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लाइफ स्टाइल
वैज्ञानिक ने बताई बैगन की खेती से मोटी कमाई करने का तरीका
Rani Sahu
30 Aug 2021 10:09 AM GMT
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बैंगन को इसके विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए सब्जी के रूप में व्यापक रूप से सेवन किया जाता है
बैंगन को इसके विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए सब्जी के रूप में व्यापक रूप से सेवन किया जाता है. बैंगन अत्यधिक रेशेदार होता है, इसमें एंटीऑक्सिडेंट, पोटेशियम, विटामिन बी -6 और फ्लेवोनोइड जैसे फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं, जो कैंसर और हृदय रोग को रोकने में मदद करते हैं. यह कम कैलोरी के साथ वजन घटाने में भी मदद करता है. यह मस्तिष्क के लिए अच्छा बूस्टर है और हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल को कम करके अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मदद करता है.
भारत में कहां कहां होती है बैंगन की खेती
बैंगन भारत का मूल निवासी है, इसलिए इसकी खेती कई राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है और सभी घरों में इसका सेवन किया जाता है.
भारत में प्रमुख बैंगन उत्पादक राज्य उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र हैं. तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल राज्यों में इसकी खेती पूरे वर्ष की जाती है. कुल बैंगन उत्पादन का लगभग 20 -25 % उत्पादन केवल पश्चिम बंगाल में होता है.
बैंगन की खेती के बारे में जानिए
डाक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व विद्यालय पूसा के कृषि वैज्ञानिक डाक्टर एस के सिंह बैगन की खेती से करें मोटी कमाई! वैज्ञानिक ने दी पूरी जानकारी ने टीवी9 डिजिटल से बताया कि बैंगन की खेती को 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के मध्य तापमान में सफलतापूर्वक की जा सकती है.
यह बहुत ठंडे तापमान के प्रति अपनी प्रतिकूलता को दर्शाता है और पाले के प्रति अति संवेदनशील है. बारिश के मौसम में भी यह अच्छी उपज देने में सक्षम है.
बैंगन की खेती सभी प्रकार के मिट्टी में सफलतापूर्वक किया जा सकता है. बैंगन की अधिकतम उत्पादकता के लिए अच्छे जलनिकास युक्त बलुई दोमट मिट्टी को पसंद किया जाता है. इसके लिए आदर्श पीएच 5.5 से 6.0 के बीच रहता है.
खेत की तैयारी
बैंगन को उगाने के लिए उचित जल निकासी बहुत जरूरी है और यह सुनिश्चित करना है कि मिट्टी 4 से 6 बार जुताई करके अच्छी जुताई के लिए तैयार हो.
बेहतर उत्पादकता के लिए बीज बोने से पहले और अंतिम जुताई के बाद खूब अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद को मिट्टी में मिला देना चाहिए. अन्य जैविक खाद जैसे सड़ी हुई कम्पोस्ट को भी मिट्टी में मिलाया जा सकता है.
डाक्टर सिंह के मुताबिक, बुवाई का समय और मौसम काफी हद तक कृषि जलवायु परिस्थितियों और खेती के क्षेत्रों पर निर्भर करता है.
उत्तर भारत में बुवाई के तीन मौसम हैं जो शरद ऋतु की फसलों के लिए जून-जुलाई-अगस्त , वसंत के लिए नवंबर और गर्मियों की फसल के लिए अप्रैल हैं. वैसे तो दक्षिण भारत में बैंगन की खेती पूरे साल की जा सकती है, लेकिन मुख्य बुवाई जुलाई से अगस्त के दौरान की जा सकती है.
जलजमाव से संबंधित किसी भी समस्या से बचने के लिए, बैंगन के बीजों को नर्सरी बेड में बोया जाता है और रोपाई को खेत में प्रत्यारोपित किया जाता है.
सामान्यत: ७.२ × १.२ मीटर और १०-१५ सेंटीमीटर की ऊंचाई के उठे हुए नर्सरी बेड तैयार किए जाते हैं और बेहतर खेती के संचालन के लिए दो बेड के बीच लगभग ७० सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है.
फफूंद रोगों से बचाव के लिए क्यारियों को मेटलैक्सिल + मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक(रिडोमिल गोल्ड) की 15-20 ग्राम/10 लीटर पानी के घोल से खूब अच्छी तरह से भीगा देते है जिससे नर्सरी में पौधों के गलने की बीमारी में भरी कमी आती है .
बीज की मात्रा बीज के प्रकार के अनुसार भिन्न हो सकती है, जहां शुद्ध लाइन किस्मों के लिए लगभग 500 – 750 ग्राम / हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है, वही संकर किस्मों (ह्य्ब्रिड्स) के लिए 250 ग्राम / हेक्टेयर की आवश्यकता होती है, क्योकि संकर प्रजितियों में अंकुरण 90-95% होता है। बीज की मात्रा बुवाई के प्रकार पर भी निर्भर करती है. बीज को जब प्रो-ट्रे में लगाना होता है तब मात्र 140 से 200 ग्राम बीज की आवश्कता होती है , नर्सरी बेड के लिए 500 ग्राम बीज की आवश्कता होती है.
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