लाइफ स्टाइल

एक बार जरूर करें उत्तराखंड इस गांव की यात्रा, यह बसे है पांडव-कौरवों के वंशजों

Tara Tandi
7 March 2021 5:09 AM GMT
एक बार जरूर करें उत्तराखंड इस गांव की यात्रा, यह बसे है पांडव-कौरवों के वंशजों
x
उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है.

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है.यहां हम मौसम में पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है. मौसम चाहे कोई भी हो, उत्तराखंड की खूबसूरती देखते ही बनती है. उत्तराखंड में देखने के लिए बहुत कुछ है. हर राज्य में कई शहर और गांव ऐसे होते हैं जिनके बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं होती.

आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे गांव के बारे में बताने वाले हैं, जिसके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए. इस गांव का संबंध पांडवों और कौरवों से है.

पांडव-कौरवों के वंशजों का गांव

उत्तराखंड के उपरी गढ़वाल क्षेत्र में स्थित कलाप गांव कई इलाकों से कटा हुआ है और ज्यादातर लोगों को इसके बारे में जानकारी भी नहीं है. यहां की आबादी सामान्य से भी कम है. इस गांव में ज्यादा आबादी न होने और मशहूर न होने के बावजूद कलाप गांव बेहद खास है और अपने अंदर पौराणिक दौर का एक गहरा राज भी दफ्न किए है.

कलाप गांव उत्तराखंड की टन्स घाटी में स्थित है और इसकी पूरी घाटी को महाभारत की जन्मभूमि माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस गांव से रामायण और महाभारत का इतिहास जुड़ा हुआ है. इसी वजह से यहां के लोग अभी तक खुद को पांडवों और कौरवों का वंशज बताते हैं.

काफी खूबसूरत है कलाप गांव

ये गांव उस क्षेत्र के दूसरे इलाकों से कटा हुआ है. यहां के लोगों की जिंदगी भी काफी मुश्किलों भरी है. यहां के निवासियों की आमदनी का मुख्य सहारा खेती है. इसके अलावा भेड़-बकरी पालन का भी काम किया जाता है. इस गांव की खूबसूरती और रामायण और महाभारत से खास कनेक्शन होने की वजह से ही इसे ट्रैवल डेस्टिनेशन के तौर पर विकसित किया जा रहा है.

इस जगह से जुड़ी खास बातें

इस गांव में कर्ण का मंदिर है. इसीलिए यहां कर्ण महाराज उत्सव भी मनाया जाता है. ये विशेष उत्सव यहां 10 साल के अंतराल पर मनाया जाता है. केवल इतना ही नहीं, जनवरी के महीने में यहां पांडव नृत्य भी किया जाता है, जिसमें महाभारत की कई कथाओं का प्रदर्शन किया जाता है.

ये जगह काफी दुर्गम माना जाता है. यही वजह है कि यहां जो कुछ भी लोग खाते-पीते या पहनते हैं, वो सब कुछ कलाप में ही बनता है. इस गांव में खसखस, गुड़ और गेहूं के आटे को मिलाकर एक खास डिश बनाई जाती है.

कब कर सकते हैं यहां की यात्रा?

ये गांव दिल्ली से 540 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और देहरादून से ये महज 210 किलोमीटर की ही दूरी पर है. यहां आप साल के किसी भी समय आ सकते हैं. यहां से आप स्नोफॉल का खूबसूरत नजारा देख सकते हैं.

Next Story