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शनि क्रोध से हैं पीड़ित, तो करें ये संपूर्ण पाठ

Tara Tandi
29 April 2023 11:39 AM GMT
शनि क्रोध से हैं पीड़ित, तो करें ये संपूर्ण पाठ
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हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में शनि को कर्मों का दाता माना गया है। शनिदेव जातक को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते है। अच्छे कर्म करने वालों को शनिदेव सुख समृद्धि व सफलता प्रदान करते है। लेकिन बुरे कर्म करने वालों को जीवन में संकट व परेशानियों का सामना करना पड़ता है ऐसे में हर कोई शनि कृपा पाना चाहते है।

इसके लिए लोग शनिवार के दिन भगवान की विधिवत पूजा आदि करते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से शनि कृपा बरसती है लेकिन इसके साथ ही अगर आप शनि क्रोध से पीड़ित है या फिर जीवन में परेशानियां कम नहीं हो रही है तो आज शनिवार के दिन आप शनिवज्रपंजरकवचम् का संपूर्ण पाठ कर सकते है। ये चमत्कारी पाठ शनि पीड़ा से मुक्ति दिलाता है और सुख में वृद्धि करता है।
शनिवज्रपंजरकवचम्—

श्री गणेशाय नमः
विनियोगः
ॐ अस्य श्रीशनैश्चरवज्रपञ्जर कवचस्य कश्यप ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्री शनैश्चर देवता,
श्रीशनैश्चर प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ऋष्यादि न्यासः
श्रीकश्यप ऋषयेनमः शिरसि ।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीशनैश्चर देवतायै नमः हृदि ।
श्रीशनैश्चरप्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥
ध्यानम्
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् ।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशान्तः ॥
ब्रह्मा उवाच
शृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दनः ।
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कणौं यमानुजः ॥
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः ॥
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु-शुभप्रदः ।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा ॥
नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा ।
ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥
पादौ मन्दगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः ।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः ॥
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः ।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥
व्यय-जन्म-द्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा ।
कलत्रस्थो गतो वाऽपि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।
द्वादशाऽष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा ।
जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥
॥ इति श्री ब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनिवज्रपंजरकवचम् सम्पूर्णम् ॥



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