धर्म-अध्यात्म

होलिका दहन के इतिहास को जानने के लिए पढ़े ये पौराणिक कथा

Kajal Dubey
16 March 2022 3:21 AM GMT
होलिका दहन के इतिहास को जानने के लिए पढ़े ये पौराणिक कथा
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होलिका दहन की कथा

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। होली (Holi) से पूर्व रात्रि में होलिका दहन करते हैं. होलिका दहन हर साल फाल्गुन पूर्णिमा की रात में किया जाता है. उसके अगले दिन सुबह रंगवाली होली खेलते हैं. होलिका दहन क्यों करते हैं? होलिका भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर क्यों मारना चाहती थी? ये ऐसे सवाल हैं, जो सभी के मन में आते हैं. होलिका दहन के इतिहास (History Of Holika Dahan) को जानने के लिए होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा (Story Of Holika And Bhakt Prahlad) जाननी जरूरी है. आइए जानते हैं होलिका दहन की पौराणिक कथा के बारे में.

होलिका दहन कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने अपने कठोर तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान मांगा. उसने कहा कि उसे कोई भी मनुष्य, पुरुष या महिला, पशु या पक्षी, दिन या रात, घर या बाहर कहीं भी, अस्त्र-शस्त्र से नहीं मार सकता है. ब्रह्मा जी से वरदान पाकर वह स्वयं को भगवान समझने लगा. अपने राज्य में उसने सभी प्रजा से स्वयं की पूजा करने का आदेश दे दिया.
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद श्रीहरि विष्णु का भक्त था. वह भगवान विष्णु की भक्ति में डूबा रहता था. हिरण्यकश्यप ने उसे बार बार विष्णु भक्ति छोड़ने को कहा, लेकिन भक्त प्रह्लाद कहां मानने वाले​ थे. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु समझता था. प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ दें, इसके लिए हिरण्यकश्यप ने उनको कभी पहाड़ से नीचे फेंका, कभी नदी में डूबो कर मारना चाहा, तो कभी हाथी के पैरों तले कुचलने की कोशिश की, श्रीहरि की कृपा से भक्त प्रह्लाद बार बार बच जाते.
इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को जलती आग में लेकर बैठने के लिए मनाया. होलिका को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि आग से वह सुरक्षित रहेगी. आग उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती है. कहा जाता है कि उसके पास एक चादर थी, जिसे ओढ़ लेने से वह जलती नहीं थी.
फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गई, होलिका ने वह चादर ओढ़ लिया, ताकि आग लगाई जाए तो वह बच जाए और प्रह्लाद जलकर मर जाएं. चिता में आग लगाई गई, तब भगवान विष्णु की कृपा से उस चादर से प्रह्लाद सुरक्षित हो गए और होलिका जलकर मर गई.
इस घटना के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को घर के चौखट के बीच अपने तेज नाखूनों से मार डाला. होलिका दहन की घटना को असत्य पर सत्य की जीत के रुप में मनाते हैं. यह घटना फाल्गुन पूर्णिमा को हुई थी, इसलिए हर साल इस ​तिथि को होलिका दहन करते हैं. उसके अगले दिन होली खेली जाती है.


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