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Written by जनसत्ता: जब कोई मामला अदालत में चल रहा हो तो मीडिया को उसके बारे में सतर्कता से सूचना प्रसारित करनी चाहिए। पर यह देखने में आता है कि लगभग सभी टीवी चैनल रोज शाम को विभिन्न राजनीतिक दलों तथा राजनीतिक विश्लेषकों की अदालत लगाकर किसी न किसी मामले पर बेबाक विचार प्रकट करते हैं जो अदालत की कार्रवाई तक पर प्रभाव डाल सकते हैं!
आमतौर पर यह देखा गया है कि टीवी पर किसी कार्यक्रम का संचालक सत्ता पक्ष के प्रवक्ता का समर्थन करता है और विपक्ष को बोलने का मौका कम से कम देता है! कार्यक्रम के संचालक का काम निष्पक्षता से किसी विषय पर परिचर्चा को संतुलित विचारों वाली बनाने के लिए होता है! पर हमारा मीडिया अपनी अदालत लगाकर सरकारी अदालत से पहले ही किसी को दोषी तो किसी को निर्दोष घोषित कर देता है।
इसे अदालत की अवमानना मानना चाहिए। जब से दिल्ली सरकार की आबकारी नीति की घोषणा हुई है, तब से यह विवाद केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच में एक दूसरे को नीचा दिखाने का साधन बन गया है। रोज-रोज नए-नए वीडियो मीडिया पर दिखाकर यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि आबकारी नीति में दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री ने शराब माफिया से मिलकर भारी भरकम रिश्वत खाई है।
इन सब बातों को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह घोषणा की कि मीडिया को सीबीआइ और ईडी द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति के आधार पर ही समाचार प्रस्तुत करने चाहिए या परिचर्चा करवानी चाहिए। मीडिया को खोजी पत्रकारिता करने का अधिकार तो है, लेकिन किसी व्यक्ति को अदालत के द्वारा निर्णय आने से पहले दोषी घोषित करने को अनैतिक ही नहीं, बल्कि न्यायालय की अवमानना भी समझना चाहिए।
हाल के महीनों में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच में एक दूसरे के खिलाफ ऐसी जंग छिड़ी दिखती है कि शालीनता, गरिमा, मर्यादा, शिष्टाचार, जनकल्याण आदि बातें पृष्ठभूमि में चली गई हैं। हमारे राजनेताओं को संयम से काम लेना चाहिए। सत्ता पक्ष को संयम और विपक्ष को सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। यह 'पब्लिक है सब जानती है'!
आजकल लोग डिजिटल रूप से सक्रिय रहना ज्यादा पसंद करते हैं, जबकि इसके कारण कई तरह की परेशानियां खड़ी हो रही हैं। अगर किसी को किसी भी प्रकार की परेशानी होती है तो लोग सबसे पहले अपने मोबाइल फोन में इंटरनेट पर उसका हल ढूंढ़ने का प्रयास करते हैं। इसकी मदद से कई बार लोगों की मुश्किलें सुलझ जा सकती हैं, पर कई बार बड़ी मुसीबतों का भी सामना करना पड़ता है।
इसी क्रम में 'लोन एप' के जरिए आजकल जिस तरह उधार के पैसे मुहैया कराने के क्रम में व्यापक ठगी हो रही है, वह बेहद खतरनाक है। पुलिस महकमे के साइबर सेल ने अक्सर ऐसे मामलों को सुलझाया, लेकिन जोखिम बरकरार है। विडंबना है कि अपनी परेशानियों का विकल्प खोजते-खोजते लोग बड़ी संख्या में ठगी का शिकार बन जाते हैं। हमें इस पर गंभीरता से विचार करने की और लोगों में जागरूकता फैलाने की भी आवश्यकता है।