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लाइफ स्टाइल
बच्चो को बार-बार टोकने से बच्चे होंगे कमजोर, बदलें आदत
Sanjna Verma
19 Feb 2024 12:17 PM GMT
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आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में जब बच्चों को अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेने से लेकर अच्छी नौकरी पाने का बहुत अधिक दबाव रहता है तो ऐसे में अभिभावक का परेशान होना लाजमी है। वहीं, दूसरी ओर स्मार्ट फोन से लेकर सोशल मीडिया तक ऐसी कई चीजें हैं, जो बच्चों के ध्यान भटकाने की वजह बन सकते हैं। इस वजह से अभिभावक और भी अधिक चिंतित होते हैं। अमूमन इस स्थिति में वे बच्चों की अच्छी प्रदर्शन के लिए उन पर दबाव बनाते हैं, उन्हें डांटते हैं या फिर बार-बार टोकते हैं। इतना ही नहीं, वे बच्चों को लगातार लंबे समय तक पढ़ाई करने, अपने गैजेट्स का इस्तेमाल ना करने या फिर खेलने के लिए बाहर जाने या अपने दोस्तों से मिलने से मना करते हैं। हो सकता है कि आप बतौर अभिभावक खुद को सही ठहराते हों, लेकिन वास्तव में इससे बच्चे पर बहुत अधिक नकारात्मक असर हो सकता है।
बच्चों व पैरेंट्स के बीच आती है दूरी अगर आप बच्चों को अच्छा प्रदर्शन करने के लिए बार-बार उन पर दबाव बनाते हैं तो यह बिल्कुल भी कारगर तरीका नहीं है। ऐसा करने से अभिभावक और बच्चों के बीच एक बड़ी दरार पैदा हो सकती है। वे अक्सर अपने पैरेंट्स के साथ बैठने और समय बिताने से बचते हैं। उन्हें लगता है कि उनके पैरेंट्स फिर से यही बात करेंगे कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। इस तरह की बातचीत से बच्चे में चिड़चिड़ापन, डर या शॄमदगी की भावना आ सकती है।
डगमगा जाता है आत्मविश्वास अक्सर पैरेंट्स बच्चे की परफार्मंेस की तुलना दूसरों से करते हैं और उन्हें फिर से टोकते हैं। हालांकि, ऐसा करने से उनके आत्मविश्वास पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इतना ही नहीं, जब पैरेंट अपने बच्चे के लिए सब कुछ खुद करना चाहते हैं तो ऐसे में उनके लिए अपनी काबिलियत और क्षमताओं को पहचानने में परेशानी होती है। जिसके कारण उनके भीतर का आत्मविश्वास काफी कमजोर हो जाता है। यहां तक कि वे जीवन में आने वाली परेशानियों का सामना भी नहीं कर पाते हैं।
अपनाएं यह उपाय यह सच है कि बच्चे के पहले शिक्षक उसके माता-पिता ही होते हैं। इतना ही नहीं, अपने बच्चों को सही निर्णय लेने के लिए पैरेंट्स को उनका मार्गदर्शन करना चाहिए। लेकिन इसके लिए यह भी जरूरी है कि आप सही साधन का चयन करें। उन्हें बार-बार कमियां गिनाने, डांटने या टोकने की जगह उनसे बात करने के लिए समय निकालें। यह समझने का प्रयास करें कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है। कभी भी बच्चे को यह ना बताएं कि उन्हें क्या करना है। ऐसा करके आप उनकी समस्याओं को चुटकी में हल कर देते हैं। बल्कि उनसे यह जानने का प्रयास करें कि वह क्या करना चाहते हैं। इसी बातचीत में आप अपनी राय भी रख सकते हैं।
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Sanjna Verma
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