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महारानी की दिलचस्प स्टोरी: चमक-धमक से हैं कोसों दूर, बस से करतीं है सफर

jantaserishta.com
28 Jun 2021 8:12 AM GMT
महारानी की दिलचस्प स्टोरी: चमक-धमक से हैं कोसों दूर, बस से करतीं है सफर
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वांकानेर के शाही परिवार में पैदा हुई राधिकाराजे ने बड़ौदा के महाराजा से शादी की थी. ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे को दिए इंटरव्यू में राधिकाराजे ने कहा कि वो इस धारणा को नहीं मानती कि उनका जीवन किसी भी मायने में बहुत अलग रहा है. राधिकाराजे के पिता वांकानेर के महाराजकुमार डॉक्टर रंजीत सिंह जी थे. रंजीत सिंह जी इस शाही परिवार के पहले ऐसे शख्स थे जो राजघराने का खिताब छोड़कर आईएएस अधिकारी बने थे.

राधिकाराजे ने बताया, '1984 में, जब भोपाल गैस त्रासदी हुई, उस समय मेरे पिता वहां कमिश्नर के रूप में तैनात थे. उस समय मेरी उम्र 6 साल थी. हालांकि मुझे अभी भी याद है कि मेरे पिता पूरी निडरता के साथ अपनी ड्यूटी करने के साथ लोगों की मदद भी कर रहे थे. उस रात मैंने पहली चीज ये सीखी कि आप बिना उंगली उठाए चीजों के ठीक होने की उम्मीद नहीं कर सकते. ये एक ऐसी चीज थी जो मैंने अपनी पिता से बड़े होने के दौरान सीखी.'
इस घटना के कुछ सालों बाद राधिकाराजे का परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया. महारानी राधिकाराजे अपनी जिंदगी को बहुत ही साधारण बताती हैं. वो कहती हैं, 'मैं डीटीसी बस में स्कूल जाती थी और इसका सारा श्रेय मेरी मां को जाता है. वो अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने में यकीन रखती थी.'
राधिकाराजे ने कहा, 'हम लोग बहुत सामान्य जिंदगी जीते थे इसलिए जब मैं गर्मियों की छुट्टियों के दौरान वांकानेर जाती थी तो वहां लोगों से मिलने वाला आदर-सत्कार मुझे बहुत अच्छा लगता था. राधिकाराजे कहती हैं कि उन्हें शुरू से अपने पैरों पर खड़े होने की इच्छा थी. इतिहास में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी.'
राधिकाराजे ने कहा, '20 साल की उम्र में मुझे इंडियन एक्सप्रेस में बतौर लेखिका नौकरी मिली. इसके साथ ही साथ मैंने अपनी मास्टर डिग्री भी हासिल की. मैं अपने परिवार में पहली ऐसी महिला थी जो बाहर नौकरी के लिए जाती थी. मेरे ज्यादातर चचेरे भाइयों की शादी 21 साल की उम्र में हो गई थी.'
राधिकाराजे ने तीन साल तक एक पत्रकार के रूप में काम किया. इसके बाद उनके माता-पिता ने उनके लिए दूल्हा ढूंढना शुरू कर दिया. राधिकाराजे कहती हैं, 'बड़ौदा के राजकुमार समरजीत से मिलने से पहले भी मैं कुछ पुरुषों से मिली थी. समरजीत के विचार बाकी लोगों से अलग थे. जब मैंने उनसे कहा कि मैं आगे पढ़ना चाहती हूं तो उन्होंने मुझे इसके लिए प्रोत्साहित किया.'
राधिकाराजे का कहना है कि शादी करने और बड़ौदा के लक्ष्मी विलास पैलेस में आने के बाद उन्हें अपनी असली पहचान मिली. उन्होंने कहा, 'बड़ौदा महल की दीवारों पर राजा रवि वर्मा की पेंटिग्स लगी थीं. मैंने सोचा कि क्यों ना इन पेंटिंग्स से प्रेरित बुनाई की पुरानी तकनीकों को नया किया जाए. इस तरह, मैं स्थानीय बुनकरों को भी सशक्त बना सकती थी. मैंने अपने सास के साथ मिलकर इसकी शुरूआत की जो बहुत सफल रही. मुंबई में हमारी पहली प्रदर्शनी ही पूरी तरह से बिक गई.'
महारानी राधिकाराजे ने लॉकडाउन के दौरान उन कारीगरों की भी मदद की जिनकी कमाई का जरिया छूट गया था. उन्होंने कहा, 'मैंने और मेरी बहन ने गांवों का दौरा किया और सोशल मीडिया पर इनके हालात के बारे में पोस्ट करना शुरू किया. इसके बाद बड़ी संख्या में लोगों ने मदद की पेशकश की. कुछ महीनों में, हम 700 से भी अधिक परिवारों की सहायता करने में सक्षम थे.'
अंत में राधिकाराजे ने कहा, 'कभी-कभी लोग खुद से ही मान लेते हैं कि महारानी होने के मतलब सिर्फ ताज पहन कर रहना है, लेकिन हकीकत इस चमक-धमक से कोसों दूर है. मैंने पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ा और अपनी सीमाएं खुद बनाईं. सबसे जरूरी बात ये है कि मैंने वही किया जिसकी उम्मीद लोगों को मुझसे नहीं थी. यही विरासत मैं अपनी बेटियों को दे रही हूं ताकि वो अपने तरीके से अपनी जिंदगी जी सकें और किसी भी चीज का बिल्कुल भी पछतावा ना करें.'

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