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प्राचीन काल से ही प्लास्टिक सर्ज़री की जड़े भारत में है, क्या आपको पता था?

Gulabi
18 March 2021 5:04 PM GMT
प्राचीन काल से ही प्लास्टिक सर्ज़री की जड़े भारत में है, क्या आपको पता था?
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दोस्तों अगर आप भी प्लास्टिक सर्जरी या फिर ह्यूमन बॉडी ऑपरेशन से जुड़ी हुई तकनीक को पश्चिमी देशों की देन समझते

दोस्तों अगर आप भी प्लास्टिक सर्जरी या फिर ह्यूमन बॉडी ऑपरेशन से जुड़ी हुई तकनीक को पश्चिमी देशों की देन समझते हैं तो इस बारे में आपका मानना पूरी तरह सच नहीं है, क्योंकि इसकी शुरुआत 500 ईसा पूर्व पहले ही भारत में हो चुकी है जिसे आज हम ऑपरेशन और सर्जरी के नाम से जानते हैं उसे उस काल में शल्य चिकित्सा कहा जाता था।

आज का यह आर्टिकल काफी इंटरेस्टिंग होने जा रहा है आज के इस आर्टिकल में हम चर्चा करेंगे शल्य चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के जनक शुश्रुत से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जो शायद ही आपको पहले कभी पता हो।

आज के जमाने में है जिस तकनीक को हम सर्जरी और ऑपरेशन के नाम से जानते हैं उसे कई साल पहले भारत में शल्य चिकित्सा कहा जाता था दोस्तों शल्य चिकित्सा में ठीक उसी प्रकार से इलाज किया जाता था जैसा आज के समय में ऑपरेशन किए जाते हैं।

दोस्तों भारत में ही कई वर्षों पहले शल्य चिकित्सा का जन्म हुआ और इसी शल्य चिकित्सा का जनक महर्षि शुश्रुत को कहा जाता है महर्षि सुश्रुत का जन्म 600 ईसा पूर्व काशी में हुआ था जिसे आज हम बनारस के नाम से जानते हैं। बताया जाता है कि सुश्रुत को देवताओं के चिकित्सक धनवंतरी का शिष्य भी माना जाता है।

महर्षि सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा के अपने संपूर्ण ज्ञान का संस्कृत भाषा में विस्तार किया जिसे सुश्रुत संहिता के नाम से जाना जाता है।

सुश्रुत संहिता में बताया गया है कि सुश्रुत अपने छात्रों को गंगा में बहते हुए लावारिश शवों को लाने के लिए कहते थे और उन सब पर अपने छात्रों द्वारा अनुसंधान करवाते थे और इस तरह से सुश्रुत ने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा पद्धति सिखाई और इस तरह से पूरे भारतवर्ष में शल्य चिकित्सा पद्धति का विस्तार हुआ।सुश्रुत में 300 प्रकार की ऑपरेशन क्रियाओं की खोज की थी जिसका विवरण भी सुश्रुत संहिता में मिलता है इसके अलावा कॉस्मेटिक सर्जरी और मोतियाबिंद का इलाज का भी विस्तार पूर्वक वर्णन सुश्रुत संहिता में बताया गया है।

सुश्रुत को एनेस्थीसिया का पितामह भी कहा जाता है सर्जरी करते समय होने वाले दर्द को कम करने के लिए सुश्रुत मद (एल्कोहल) और कहीं औषधियों का सहारा लेते थे जिसे आज लोग एनेस्थीसिया कहते हैं।

सुश्रुत संहिता में उपचार के 8 प्रकार बताए गए हैं जैसे -भेदन कर्म,छेदन कर्म, लेखन कर्म, वेदन कर्म, अहर्म कर्म,एष्ण कर्म, विश्रत्य कर्म, सीवन कर्म ।
जिस प्रकार भेदन कर्म में शरीर के किसी हिस्से में चीरा लगाकर इलाज किया जाता था, वैसे ही वेदन कर्म द्वारा सुई से पेट और फेफड़ों में भरें पानी को बाहर निकाला जाता था।

आज के समय में डॉक्टरों द्वारा जिन औजारों का यूज़ ऑपरेशन के लिए किया जाता है वह औजार कई वर्षों पहले भारतवर्ष में महर्षि सुश्रुत द्वारा निर्मित कर लिए गए थे।
सुचित्र चिकित्सा के दौरान ज़िन औजारों का उपयोग करते थे वह पक्षियों की तरह दिखते थे जैसे पक्षियों की चोंच और पंज़ो की तरह दिखने वाले औज़ार , जिन हजारों का प्रयोग चिकित्सा के दौरान पकड़ बनाने और अंग भागो को पृथक करने के काम में किया जाता था, और इन औजारों के नाम भी पक्षियों और जानवरों के नाम के जैसे हैं जैसे कौवे की चोच के आकार का औजार काक मुख,शेर के मुख जैसा दिखने वाला औज़ार सिंह मुख, इसके अलावा व्याघ्र मुख, गिद्ध मुख आदि औज़ार प्रमुख थे जिनका प्रयोग शल्य चिकित्सा के दौरान किया जाता था।

सुश्रुत संहिता में हड्डी तथा मांस को काटने के लिए 20 प्रकार के यंत्रों का विवरण मिलता है इसके अलावा दो प्रकार के ताल यंत्रों का विवरण भी बनता है जिनका प्रयोग उस समय नाक और कान के चिकित्सा उपचार के लिए किया जाता था।

इसके अलावा सुश्रुत संहिता में 20 प्रकार के नाल युक्त नाड़ी यंत्र और 28 प्रकार के सिलाई के औजार जो मांस को सिलने और अन्य चिकित्सा प्रयोग में इस्तेमाल किए जाते थे। इसके अलावा सुश्रुत संहिता में 25 प्रकार के अन्य यंत्रों का भी विवरण मिलता है जिनका उपयोग तरह-तरह के सभी कार्यों में किया जाता था।

सुश्रुत संहिता में प्लास्टिक सर्जरी, कान तथा नाक की सर्जरी का भी विवरण मिलता है इसके अलावा सुश्रुत संहिता में बताया गया है कि उस समय में सुश्रुत गले की सर्जरी के साथ ही कटे हुए धड़ को जोड़ने में भी सक्षम थे, जो अभी तक की सबसे हैरान करने वाली बात है कटे हुए धड़ को जोड़ना ये कोई आम बात तो नहीं लेकिन किसी ज़माने में भारतवर्ष में यह संभव था।

सुश्रुत अपने चिकित्सा अनुसंधान के प्रयोग के लिए लावारिस लाशों की तलाश करते फिर उन लाशो में कई समय तक प्रयोग करते रहते थे और यही नहीं महर्षि सुश्रुत अपने शिष्यों को लाश के समक्ष बैठाकर शरीर की संरचना के बारे में बताया करते थे।

दोस्तों सुश्रुत संहिता में नाक की सर्जरी का भी जिक्र मिलता है उस समय में जिन अपराधियों को दंड के तौर पर नाक काट दी जाती थी उसके बाद वह अपराधी सुश्रुत के पास आते थे और फिर महर्षि सुश्रुत नाक जोड़ने की सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम देते थे उस समय में नाक जोड़ने के लिए सुश्रुत द्वारा गाल और टांग के मांस को काटा जाता था ताकि वह मांस नाक में लगाया जा सके।

जो आगे हम आपको बताने जा रहे हैं उन्हें सुनकर आप को अंग्रेजों पर बहुत ज्यादा गुस्सा आने वाला है, 1792 में एक व्यक्ति भारत आया जिसका नाम था थॉमस क्रूज़ ।
भारत घूमते-घूमते वह व्यक्ति महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में पहुंचा जब वहां उसने देखा कि एक व्यक्ति शल्य क्रिया द्वारा युद्ध में के कटे हुए सैनिकों के अंगों को जोड़ रहा है यह सब देखकर उसके होश उड़ गए । इसके बाद थॉमस क्रूज नामक वह व्यक्ति अपनी टीम के साथ उस वैद्य के पास कुछ समय के लिए रुक जाता है और उस वैद्य से Rhinoplasty सर्जरी सीखने लगता है। उसके कुछ समय बाद उसने राइनोप्लास्टी सर्जरी का लंदन में जाकर हॉस्पिटल खोल दिया ।

1794 में लंदन के जेंटलमैन मैगजीन में पहले पन्ने पर एक आर्टिकल छपा था जिसमें यह साफ-साफ लिखा था कि हम भी अब भारत की तरह ही राइनोप्लास्टी सर्जरी कर सकते हैं।

1832 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में एक सर्वे कराया इस सर्वे में पता चलता है कि भारत में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं जो बीमार है दोस्तों यह बात वाकई में चौंकाने वाली है लेकिन यह हो भी क्यों ना जिस देश में कटे हुए हाथ पैरों को जोड़ दिया जाता है वहां पर कोई बीमार कैसे रह सकता है।
दोस्तों इससे यह स्पष्ट होता है कि 1792 का भारतीय चिकित्सा विज्ञान जब इतना शिक्षण था तो महर्षि सुश्रुत के समय में कितना सक्षम होगा।लेकिन भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद अंग्रेजी संसद द्वारा भारत में नए कानून लागू कर दिया जाते हैं जिसमें यह साफ-साफ बता दिया जाता है कि जिन डॉक्टरों के पास डिग्री होगी उन्हीं का बोलबाला होगा, जिस कारण हमारे देश के चिकित्सकों का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया और अंग्रेजी चिकित्सकों का प्रभाव हमारे देश में बढ़ता गया।
उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था और सारे लोग उस समय अंग्रेजी सत्ता से आजादी चाहते थे जिस कारण भारतीय शल्य चिकित्सा को आगे बढ़ावा नहीं मिल पाया,और इस तरह भारतीय चिकित्सा विज्ञान आज पश्चिमी देशों द्वारा पूरी दुनिया में फैल चुका है जिसे आज हम मॉर्डन ट्रीटमेंट के नाम से जानते हैं।

दोस्तों आज के समय में भी हमारे देश में बहुत सारी जगह ऐसी हैं जहां पर हड्डियों को जोड़ने का इलाज ठीक उसी तरह से किया जाता है जैसा कि सुश्रुत संहिता में बताया गया है ।


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