जल्द से जल्द करना है.
आज तक यह बात मेरी समझ में नहीं आई, आख़िर बड़े लोगों को इतने सारे पासवर्ड क्यों याद रखने होते हैं? कौन-सी कॉफ़ी लूं, मेरी यह उलझन सुलझी नहीं थी कि यह आईटी वाला बंदा आकर सिर पर बैठ गया. अब मुझे यूज़र नेम और पासवर्ड के चक्कर में उलझा रहा है.
मेरे सुपरवाइज़र ने पहला काम पकड़ाया है. मेरा ख़्याल था कि पहले दिन नए एम्प्लॉई के साथ नरमी से पेश आया जाता है, पर इन लोगों ने तो मानो इंसानियत की पढ़ाई की ही नहीं है. जो काम दिया गया है, उसका दूर-दूर से कोई अंदाज़ा नहीं था. पर अब करना ही होगा. इंटरव्यू राउंड में तो मैंने ही बड़े-बड़े दावे किए थे.
मैं क्या कर रही हूं/कर रहा हूं, मुझे कोई आइडिया नहीं है, पर चेहरे पर ज़बर्दस्ती की यह मुस्कान चिपकाए रखना मजबूरी है. आख़िर कौन चाहेगा कि ऑफ़िस के लोगों को पता चले कि वह नर्वस ही नहीं, बेहद नर्वस है. काश यह समय पंख लगाकर उड़ जाए. अच्छे दिनों की तरह. पर आज घड़ी कुछ ज़्यादा ही स्लो चल रही है.
वैसे मेरे पास करने के लिए इतना भी कुछ ख़ास नहीं है. पर मैंने कहीं पढ़ा था या सुना था कि जितना बिज़ी हों न, उससे कहीं ज़्यादा दिखाने की को‌शिश करनी चाहिए. वर्ना तो लोग बैठे ही हैं आपको काम के बोझ से दबाने के लिए. ख़ुद को पहले से ही दबा-कुचला साबित करके कम से कम लोगों की सहानुभूति तो पाई ही जा सकती है.
मेरे पड़ोसी अच्छे इंसान मालूम पड़ते हैं. क्यों न उनसे दोस्ती की जाए. आख़िरकार इन्हीं पड़ोसियों के साथ दिन के ज़्यादातर घंटे बिताने होंगे. पर क्या पहली नज़र में जैसे दिख रहे हैं, वास्तव में ये लोग वैसे ही हैं. यह तो बाद की बात है, चलो पहल करके देखते हैं.
उफ़्फ़, मेरा पहला वार ही ख़ाली चला गया. मेरे द्वारा क्रैक किया जोक मेरे अलावा किसी और के पल्ले नहीं पड़ा. या तो मैं बेवकूफ़ हूं या ऑफ़िस के पुराने एम्प्लॉई कुछ ज़्यादा ही रूड हैं. ख़ैर, मुझे सबक मिल चुका है. अगली बार जोक क्रैक करने की ग़लती नहीं करनी है.
हे भगवान! किसी तरह ऑफ़िस का पहला दिन बीत गया! क्या यह इतना बुरा था या इतना भी नहीं? मेरे पास इसका एनैलसिस करने का समय नहीं है. मुझे जल्द से जल्द यहां से निकलकर घर पहुंचना है.
Next Story