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होती है भविष्य की नींव बच्चों का सही पालन-पोषण

Deepa Sahu
2 Jun 2024 1:25 PM GMT
होती है भविष्य की नींव  बच्चों का सही पालन-पोषण
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Proper upbringing: आप बचपन में बच्चों के साथ जैसा व्यवहार करेंगे आगे चलकर उनके व्यक्तित्व पर इसका साफ असर नजर आएगा। ऐसे में हर माता-पिता को परवरिश की पाठशाला में माहिर होना चाहिए। बच्चों की परवरिश के कई पड़ाव हैं। आपको इन्हें समझना होगा और फिर सही का चयन करना होगा।
अर्थोरेटिव पेरेंटिंग का मतलब है माता-पिता और बच्चों के बीच का एक सकारात्मक संबंध जिसमें स्पष्ट नियम और गर्मजोशी दोनों शामिल होते हैं। अर्थोरेटिव माता-पिता अपने बच्चों को स्पष्ट आजादी देते हैं। साथ ही उनके कार्यों के लिए उन्हें जवाबदेह ठहराते हैं। लेकिन वे उनकी भावनाओं के प्रति भी संवेदनशील होते हैं और उन्हें स्वतंत्रता देने के लिए तैयार रहते हैं। इस तरह की परवरिश के कई फायदे हैं। ऐसे बच्चे बेहतर शैक्षणिक प्रदर्शन करते हैं। अपना हर फैसला खुद लेने की आजादी के कारण उनमें मजबूत आत्म-सम्मान की भावना होती है। इन्हें व्यवहार संबंधी परेशानियां कम होती हैं और ये बेहतर सामाजिक कौशल रखते हैं।
परमिसिव पेरेंटिंग परमिसिव पेरेंटिंग में माता-पिता बच्चों को बहुत ज्यादा प्यार करते हैं। ऐसे में वे बच्चों को किसी भी बात के लिए रोकते-टोकते नहीं हैं। यहां माता-पिता बच्चों के लिए कोई नियम-कायदे ही नहीं बनाते। कम शब्दों में ये समझें कि ऐसे माता-पिता हर गलती पर एक ही वाक्य बोलते हैं कि बच्चे तो बच्चे ही होते हैं। ये बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखते हैं और उनकी जिंदगी में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करते। इस शैली में एक ओर जहां बच्चे आत्मविश्वास से भरे होते हैं। वहीं दूसरी ओर जब उनकी पसंद के अनुसार काम नहीं होता तो ये निराश हो जाते हैं। ऐसे बच्चों में अनुशासन की भी कमी रहती है, जिससे आगे चलकर उन्हें परेशानी आ सकती है।
अथॉरिटेरियन पेरेंटिंग अथॉरिटेरियन पेरेंटिंग का मतलब सख्त अनुशासन और कम प्यार वाला पालन-पोषण का तरीका है। इस तरीके में माता-पिता बहुत सारे सख्त नियम बनाते हैं और उम्मीद रखते हैं कि बच्चे इनका बिना सवाल किए पालन करे। नियम नहीं मानने पर इसमें माता-पिता बच्चों को सख्त सजा भी देते हैं। ऐसे माता—पिता बच्चों पर पूरा नियंत्रण रखते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो ऐसे बच्चों का आत्म-सम्मान कम हो सकता है। ये बच्चे तनाव में रहते हैं और डिप्रेशन का शिकार भी हो सकते हैं। वे दूसरों से बात करने में भी डरते हैं।
अनइंवॉल्वड पेरेंटिंग इस तरह की पेरेंटिंग में माता-पिता और बच्चों के बीच बहुत कम जुड़ाव होता है। इसमें माता-पिता अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कम प्रयास करते हैं। वे बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस नहीं करते। इतना ही नहीं वे बच्चों की भावनाओं को समझने या उनकी सहायता करने में कम रुचि दिखाते हैं। वे बच्चों की गतिविधियों पर कम ध्यान देते हैं। वे अक्सर बच्चों को खुद ही फैसले लेने के लिए छोड़ देते हैं। ऐसेे बच्चे भावनात्मक समस्याओं से घिरे रहते हैं। वे हमेशा चिंता, तनाव, अवसाद और अकेलापन महसूस करते हैं। कई बार वे बुरी आदतों में भी पड़ जाते हैं।
हेलीकॉप्टर परेंटिंग हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग में माता-पिता अपने बच्चों की ज़िंदगी में बहुत ज्यादा शामिल रहते हैं। वे बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात पर नजर रखते हैं और उनकी हर संभव मदद करने की कोशिश करते हैं, चाहे उन्हें इसकी जरूरत हो या न हो। ऐसे माता-पिता अपने बच्चों को किसी भी तरह के खतरे या असफलता से बचाने के लिए बहुत ज्यादा परेशान रहते हैं। वे बच्चों के जीवन के हर पहलू को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, जिसमें उनकी शिक्षा, दोस्त, करियर और यहां तक कि उनके रोमांटिक रिश्ते भी शामिल हैं। इस पेरेंटिंग के कई नुकसान हैं। जैसे बच्चे आत्मनिर्भर नहीं हो पाते, उनमें फैसले लेने की क्षमता कम होती है, वे तनाव में रहते हैं और किसी पर भी विश्वास नहीं कर पातेे।
फ्री-रेंज पेरेंटिंग फ्री-रेंज पेरेंटिंग में माता-पिता अपने बच्चों को बहुत ज्यादा आजादी औरResponsibilityदेते हैं। वे बच्चों के लिए उनकी उम्र और परिपक्वता के अनुसार उचित सीमाएं तय करते हैं, जिससे बच्चे खुद दुनिया को देखना सीखें और उसके अनुसार व्यवहार करना भी जानें। ऐसे माता-पिता बच्चों को उनकी गलतियों से सीखने का मौका देते हैं। इससे बच्चों को अपनी समस्याओं का समाधान खुद करना आता है।
टेकअवे​ पेरेंटिंग टेकअवे पेरेंटिंग में माता-पिता बच्चों के Bad Manners करने पर या गलत काम करने पर उनसे कुछ ​सुविधाएं छीन लेते हैं। जैसे- अगर बच्चा अपना होमवर्क पूरा नहीं करता है, तो उसका फोन ले लेना या उसे टीवी न देखने देना
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