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आजकल कुछ Government एवं Private Sector में काम Night Shift में होता है, जैसे कि रेलवे (Indian Railway) में कुछ पालियाँ रात को लगायी जाती हैं वही हो सकता है कि व्यक्ति की पालियाँ हर सप्ताह एक सप्ताह के लिये बदल दी जायें.
रात्रिकालीन, सायंकालीन अथवा बदलते हुए पालियों (Shifts) में जागने अथवा कार्य करने से विभिन्न स्वास्थ्य जोख़िम बढ़ ही जाते हैं जिनका बिन्दुवार वर्णन एवं समाधानों का उल्लेख करने से पहले यह समझ लेना जरुरी है कि Physical से मानव एक दिनचर प्राणी है, रात्रिचर नहीं, अतः इसकी जैविक घड़ी दिन में जगने व कार्य करने के लिये बनी है.
नाईट शिफ्ट से हेल्थ में होने वाली समस्या,
1. मेलाटानिन की अनियमितता
रात के समय कार्य करना अथवा जागना होता है तो भी शरीर तो अपने निर्माण के अनुरूप अंधेरे की अपेक्षा कर रहा होता है परन्तु व्यक्ति को कार्य करने के लिये प्रकाश में रहना होता है । आँखों व शरीर को अंधकार के समय प्रकाश में व प्रकाश के समय अंधकार में रहने से मेलाटानिन हार्मोन का उत्पादन होने में दिक्कत होती है । इसके उत्पादन होने व निकलने पर प्रभाव पड़ने लगता है । यह हार्मोन हमारी नींद व जगे रहने के रूटीन को नियमित रखता है ।
इस कारण दिन में आप भले ही कितना ही सो जाए फिर भी नींद की गुणवत्ता रात की नींद के जैसी हर बार होगी ऐसा जरुरी नहीं, जिस कारण शरीर के टूटे हुए मसल्स की मरम्मत उतने सुचारु रूप से प्रायः नहीं हो पाती ।
2. मेटाबालिज़्म में परिवर्तन
मेटाबालिज़्म (Metabolism) के संचालन में हार्मोन्स की मुख्य भूमिका होती है, जैसे कि मस्तिष्क से स्रावित होने वाला लेप्टिन नामक एक हार्मोन शरीर के भार, रक्त-शर्करा एवं इन्स्युलिन-स्तर सहित दीर्घकालिक आहार-सेवन व ऊर्जा-परिव्यय के विनियमन में महत्त्वपूर्ण है.
जिसका उत्पादन व परिसंचार रात्रिकालीन पालियों में कार्यरत व्यक्तियों में प्रभावित हो जाता है। इसी प्रकार अन्य हार्मोन्स के असामान्य उतार-चढ़ाव के कारण मोटापे व मधुमेह की भी आशंका हो जाती है क्योंकि व्यक्ति को रात को जागना व दिन में सोना पड़ता है।
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3. नींद न आना हृदयाघात व रक्तचाप
निद्रा में मानव के शरीर के विष बाहर निकलते हैं, टूट-फूट में सुधार होता है, तनाव घटता है । रात्रिकालीन पालि में जगे रहने से रात के समय होने वाली निद्रा न होने से समस्याएँ उपजने की आशंका होती है। अनुसंधान कर्ताओं को स्पष्ट कारण तो पता नहीं चल पाया परन्तु ऐसा माना गया कि रात्रि-निद्रा न हो पाने अथवा रात में पर्याप्त सामान्य रूप से न सो पाने से रक्तचाप व रुधिर-परिसंचरण की समस्याएँ उत्पन्न हो जाया करती होंगी। नींद की गोली इत्यादि से परहेज करें।
4. स्तन कैन्सर की आशंका
दिन की अपेक्षा रात को जागने वाली अथवा रात को कार्य करने वाली स्त्रियों में स्तन-कैन्सर की आशंका बढ़ी पायी गयी है। चाहे सप्ताह में एक ही बार क्यों न रात्रिकालीन पालि मे कार्य करना पड़ा हो । पुरुषों में भी कुछ कैन्सर्स की आशंका का अनुमान है।
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5. मानसिक स्वास्थ्य
रात्रिकालीन कार्यों के प्रभाव स्वरूप Depression व मानसिक विकारों की सम्भावना बढ़ी पायी गयी। विशेष रूप से रात्रिकाल में कार्यस्थल पर कार्यरत रहने से अथवा घर पर जागने से तन व मन के सामंजस्य में असंतुलन आने की भी आशंका बनी रहती है।
चेतनता व गतिशीलता पर प्रभाव पड़ता है । बारीक़ हस्तकौशल में दक्षता घट सकती है एवं अन्य कार्यों, विशेषतया यांत्रिक कार्यों में दुर्घटना की सम्भावना बढ़ती है, समग्र कार्य-उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव की सम्भावना रहती है।
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6. जठरान्त्रीय समस्याएँ
असमय जागने व अनियमित दिनचर्या के कारण पेट व आँत सम्बन्धी अनिश्चताएँ आ सकती हैं जिनमें सीने में जलन, दस्त, कब्ज़ से लेकर अल्सर तक सम्मिलित है। रात्रिकालीन कार्य करके थके-हारे घर आकर बिना सामान्य भरपेट भोजन किये सो जाना भी पेट से जुड़ी समस्याओं के मामले में आग में घीं डालने का काम करता है।
7. विटामिन डी की कमी
शरीर में विटामिन डी कैल्सियम के अवशोषण के लिये एवं अस्थि-स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण है। दिन में सोने से सूर्य प्रकाश से शरीर में Vitamin -D के संश्लेषण की सम्भावना घट जाती है, व्यक्ति यदि आहार में दूध व सोयाबीन सहित सूखे मेवों का सेवन करे तो विटामिन डी की कमी की कुछ पूर्ति की जा सकती है परन्तु सूर्य प्रकाश का विकल्प कोई नहीं होता।
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Apurva Srivastav
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