- Home
- /
- लाइफ स्टाइल
- /
- सहमति को मिले संरक्षण,...
नवभारत टाइम्स: केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री ने राज्यसभा में बताया है कि सरकार सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की न्यूनतम उम्र कम करने के किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही। सरकार के इस रुख की अहमियत इस संदर्भ में है कि पिछले कुछ समय से सहमति से सेक्स के लिए न्यूनतम उम्र में बदलाव की जरूरत कई कोनों से रेखांकित की जा रही थी। हाल ही में देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने भी कहा था कि विधायिका को इस पहलू की ओर ध्यान देना चाहिए। इससे पहले एकाधिक हाईकोर्ट ध्यान दिला चुके हैं कि मौजूदा कानूनी प्रावधानों के चलते पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज ऐक्ट को उसके शब्दों और भावनाओं के अनुरूप लागू करने में दिक्कत हो रही है।
हाल में हुए कई अध्ययनों से भी यह बात सामने आई है कि पॉक्सो के तहत जो मामले दर्ज कराए जा रहे हैं, उनमें से ज्यादातर रोमांटिक रिश्तों के होते हैं जिनके पीछे दोनों पक्षों की सहमति होती है। ऐसी ही एक रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसे 'रोमांटिक रिश्तों' के 80 फीसदी से अधिक मामलों में शिकायत लड़की के माता-पिता या रिश्तेदारों की ओर से की गई थी और इनमें से करीब 88 फीसदी मामलों में जांच के दौरान लड़की ने स्पष्ट तौर पर स्वीकार किया कि संबंध सहमति से बनाए गए थे। कानून के जानकारों के मुताबिक, ऐसे मामलों में जजों के सामने दुविधा पैदा हो जाती है। चूंकि पॉक्सो कानूनों के तहत अत्यधिक सख्त सजा का प्रावधान है और इसमें 18 साल से कम उम्र के बच्चों की सहमति को रजामंदी नहीं माना जाता, इसलिए एक नजरिया कहता है कि सहमति की ओर ध्यान दिए बगैर अपराधी को कानून के मुताबिक सजा सुनाई जाए।
दूसरी तरफ इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि पॉक्सो कानून का मकसद बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाना है, उनकी यौन इच्छाओं का अपराधीकरण करना नहीं। ऐसे में स्वाभाविक ही विधायिका से उम्मीद की जा रही है कि वह कानून के शाब्दिक प्रावधानों और उसके पीछे की भावनाओं में उभरते अंतर्विरोध पर विचार करके उसे मिटाने का कारगर उपाय करे। विभिन्न रिपोर्टों में यह बात कही जा चुकी है कि ऐसे ज्यादातर मामलों में लड़की की उम्र 16 से अधिक पाई गई है। यानी अगर न्यूनतम उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल कर दी जाए तो सहमति के तहत बने ये रिश्ते अपराध नहीं रह जाएंगे।